दूरदर्शिता का दुहरा लाभ

December 1979

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वैभव की दृष्टि से बड़े वे हैं, जिनके पास साधनों की प्रचुरता और बुद्धिकौशल की प्रखरता है। ऐसे लोग ऐश्वर्यवान कहलाते हैं और अपनी समर्थता के बदले सुख-साधन एवं पद-सम्मान पाते है।

वर्चस् की दृष्टि से महान वे हैं, जिनके दृष्टिकोण एवं चरित्रक्रम का स्तर ऊँचा है। जो आदेश पर आस्था रखते हैं और उन्हें कठिन अवसरों पर भी अपनाए रहने वाले साहस का परिचय देते हैं। संकीर्ण स्वार्थपरता को ही भवबंधन कहते है, जिसने इस निकृष्टता से मुँह मोड़ा और उदात्त अंतःकरण की प्रेरणा से सत्प्रयोजन के लिए कदम बढ़ाया, उसे ही जीवनमुक्त कहते हैं। मुक्ति को परम पुरुषार्थ माना गया है और उसका श्रेयाधिकारी उसे पाया गया है, जो बड़प्पन से नहीं, महानता से प्यार करता है।

वैभव से दूसरे चमत्कृत हो सकते हैं, शरीर की सुविधा हो सकती है। किंतु जहाँ तक आत्मसंतोष, लोक-सम्मान एवं दैवी अनुग्रह जैसी विभूतियों का संबंध है, वे वैभववानों को नहीं, महामानवों को ही उपलब्ध होती हैं।

दूरदर्शी वे हैं, जो क्षुद्रता से ऊँचे उठकर महानता का वरण करते हैं। वैभव नश्वर और अस्थिर ही नहीं, मादक भी है। उसमें उन्माद उत्पन्न करने का दुर्गुण है। ऐसे कम ही हैं, जो वैभव को पचाने और उसका सदुपयोग करने में समर्थ होते हैं। अधिकतर तो उसका दुरुपयोग ही होता है। इसके विपरीत महानता की विभूतियाँ ऐसी हैं, जो व्यक्ति की गरिमा बढ़ाती हैं। गरिमा ही वह विभूति है, जिसके आधार पर जनसहयोग बरसता और उच्चस्तरीय सफलताओं का अवसर मिलता है।

अदूरदर्शिता वैभव के लिए मचलती है और उसके लिए क्षुद्रता की रीति-नीति का अनुसरण करती है। दूरदर्शिता हर कसौटी पर वर्चस् की गरिमा को परखती और उसी का वरण करती है। महामानव वर्चस् के लिए, महत्ता के लिए प्रयत्न करते हैं; फलतः दुहरे नफे में रहते हैं। महानता जहाँ रहती है वहाँ संपदा का भी अभाव नहीं रहने पाता।




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