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February 1941

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मनुष्य का जीवन तीन वस्तुओं से पूर्ण बनता है, (1) काम करने का अभ्यास, (2) ईश्वर में अटूट विश्वास, (3) प्राणिमात्र की सच्ची सेवा।

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मनुष्यता सीखने की सबसे बड़ी पाठशाला अपना घर है। स्नेह और त्याग क्षमा, और उदारता की भावनाओं के विकास के जितने सुन्दर अवसर अपने घर में मिल सकते हैं, उतने और कहीं नहीं मिल सकते।

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संसार में शान्ति तभी स्थापित होगी, जब बलवान लोभी होना छोड़ दें और जो निर्बल हैं, वे बलवान बनना सीखें।


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