स्वर योग से रोग निवारण

February 1941

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(श्री नारायण प्रसाद तिवारी ‘उज्ज्वल’ कान्हीबाड़ा)

लंग शौचं पुरा कृत्वा गुद शौचं ततः परम्। गृहीत्वा जल पात्रं तु विण्मूत्रं कुरुते यदि॥

प्रथम मूत्र स्थान की शुद्धि करके फिर गुदा की शुद्धि करे तथा जल का पात्र लेकर मल मूत्र की शुद्धि करनी चाहिये।

यह लिखा जा चुका है कि दक्षिण स्वर में मल तथा वाम स्वर में मूत्र त्याग करना चाहिये, इसके विशेष नियम इस प्रकार हैं।

मूत्र त्याग करते समय तक ऊपर नीचे के दाँतों को खूब दबाकर रखो तथा अण्डकोष को ऊपर उठाकर रखो इससे दो लाभ होंगे। दाँतों को दबाकर रखने से दांतों की बीमारियाँ न होंगी, जिनको दाँतों में दर्द की शिकायत रहा करती हो प्रयोग का अनुभव करें, दूसरे यह कि अण्डकोष का रोग न होगा और जिसे यह रोग आरम्भ हुआ हो इस प्रयोग को करके लाभ उठावें, इससे शक्ति का ह्रास भी नहीं होता ।

अपान वायु की गड़बड़ी अथवा मल विकार के कारण ही अनेक रोग हुआ करते हैं। गुदा के से नाभि तक अपान वायु का स्थान है, नाभि समान वायु का तथा नाभि से ऊपर जो वायु हम ग्रहण करते हैं, प्राण वायु है।

शौच करते समय तर्जनी अथवा मध्यमा अँगुली से गुदा के भीतर का स्थान जल से स्वच्छ करना चाहिये, अन्दर का मल द्वार घोंघा आकृति है, उसके आस-पास यदि कोई पपड़ी रह जाती है तो अपान वायु अशुद्ध होती है, किन्तु इस रीति से सरलता पूर्वक सफाई की जा सकती है, यद्यपि पाठक गण इसे घृणित अथवा कठिन क्रिया समझेंगे, किन्तु दो तीन दिन के अभ्यास से यह क्रिया सरल प्रतीत होगी इसे मल शोधन क्रिया कहते हैं।

गर्मी से वायु फैलती है यह Science विज्ञान का मामूली नियम है और फिर वायु ऊपर को उठती है। इसी प्रकार जब मल साफ नहीं होता तो गर्मी से वायु ऊपर उठती है, जिससे दिल में धड़कन, Heart palpitation, सिर दर्द acidity आदि की बीमारियाँ होती हैं। हाँ मल शोधन करते समय अँगुली तथा गुदा द्वार में तेल लगा लेना ठीक होगा, जिससे नख लगने का भय न रहे। इस मल शोधन क्रिया से , कब्ज, अर्श, भगन्दर, खट्टी डकारें आने की शिकायतें दूर होती हैं। मल साफ होता है, इस मल इस शोधन के विषय में अधिक लिखना व्यर्थ है। पाठक गण इस क्रिया को करके स्वयं उससे लाभ अनुभव करें।

शौच क्रिया के पश्चात् हाथ, मुँह धोकर मुँह में जितना पानी भर सको भर लो और पानी को मुँह में ही रोक कर हथेली में ठंडा जल भर खुली हुई आँखों पर खूब छिड़को, पाँच, सात बार ऐसा करने के बाद मुँह में भरा हुआ पानी फेंक दो, इसी प्रकार भोजनान्तर भी यही क्रिया करनी चाहिये, या कि जब कभी भी मुँह धोते हो यह क्रिया कर लेना आँखों को अत्यन्त लाभदायक है। इस क्रिया से आँखों की बीमारी नहीं होती और ज्योति ठीक रहती है

भोजन :- भोजन से शरीर बनता है। यह सभी जानते हैं, किन्तु यह जानते हुए भी मनुष्य भोजन के विषय में बहुत ही लापरवाह रहता है, कहावत है Live not to eat lent eat to live. अर्थात् भोजन के लिये जीवन नहीं है, वरन् जीवन के लिये भोजन है। कुछ भी खाद्य-अखाद्य का विचार किये बिना भोजन करना स्वास्थ्य के लिये अहितकर लेता है। सुखी जीवन व्यतीत करने के लिये स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना नितान्त आवश्यक है।

सब स्वादिष्ट वस्तुएं स्वस्थ कर होती हैं, यह नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह कहा जा सकता है कि जो स्वस्थ रहना चाहते हैं, उन्हें पूर्ण शाकाहारी होना चाहिये, माँसाहार से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, यह बात अब बड़े- बड़े डॉक्टर भी स्वीकार करने लगे हैं। मैं यह लिख चुका हूँ कि सूर्य नाड़ी में भोजन करना उत्तम है, इस प्रकार किया हुआ भोजन जल्दी पचता है, बाजारू पेटेंट दवाइयों से क्षणिक पाचन शक्ति चाहे ठीक मालूम हो, किन्तु स्थायी लाभ नहीं हो सकता, जिनकी पाचनशक्ति कमजोर हो कब्ज की शिकायत रहा करती हो, उन्हें पाँच सात दिन इस प्रकार भोजन करके देखना चाहिये।

सूरज में भोजन करे, चन्द्र में पीवै पानी। पालन इसका जो करै, राखे अटल जवानी॥

भोजनान्तर कुल्ली करने का नियम मैं ऊपर लिख चुका हूँ, पश्चात् वीरासन बैठ कर दस-पन्द्रह मिनट तक नोंक दार कंघी से सिर के बलों पर इस प्रकार फेरना चाहिये, कि सिर में चुभे, आरम्भ में इतने समय तक वीरासन बैठने में कष्ट होगा, अतएव पहले एक या दो मिनट ही बैठना चाहिये, क्रमशः अभ्यास बढ़ाना चाहिये, इस क्रिया से अर्श तथा वात का नाश होता है जिसे अर्श तथा वात का आरम्भ है उसे इससे बहुत शीघ्र लाभ प्रगट होगा, तथा कुसमय बाल नहीं पकेंगे , गाढ़ निद्रा आवेगी और स्वप्नदोष न होगा, मस्तक के रोगों का नाश होगा। स्वास्थ्य के लिये निद्रा भी उतनी ही आवश्यक है, जितना भोजन, गाढ़ निद्रा मनुष्य को सुस्थ तथा दीर्घजीवी बनाती है।

सीधी करवट लेने से Liver पर जोर पड़ता है, जिससे पाचन शक्ति में रुकावट होती है, इसलिये भोजन पचाने के निमित्त दक्षिण स्वर चलाने की आवश्यकता है, अतएव बाँई करवट लेटना ही उत्तम है, अपितु रात्रि में जितने अधिक समय के लिये पिंगला स्वर चले उतना ही उत्तम है, जैसा कि कहा जा चुका है कि-

दिन में जो चन्दा चले रात चलावे सूर। तो यह निश्चय जानिये, प्राण गमन है दूर॥

किसी किसी का यह मत है, कि बांई करवट लेटने से दिल Heart दबेगा, तथा उसकी चाल में कमजोरी होगी, किन्तु यह भ्रम मात्र है, क्योंकि पाचन क्रिया ठीक रहने से हृदय की गति कदापि शिथिल नहीं हो सकती, मल-मूत्र त्याग करने के कुछ और भी नियमों का पालन करना हितकर होगा।

सूर्य, चन्द्र अथवा हवा जिस ओर से चल रही हो, उस ओर मुँह करके मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिये, सूर्य की ओर त्याग करने से शिर रोग तथा चन्द्र और हवा की ओर त्याग करने से मूत्राशय के रोग होने की सम्भावना है, खड़े होकर पेशाब करने से रीढ़ में कमजोरी आती है, कदाचित पाठक पाश्चात्य सभ्यता की ओर ध्यान आकर्षित करेंगे, किन्तु जलवायु पर भी बहुत से नियम निर्भर हैं, यह नहीं भूलना चाहिये।

पूर्व की ओर से जब वायु का प्रवाह हो उस ओर से वायु जोर से नहीं खीचना चाहिये, इससे कफ का जोर बढ़ता है, साराँश जिस ओर से भी वायु का प्रवाह हो उस ओर मुँह करके दीर्घ श्वास नहीं लेना चाहिये, क्योंकि हवा में कई प्रकार के कीटाणु उड़ा करते हैं और श्वास द्वारा शरीर में प्रवेश कर रोग उत्पन्न करने का भय रहता है, पाठकों ने अनुभव किया होगा कि हवा की ओर पीठ करने से ठंडक मालूम होती है। मल-मूत्र तथा छींक का वेग कदापि नहीं रोकना चाहिये।


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