इन आश्चर्यों का क्या कोई कारण है?

December 1979

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यंत्रों या मशीनों द्वारा बनाई गई वस्तुओं का रंग-रूप, आकार-प्रकार प्रायः एक ही प्रकार का होता है। किन्हीं यांत्रिक गड़बड़ियों के कारण ही कभी कोई उत्पादन बेडौल हो जाता है, किंतु वह अन्य उपकरणों की भांति न तो टिकाऊ सिद्ध होता है और न ही उसे सामान्य ढंग से प्रयोग में लाया जा सकता है। प्रकृति में विद्यमान चेतनसत्ता, जो यहाँ प्राणियोँ और प्राकृतिक पदार्थों की उत्पत्ति, अभिवर्धन और विनाश का संचालन करती है, उसका पहला प्रमाण तो यही है कि इस सृष्टि में कोई भी दो वस्तुएँ एक समान नहीं है। संसार में इस समय 400 करोड़ से भी अधिक मनुष्य बसते हैं, परंतु किन्हीं में भी एकदूसरे व्यक्ति से पूर्ण साम्य नहीं दिखाई देता। एक साथ जन्म लेने वाले दो बच्चों की आकृति में भले ही समानता दिखाई दे, किंतु उनमें भी कोई न कोई अंतर ऐसा होता ही है, जो दोनों के अलग-अलग अस्तित्व को सिद्ध करता है।

जानवरों में भी यही बात है। मनुष्य की अपेक्षा पशु अधिक एकदूसरे के समान दिखाई देते है, किंतु आयु, वजन, शरीर के आकार, रंग-रूप और विभिन्न विशेषताओं को दृष्टिगत रखते हुए उनकी आपस में तुलना की जाए तो कोई दो पशु भी एक जैसे नहीं होते। प्राणियों की बात जाने दें। दो कचड़े, दो पहाड़, दो नदियाँ भी ऐसी नहीं हैं, जिन्हें एकदूसरे की अनुकृति कहा जा सकता। यह विभिन्नता, विचित्रता इस बात की द्योतक है कि प्रकृति में सृजन, अभिवर्द्धन और विनाश की प्रक्रिया का संचालन करने वाली ऐसी कोई सत्ता है, जो इन सबका नियमन और नियंत्रण करती है।

कई बार उस अद्भुत कलाकार की अद्भुत रचनाएँ इस रूप में भी सामने आती है कि उन्हें देखकर दाँतों तले अंगुली दबानी पड़ती है। यद्यपि उन अद्भुतताओं का रहस्य समझने के लिए वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाता है और उन कारणों का पता लगाने की चेष्टा की जाती है, जिनसे ऐसी विलक्षणताएँ उत्पन्न हुईं। बहुधा इस प्रकार के प्रयासों का कोई निष्कर्ष सामने नहीं आता और न ही कोई उनके कारणों का पता चलता है। ऐसा लगता हैं, ये कृतियाँ उस सृष्टा द्वारा मनुष्य के सामने प्रस्तुत की जाने वाली पहेलियाँ हैं और संभवतः उसके ज्ञान को चुनौती देती हुई-सी प्रतीत होती है। उदाहरण के लिए, 30 सितंबर 1977 को उत्तरपूर्वी चीन के लिआओनिग प्रांत के एक किसान परिवार में एक ऐसे बच्चे का जन्म हुआ, जिसके पैदा होते समय ही दाढ़ी-मूंछ थी। इसके अतिरिक्त पूरे शरीर पर बाल थे।

इस बच्चे के जन्म का समाचार विश्व के प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ। बच्चे के होठ, हथेली तथा पैरों के तलुओं के अतिरिक्त पूरे शरीर पर घने बाल थे। माथे पर करीब तीन इंच लंबे बाल थे और भौहें इतनी घनी थी कि कपाल तक फैलकर वे सिर के बालों के साथ मिल गई। आश्चर्य की बात तो यह कि इन असामान्य विशेषताओं के होते हुए भी बच्चा सामान्य बच्चों के समान स्वस्थ और शक्तिशाली है। जन्म से अब तक वह एक भी बार बीमार नहीं पड़ा। सामान्य बच्चों की तरह वह भोजन करता और गहरी नींद सोता है। बच्चे को इन दिनों वैज्ञानिकों के विशेष दल द्वारा अध्ययन के लिए लिआओनिग प्रांत की राजधानी शिनयांग में लाया गया है। उसकी एक फिल्म भी बनाई गई है।

भारत में सन् 1925 में मंगलौर के एक प्रोफेसर की पत्नी ने ऐसे ही बच्चे को जन्म दिया था, जिसके मुँह पर मूंछें और शरीर पर घुँघराले बाल थे। यह चीनी बालक से एक अर्थ में भिन्न था कि उसके चार पैर थे, दो पैरों के तलुवे आगे की ओर तथा दो पैरों के तलुवे पीछे की ओर। दिल्ली में सन् 1927 में एक ऐसे बच्चे ने जन्म लिया था, जिसके तीन पैर थे। इसका आधा शरीर पुरुष का था और आधा स्त्री का। यह बच्चा आठ वर्षों तक जीवित रहा।

19 जून 1926 को लाहौर के पास एक गाँव में एक बढ़ई स्त्री ने ऐसी लड़की को जन्म दिया, जिसका चेहरा भालू जैसा और कान गधों के जैसे थे। उसकी जीभ गर्दन से सटी हुई थी। इस तरह की घटनाएँ आज-कल भी होती हैं। आए दिन उनके समाचार प्रकाशित होते रहते है। कई लोग इन विलक्षणताओं के लिए परमाणु परीक्षणों से उत्पन्न हुए विकिरण को बताते है, किंतु ऊपर भारत की जिन तीन घटनाओं का उल्लेख किया गया है, वे तो उस समय की है, जब लोगों ने अणुबम का नाम तक नहीं सुना था और न ही ऐसे प्रयोगों का आरंभ हुआ था।

सन् 1933 में पंजाब के जलालपुर नामक स्थान में एक सात महीने की लड़की के सिर में से बच्चे का जन्म हुआ। यह समाचार लाहौर में प्रकाशित होने वाले अखबार के 22 अप्रैल 1933 में प्रकाशित हुआ था। सात महीने की इस बालिका के सिर में पहले तो एक छोटी-सी रसौली निकली। कुछ ही समय में यह इतनी बढ़ गई कि उसका वजन लगभग लड़की के वजन के बराबर हो गया। लड़की के माता-पिता इस संकट से त्राण पाने के लिए कई डाॅक्टरों के पास गए, पर सभी ने इस खतरनाक ऑपरेशन को करने से हिचकिचाहट व्यक्त की। अंत में लाहौर के डाॅ.बोधराज ने उस बच्ची का ऑपरेशन किया और बढ़ा हुआ     माँसपिंड काट डाला। इस कटे हुए माँसपिंड में से एक बच्चा निकला। जिसका शरीर पूर्णकाल तक गर्भ में रहने वाले बच्चे की तरह विकसित था। उसके सभी अंग नौ माह तक गर्भ में रहने वाले बच्चे के समान विकसित हो चुके थे। यही नहीं, बच्चा कई घंटों तक जीवित भी रहा।

बलग्रेड के सरबिया अस्पताल में कुछ वर्ष पूर्व एक किसान के गर्भ से दो बच्चों के जन्म की घटना समाचारपत्रों में प्रकाशित हुई थी। इस किसान को पेट में दर्द रहने की शिकायत रहती थी। डाक्टरों ने बाहरी परीक्षणों द्वारा यह रोग-निदान किया था कि उसके पेट में कोई फोड़ा या रसौली है, जो ऑरेशन द्वारा ही बाहर निकाली जा सकती है।ऑपरेशन के लिए वह किसान जब सरबिया अस्पताल में गया। डाॅक्टरों ने ऑपरेशन किया, तो उसके पेट के ऊपरी भाग से दो बच्चे निकले। एक लंबाई में नौ इंच, और वजन में कुछ पौंड भारी था। आश्चर्य की बात यह कि उसके सिर पर घने बाल होने के साथ-साथ मुँह में कई दाँत भी थे। शरीर की रचना जन्म लेने वाले सामान्य बच्चों की भाँति परिपूर्ण थी।

चीन में पिछले दिनों एक और अद्भुत बालक का मामला प्रकाश में आया है। सन् 1981 में जन्मे इस बच्चे को जन्म के समय ही पूरे दाँत निकले हुए थे। साथ ही शरीर पर घने बाल भी थे। आमतौर पर बच्चों के दूध के दाँत सात-आठ वर्ष की आयु में गिरने लगते हैं; किंतु नौ वर्ष से अधिक हो जाने पर भी, अभी तक उसका एक भी दाँत नहीं गिरा है। उसके शरीर पर अभी भी पूर्ववत् बाल है। उसका शारीरिक विकास ठीक प्रकार से हुआ है। पढ़ने में भी वह होशियार है, साथ ही पिंग पोंग का अच्छा खिलाड़ी भी है। कहा जाता है कि रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास के भी जन्म के समय ही मुँह में पूरे दाँत थे। आमतौर पर बच्चे जन्म लेने के बाद रोते हैं, किंतु तुलसीदास जन्म लेने के बाद हंसने लगे थे। इसी से उनके माता-पिता ने उन्हें कोई प्रेत का अवतार समझकर, उनसे त्राण पाने का उपाय सोचा था।

इस तरह के विचित्र बालकों का जन्म क्यों होता है? कौन से कारण ये विलक्षणताएँ उत्पन्न करते है? इस संबंध में वैज्ञानिक केवल अटकलों से ही काम ले रहे है। किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुँच पाना अभी तक संभव नहीं हुआ है। प्रश्न उठता है कि प्रकृति अपने नियमों के अनुसार काम करती हो तो ये अपवाद किन नियमों के अंतर्गत आते हैं? यदि प्रकृति स्वयं अपना संचालन एवं कार्य को संपादन करने के लिए सर्वतः स्वतंत्र नहीं है तो कौन सी शक्ति उसका नियमन करती है? स्पष्ट ही किसी चेतनासत्ता का अस्तित्व स्वीकार करना पड़ता है और ये घटनाएँ इस सत्ता का क्रीड़ा-कौतुक ही कही जाएँगी। आगे चलकर इन विलक्षणताओं का भले ही कोई कारण खोज लिया जाए, किंतु चेतनसत्ता का अस्तित्व निर्विवाद और असंदिग्ध है।


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