22 अगस्त सन् 1944 की घटना है। प्रसिद्ध फ्रांसीसी व्यापारी फ्रेंड स्पेडलिग अपनी मोटर कार से हेरी की ओर बढ़ रहे थे। हेरी वेस्टइंडीज द्वीप समूह के एक टापू पर स्थित सुरम्य स्थान है। अटलांटिक महासागर के फरोपियन द्वीप हिस्यानोलिया के पश्चिमी स्थान में स्पेडलिग प्रायः व्यापार के सिलसिले में आया-जाया करते थे। उस दिन जब वे हेरी की ओर बढ़ रहे थे कि रास्ते में अचानक तूफान आ गया। तूफान भी ऐसा कि पहले कभी नहीं आया था। उस तूफान में करीब 150 व्यक्ति मर गए थे। स्पेडलिग भी उस अंधड़ में फंस गए, फिर भी उन्होंने आगे चलने का निश्चय किया और किसी तरह होटल तक पहुँच जाने की बात सोचने लगे। अपने होटल तक पहुँचने के लिए वे नक्शे की सहायता से आगे बढ़ना चाह ही रहे थे कि उन्हें सुनाई दिया—“पीछे लौट जाओ, यह रास्ता खतरनाक है।”
आवाज बहुत समीप से आई थी। लगता था, कोई कार की पिछली सीट पर बैठा था। स्पेडलिग ने चौककर इधर-उधर देखा। कोई दिखाई नहीं दिया। उन्होंने समझा—कोई भ्रम हुआ है। स्पेडलिग ने अपनी यात्रा जारी रखी। कुछ दूर आगे बढ़े ही थे कि फिर वही आवाज सुनाई दी। शब्द तो वही थे, किंतु इस बार स्वर पहले की अपेक्षा ऊँचा था। स्पेडलिग ने स्वर को पहचाना भी, वह आवाज उनकी पत्नी से बहुत मिलती जुलती थी। मिलती-जुलती इसलिए कि उस समय श्रीमती स्पेडलिग तो उस स्थान से हजारों मील दूर कनेक्टीक्ट (अमेरिका) में थीं। स्पेडलिग को फिर भी उस आवाज पर भरोसा न हुआ और वे बराबर आगे बढ़ते रहे। रह-रहकर वह आवाज सुनाई देती, स्पेडलिग चौंक जाते, सहम उठते और रुक कर थोड़ी देर विचार करने लगते, फिर आगे बढ़ जाते।
यह आवाज कहाँ से आई? कौन आगे बढ़ने से रोक रहा है? पत्नी तो हजारों मील दूर है? फिर उसकी आवाज इतनी स्पष्ट कैसे सुनाई दे रही है? और उसे कैसे मालूम कि यहाँ अंधड़ आया हुआ है तथा मैं उसी में यात्रा कर रहा हूँ? आदि ऐसे प्रश्न थे, जिन पर स्पेडलिग जितना ही विचार करते, उतना ही असमंजस बढ़ जाता था। रुकते-रुकाते वह कुछ घंटों में समुद्रतट के पास बह रही एक नदी के पुल तक पहुँचे। वह पुल पार करने जा ही रहे थे कि देखा—अंधड़-तूफान में उफन रहे समुद्र ने अपनी एक तेज लहर फेंकी और उस लहर के दबाव से नदी पर बना पुल टूटकर ऐसे बहने लगा जैसे नदी में डूबता-उतरता पत्ता। अचानक यह दृश्य देखकर स्पेडलिग कांप उठे। कुछ क्षण पहले भी यदि उन्होंने अपनी कार पुल पर बढ़ा दी होती तो निश्चित ही उनका कहीं पता नहीं चलता।
यह रहस्य ही रहा कि स्पेडलिग को अपनी पत्नी की आवाज और चेतावनी कहाँ से तथा कैसे सुनाई दे रही थी? घर पहुँचने पर तो इसमें रहस्य का एक और अध्याय जुड़ गया। स्पेडलिग जब घर पहुँचे तो उन्होंने अपनी पत्नी से इस घटना की चर्चा की। उनकी पत्नी ने बताया कि ठीक उसी रात को उसने सपना देखा कि उसका पति हेरी के जंगल में भयानक तूफान में फँस गया है। आगे गहरी नदी है, उसमें उसकी मोटर डूबने ही वाली है। इस दृश्य से वह बुरी तरह घबड़ा उठी और सोते- सोते ही चीख उठी—"फ्रेड वापिस लौट जाओ। खतरे से बचो। आगे खतरा है।" वह अपने पति को इसी नाम से पुकारती थी। यह एक रहस्य ही था कि हजारों मील की दूरी पर रह रही श्रीमती फ्रेड को उसी समय ऐसी अनुभूति कैसे हुई, जो न केवल भविष्य बताती थी, वरन एक की स्थिति का दूसरे को तत्क्षण आभास भी देती थी।
ब्रिटेन की सारकिक रिसर्च सोसायटी ने श्री मायर्स की अध्यक्षता में ऐसी अनेक घटनाओं की जाँच-पड़ताल की है, जिनमें मनुष्य की अंतर्निहित अतींद्रिय क्षमताओं का रहस्योद्घाटन होता है। जिन घटनाओं को मनुष्य के भीतर देव-दानव का आवेश कहा जाता है, उनमें से कई घटनाएँ भी इसी प्रकार की अतींद्रिय क्षमताओं से संबद्ध बताई गई हैं। उपरोक्त घटना से मिलती-जुलती एक और घटना सान फ्रांसिस्को की है। वहाँ का एक ट्रक ड्राइवर लुई अपनी पत्नी हैजल रेफर्टी से झगड़ा होने के कारण घर छोड़कर चला गया। झगड़ा इतना बढ़ा कि दोनों ने आवेश में आकर एकदूसरे से कभी न मिलने की कसम खा ली। इतना ही नहीं, उन्होंने वह शहर छोड़कर अन्यत्र चले जाने की बात भी कही, ताकि वे फिर कभी एकदूसरे का मुख न देख सकें।
इन दोनों में घनिष्ठ प्रेम था। इतना प्रेम कि दूसरे लोग उन्हें देखकर ईर्ष्या से जला करते थे। किसी बात पर उन्हें आवेश आ गया और गुस्सा-गुस्से में वे चले गए। किंतु गुस्सा शांत होने पर वे अनुभव करने लगे कि जरा से आवेश में आकर उन्होंने इतना बड़ा कदम उठा लिया है, जो नहीं उठाना चाहिए। वे सोचने लगे कि इतने समय से वे कितनी अच्छी तरह घनिष्ठ मित्रों की भाँति रह रहे थे। जैसे-जैसे दिन बीतते गये, दोनों का पश्चात्ताप बढ़ने लगा और वापस मिलने की बेचैनी भी होने लगी। इस बेचैनी को शांत करने के लिए वे ऐसा उपाय ढूँढने लगे कि साथी को ढूँढ सके और अपनी गलती स्वीकारकर एकदूसरे से क्षमा माँग सकें।
लेकिन समस्या यह थी कि लुई हैजल को और हैजल लुई को कहाँ ढूँढे? दोनों में किसी को भी तो यह पता नहीं था कि उनका साथी कहाँ है? एक दिन सबेरे हैजल ने सुना कि," लुई लास एजिल्टा शहर में है। वह तुम्हारा इंतजार ग्रिफिथ की वेधशाला के पास बैठाकर कर रहा है। हैजल वहाँ तुरंत पहुँच जाओ।" यह आवाज ऐसे सुनाई दी जैसे पास ही कोई रेडियो बज रहा हो और उससे यह सूचना प्रसारित हो रही हो।
ठीक इसी प्रकार की आवाज लुई ने भी सुनी कि, "ग्रिफिथ की वेधशाला पर पहुंचो, वहाँ बैठी हैजल तुम्हारा इंतजार कर रही है।" यह आवाज सुनकर दोनों ही तत्काल दौड़ पड़े और नियत स्थान पर पहुँचते ही दोनों ने एकदूसरे को देखा, आँखों में झाँका। वहाँ पश्चाताप के आँसू इस तरह भरे हुए थे कि पुतलियाँ किसी झील में तैरती-सी प्रतीत हो रही थीं। एकदूसरे को देखकर आँसुओं का वह बाँध टूट गया और दोनों फूट-फूटकर रोए।
अब दोनों के लिए आश्चर्य का विषय यह था कि मिलन की पृष्ठभूमि बनाने वाला यह प्रसारण कहाँ से और कैसे हुआ? लुई को हैजल से मिलने और हैजल को लुई से मिलने के लिए यह अलग-अलग शब्दावली कैसे प्रसारित हुई? अगर यह रेडियो-प्रसारण था तो एनाउंस किसने किया? रेडियो स्टेशन पहुँचकर दोनों ने मालूम किया तो पता चला कि वहाँ से ऐसी कोई सूचना प्रसारित नहीं की गई फिर भी लुई और हैजल ने यह शब्द सुने थे और इसी आधार पर दोनों एकदूसरे से मिले। जब ऐसी कोई सूचना रेडियो द्वारा प्रसारित नहीं की गई तो आश्चर्य का विषय था कि यह सूचना उनके कानों ने कैसे सुनी? परामनोविज्ञानवेत्ता इस घटना को सुनकर और विश्लेषण करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि अतींद्रिय चेतना ऐसा ताना-बाना बुन सकती है। जिसके कारण दो घनिष्ठ व्यक्तियों के विचार एकदूसरे से वार्तालाप कर रहे हों।
अमेरिका के मनःशक्ति संस्थान के निर्देशक डाॅ. ब्रूकेल्स के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति में इस प्रकार की अतींद्रिय क्षमताएँ विद्यमान है, जिन्हें वह प्रयत्नपूर्वक जागृत कर सकता है। कभी-कभी यह शक्तियाँ अनायास भी जागृत हो जाती है, जो आमतौर पर हर किसी में नहीं दिखाई पड़ती। परामनोविज्ञान भी शोध, अन्वेषण और परीक्षणों के माध्यम से इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि मनुष्य की मानसिक शक्तियाँ इतनी सीमित नहीं है जितनी कि वह प्रतिदिन के कार्यकलापों में प्रयुक्त होती दिखाई देती है। उसका एक बहुत बड़ा अंश तो प्रसुप्त ही पड़ा रहता है और लोग उसका कोई उपयोग नहीं कर पाते, जिस प्रकार गड़ा या गाड़ा हुआ धन व्यक्ति के पास कितनी ही संपदा हो सकती है, पर कोई भी व्यक्ति अपनी सारी जमा पूँजी का उपयोग नहीं कर पाता। उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य अपनी कुल जमा पूँजी मानसिक शक्ति का पूरा-पूरा उपयोग नहीं कर पाता।
उनके प्रसुप्त ही पड़े रहने का एक कारण यह भी है कि दिनों-दिन जीवन में उनकी कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। यदि यह आवश्यकता अनुभव की जाने लगे कि उनका जागरण होना चाहिए तो ऐसी परिस्थितियाँ सहज ही विकसित होने लगती है, जिनमें व्यक्ति परोक्षानुभूति की उन विशेषताओं से संपन्न दिखाई पड़ता है, जो चमत्कारी और अद्भुत कही जा सकती हैं। इस तथ्य को प्रमाणित करने वाली अगणित घटनाएँ आए दिन मिलती रहती हैं और उनसे यह सिद्ध हो जाता है कि उस क्षमता को विकसित कर पाना किसी भी व्यक्ति के लिए संभव है। इस तथ्य पर की गई खोजों ने परामनोविज्ञान को और अधिक गहन अन्वेषणों के लिए प्रेरित किया है। तथा टैलीपैथी (विचार-संप्रेषण), क्लेयर वायर (दूरानुभूति), प्रीकाग्नीशन (पूर्वाभास) अब परामनोविज्ञान को स्वतंत्र-धारा बन गई है।
कुछ समय पूर्व तक इस तरह की बातों पर संदेह किया जाता था और उनकी यथार्थता अविश्वसनीय समझी जाती थी। ऐसी घटनाओं को मात्र जादूगरी के अतिरिक्त कोई महत्त्व नहीं दिया जाता था, किंतु अब विज्ञान क्रमशः इन्हें ऐसे प्रामाणिक तथ्य मानता चला जा रहा है, जिसकी खोज भौतिकी के अन्य क्रियाकलापों की तरह ही आवश्यक है। चेतना के संबंध में अभी तक जितनी जानकारी प्राप्त हो सकी है, उससे स्पष्ट हो चला है कि मनुष्य-मनुष्य के बीच पड़ी हुई गोपनीयता की दीवार उठ सकती है और न केवल एकदूसरे की अंतःस्थिति को जाना जा सकता है, अपितु कार्यक या भौतिक उपकरणों का प्रयोग किए बिना भी दूरस्थ रहे व्यक्तियों से भावनात्मक आदान-प्रदान संभव है।
परामनोविज्ञान के अनुसार विश्वमानस (यूनिवर्सल माइंड) एक समग्र विचार-सागर है और व्यक्ति की चेतना उसकी अलग-अलग लहरें हैं। ये लहरें अलग- अलग दिखाई देने पर भी एकदूसरे से अविच्छिन्न रूप में संबद्ध हैं। उस समग्र विचार-सागर से ही व्यक्तिगत चेतना अनेकविधि चेतनाएँ और स्फुरणाएँ उपलब्ध करती है। अध्यात्मशास्त्र तो इस मान्यता को काफी पहले से प्रामाणिक और अनुभवसिद्ध मानता रहा है। उसके अनुसार समस्त प्राणी एक ही विराट चेतना का अस्तित्व है। कायकलेवर की दृष्टि से अलग दीखते हुए भी सभी प्राणी आत्मिक दृष्टि से एक ही हैं। व्यक्तिगत भौतिकता और स्वभावगत विभिन्नताएँ एकदूसरे के विपरीत स्तर को दिखाई देने पर भी न केवल उनकी मूलप्रवृत्ति में साम्य है; वरन ऐसा पारस्परिक संबंध भी है जिसे पूर्णतया अलग कर पाना संभव नहीं हो सकता। अतींद्रिय क्षमताओं को प्रमाणित करने वाली घटनाएँ इसी तथ्य को सिद्ध करती है। भविष्य में जब इनका रहस्योद्घाटन होगा तो मनुष्य की सत्ता के बारे में यह विश्वासपूर्वक सप्रमाण कहा जा सकेगा कि वह उतना ही नहीं है जितना कि शारीरिक और मानसिक क्षमता के आधार पर जाना-समझा जाता है।