‘सत्य-सनेहू’

February 1941

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(पं॰ श्रीराम वाजपेयी)

क्वेटा का भूकम्प अभी हाल की ही बात है। बात की बात में सारा शहर मेसमार होकर एक ईंट पत्थर का ढेर बन गया। आलीशान और खूबसूरत इमारतें खाक में मिला गई और माल-असवाब तथा धन, जन का गहरा नुकसान हुआ। इस लम्बे चौड़े ढेर के खास स्थान पर एक कुत्ता रोज सुबह शाम आता और रोने की आवाज लगाता। लोग उसे चुचकारते पर वह उनकी तरफ देखता तक नहीं। जो खाने पीने का सामान दिया जाता, वह उसे सूँघता तक नहीं। उसे इन्सान से नफरत सी हो गई। वह पागल सा हो गया। अब लोग उसे पगला कुत्ता कह कर दुत्कारने लगे। वे अब उस पर पहले की तरह तरस न खाते।

पगली हालत में भी वह कुत्ता उस स्थान पर विशेष कर जाता और सुबह-शाम धाड़ें मारता। एक दिन उस कुत्ते के उसी स्थान पर दम निकल गया।

जब खुदाई शुरू हुई तो उस स्थान विशेष पर एक लाश निकली। यह लाश करीब के गाँव के रहने वाले एक आदमी की थी। वह कुत्ता जिसका जिक्र ऊपर हो चुका है, उस आदमी का पालतू था। अपने मालिक को मकान पर न पाकर इस कुत्ते ने अपनी सूँघने की शक्ति से उस स्थान का पता लगा लिया, जहाँ वह ढेर के नीचे दबा पड़ा था । दिन और राम में कुत्ता गाँव में रहता और सुबह शाम वहाँ जाकर अपने मलिक की अलख जगा जाता। खाने पीने को तिलांजलि देकर और अलख जगा जगा कर वह उस लोक में अपने स्वामी से जा मिला।

असली पता चलने पर लोग कुत्ते की भूरि-भूरि प्रशंसा करते और कहते-’जेहिकर जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलत न फल सन्देहू।’


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