सन् 82 की डरावनी संभावनाएँ

December 1979

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वर्षा होने के पूर्व बादल घिर आते हैं। आने वाले तूफान अपना पूर्वपरिचय गंभीर वातावरण के रूप में दे देते हैं। नवीन तथ्यों के अनुसार भूकंप जैसी घटनाओं का परिचय जीव-जंतुओं को पूर्व ही मिल जाता है। उसके स्वभाव में आए अप्रत्याशित परिवर्तनों के आधार पर भावी संकट का अनुमान लगाया जा सकता है। इन संकेतों के द्वारा वातावरण में होने वाले परिवर्तन और घटने वाली घटनाओं का परिचय मिल जाता है। प्रयत्न करने पर सामान्य व्यक्ति भी इन संकेतों के आधार पर छोटे-मोटे परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त कर सकता है।

चेतना का अनंत प्रवाह ब्रह्मांड में सतत प्रवाहित हो रहा है। प्रकृति के संचालन एवं परिवर्तनों का मूल आधार वही है। परिवर्तनकारी तत्त्व इसी चेतना के गर्भ में पकते रहते तथा कालांतर में अभीष्ट परिवर्तनों के कारण बनते हैं। बीज एक निश्चित समय तक भूमि में पड़े रहने एवं विकास के लिए सुदृढ़ आधार बना लेने के उपरांत जमीन के बाहर निकलना दिखाई देता है। नौ माह तक माँ के गर्भ में पड़े रहने एवं भावी विकास की पृष्ठभूमि बना लेने के उपरांत बच्चा माँ के गर्भ से बाहर आता है। सर्वसामान्य को बच्चे के अस्तित्व का परिचय तो उसके जन्म के साथ ही मिलता है। जबकि उसका अस्तित्व नौ माह पूर्व ही बन गया था।

स्थूलजगत की सारी घटनाएँ सूक्ष्म में बनती, पकती रहती तथा परिपक्व होकर स्थलस्वरूप में प्रकट होती हैं। जनसामान्य को इसकी जानकारी तो उसके स्थलरूप में आने पर ही मिलती है। जबकि उसका उद्भव बहुत समय पूर्व ही हो चुका था। वर्षा, मौसम एवं वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी तो सामान्य व्यक्तियों को भी मिल जाती है। किंतु सूक्ष्मचेतना के गर्भ में पक रहीं घटनाओं की पकड़ सामान्य व्यक्तियों से परे है। चेतन जगत में हो रही हलचलों की जानकारी तो अतींद्रियशक्तिसंपन्न व्यक्तियों को ही मिल पाती है। अपनी पराशक्ति के आधार पर ऐसे तत्त्वदर्शी ब्रह्मांड के चेतन-प्रवाह में हो रहीं हलचलों को जान सकने में समर्थ होते हैं। महत्त्वपूर्ण भविष्यवाणियाँ ऐसे अतीन्द्रियशक्तिसंपन्न व्यक्तियों की ही सही उतरती है। उथली भविष्यवाणियों द्वारा लोगों को दिग्भ्रांत करने वाले भविष्यवक्ताओं की इन दिनों कमी नहीं है। जो अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए लोगों के समक्ष अनाप-शनाप बकते रहते हैं। किंतु इतने पर भी संसार ऐसे प्रामाणिक भविष्यवक्ताओं से सर्वथारहित नहीं है। उनकी संख्या अवश्य गिनी-चुनी हैं। समय-समय उनके द्वारा की गई भविष्यवाणियाँ जब सही घटित हुईं तो भविष्य के प्रति रुचि रखने वालों का ध्यान सहज ही इनकी ओर आकर्षित हुआ।

'जौन एडन' को एक प्रामाणिक भविष्यवक्ता के रूप में जर्मनी में ख्याति मिली है। वहाँ की प्रसिद्ध पत्रिका ‘एक्सप्रेस रिव्यू’ के जनवरी ७८ अंक में प्रकाशित उनकी भविष्यवाणी उल्लेखनीय हैं। कुछ व्यक्ति जानने के लिए पहुँचे। पूछने पर उन्होंने निराशापूर्ण शब्दों में कहा कि, “इस संबंध में हमसे न पूछा जाए तो ही अच्छा होगा।” अधिक आग्रह करने पर उन्होंने उत्तर दिया कि, “इन दिनों प्रकृति के अंतराल में मैं असामान्य परिवर्तनों को देख रहा हूँ। ध्यान की गहराइयों में पहुँचने पर मुझे स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि प्रकृति ध्वंस का सरंजाम जुटाने में लगी है। ध्वंसात्मक तत्त्व इन दिनों सूक्ष्मजगत में बढ़ते जा रहे हैं। मेरी अंतःचेतना में संसार के नष्ट होने के स्पष्ट संकेत मिल रहें हैं।” यह पूछे जाने पर कि दुर्भाग्यशाली समय कौन-सा होगा? कुछ देर के लिए शांत होकर वे आँखें बंद करके बैठ गए। थोड़े समय पश्चात् उन्होंने कहा—”हमें जो संकेत मिल रहें हैं, उनके अनुसार यह समय फरवरी और अगस्त ८२ के मध्य होना चाहिए।" विनाश का भावी स्वरूप स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि, “मानवी दुर्बुद्धि एवं उसके कुकृत्यों के कारण प्रकृति अत्यंत क्रुद्ध है। फलस्वरूप सन् ८२ फरवरी और अगस्त के मध्य विश्व का अधिकांश भाग भयंकर भूकंप, झंझावात, तूफान तथा विस्फोट से नष्ट हो सकता है। इसी समय दो प्रभावशाली राष्ट्रों के बीच युद्ध छिड़ जाने के कारण तृतीय विश्वयुद्ध की पूरी-पूरी संभावना हैं। ये राष्ट्र कम्युनिस्ट होंगे। तृतीय विश्वयुद्ध एवं प्रकृति-प्रकोपों की दोहरी मार से जिस विदारक दृश्य की कल्पना हमारी चेतना में उठती है, उसे देखकर हमारा हृदय काँप उठता है।”

‘जौन एडन’ ने अब तक जितनी भी भविष्यवाणियाँ कीं, उनमें अधिकांशतः सही उतरी हैं। जिस समय भारत और पाकिस्तान की सेनाएँ बांग्लादेश के युद्ध में एकदूसरे के सामने डटी नरसंहार कर रहीं थीं; युद्ध विराम के एक दिन पूर्व उन्होंने अपने एक मित्र से कहा कि, "कल पाकिस्तानी सेना आत्मसमर्पण कर देगी। भारत विजयी होगा। बांग्लादेश  पाकिस्तान के हाथों से निकलकर, एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरेगा। दूसरे दिन जब पाकिस्तानी सेना ने आत्ममर्पण किया तो ‘एडन’ का मित्र आश्चर्यचकित रह गया। उनकी अतींद्रिय सामर्थ्य से उसने जनसामान्य को अवगत कराया। तब से लेकर अब तक संसार के विभिन्न देशों के संबंध में जो भविष्यवाणियाँ की हैं, वे अधिकांशतः सही उतरी हैं। अरब-इसराइल युद्ध में, अरब राष्ट्रों के गठजोड़ के बावजूद भी इसराइल की युद्ध में अप्रत्याशित विजय की घोषणा, भारत में ऐतिहासिक, राजनैतिक परिवर्तन, पाकिस्तानी  शासन में भुट्टों की तानाशाही का दुखद अंत जैसी भविष्यवाणियाँ समय एवं तथ्यों के अनुसार सही पाई गई हैं।

यह पूछे जाने पर, क्या भारी विनाश से बचने का कोई मार्ग है? उन्होंने कहा कि, "चेतना की सामर्थ्य प्रकृति की तुलना में जबरदस्त है। प्रकृति नियमों से मुक्त चेतना उसमें आवश्यक परिवर्तनकर सकने में समर्थ होती है। ऐसा ही प्रचंड आत्मबलसंपन्न महामानव जन-कोलाहल से दूर, भावी संकटों से मानव जाति की सुरक्षा के लिए प्रयत्नशील है। वह प्रकृति में आवश्यक हेर-फेर कर सकने में समर्थ है। उसकी आध्यात्मिक-शक्ति सभी भौतिक-शक्तियों से अधिक है। प्रकृति के अनुकूल एवं जनमानस को सही मार्ग पर चलाने में वह अपनी शक्ति का नियोजन कर रहा है। सूची की प्रकाश-किरणों के माध्यम से वह अपनी सूक्ष्मशक्ति द्वारा भावनाशील व्यक्तियों को अभिप्रेरित करने में संलग्न है। उसमें अद्भुत संगठनबल है, जिसके कारण उसके संरक्षण में संसार को दिशा देने के लिए एक दृढ़ संगठनशक्ति उभर रही है। उसके लाखों अनुयाई प्रचंड एवं विवेकयुक्त विचारों द्वारा जनमानस में लोक-मंगल की भावना उत्पन्न कर रहें हैं। उसके तर्कयुक्त एवं विज्ञानसम्मत आध्यात्मिक विचारों के समक्ष नास्तिक वर्ग भी नतमस्तक होगा। जीवन के उत्तरार्ध में वह अपनी शक्ति का विकेंद्रीकरण विभिन्न केंद्रों के माध्यम से करेगा। इस समय उस दिव्य मानव को भारत के उत्तराखंड में कहीं पहाड़ी किसी तीर्थ-स्थान पर विश्वव्यापी परिवर्तनों के कार्यों में तल्लीन होना चाहिए। उसके मानवतावादी विचार एवं कार्यक्रमों को अपनाने से ही भावी संकटों को रोका जा सकता है। वहाँ एक ऐसी संस्कृति का बीजारोपण हो रहा है, जो संप्रदाय एवं मजहब की दीवारों को तोड़ती हुई एक मानवतावादी धर्म की स्थापना करेगी।”

अखण्ड ज्योति के फरवरी ७८ अंक में प्रकाशित प्रसिद्ध भविष्यवक्ता 'क्रूम हेलर' की भविष्यवाणी एवं ‘जौन एडन’ की भविष्यवाणी में विशेष साम्य है। इनके द्वारा की गई भविष्यवाणियाँ कितनी सही उतरती हैं, यह तो समय बताएगा। किंतु जिस संस्कृति के बीजारोपण का संकेत ‘जोन एडन’ ने दिया है, उससे संभावना की जा सकती है कि मनुष्य जाति यदि अपने दुष्कर्मों को छोड़कर श्रेष्ठ मार्ग अपना सके तो संभव है कि विनाश पर उतारू प्रकृति भी अपना रवैया बदल दे।






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