साधकों के पत्र

February 1941

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कई मास पूर्व ‘मैं क्या हूँ’ पुस्तक प्राप्त हुई थी। गत एक मास से अभ्यास आरम्भ किया है। इस समय में मेरे मन को अत्यन्त शान्ति प्राप्त हुई है, आगे और भी अधिक लाभ होने की मुझे आशा है।

लक्ष्मी कुमार नगीना)

(2)

आपकी भेजी हुई ‘सूर्य-चिकित्सा-विज्ञान’ और ‘प्राण चिकित्सा-विज्ञान का महत्व मेरे से वर्णन नहीं हो सकता। पुस्तक क्या है गागर में सागर है। आपने इन पुस्तकों की रचना करके मनुष्य जाति का बड़ा उपकार किया है, अभ्यास कर रहा हूँ, साथ ही लाभ भी हो रहा है। (मंनलचन्द भंडारी, देवास)

(3)

पर काया प्रवेश मिली, मैस्मरेजम का ऐसा सर्वांग पूर्ण ग्रन्थ किसी भाषा में अब तक मेरे देखने में नहीं आया। अभ्यास प्रारम्भ कर दिया है।

(विद्याविनौद शुक्ल, पिथौरा)

(4)

‘प्राण-चिकित्सा’ प्राप्त हुई, उसके अनुसार प्रयोग करने से सफलता मिल रही है।

(रणजीतराम आर्य्य, बड़वानी)

(5)

आपके यहाँ से ‘पर काया प्रवेश’ का अभ्यास सीखा था। उसके द्वारा अनेक व्यक्तियों के जीवन में भारी परिवर्तन कर चुका हूँ। कई पशु, मनुष्य बन गये हैं।

(जीवानन्द संन्यासी, हरिद्वार)


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