जैसे काटा हुआ चंदन का वृक्ष गंध को नहीं छोड़ देता, बूढ़ा हो जाने पर भी गजराज अपनी मंदगति को नहीं छोड़ता, उसी प्रकार दरिद्र हो जाने पर भी कुलीन व्यक्ति सुशीलता आदि गुणों को नहीं छोड़ता।—चाणक्य