राजा गहरी नींद में सोया हुआ था। उसने देखा, राजमहल से एक देवपुरुष निकलकर जा रहे हैं और उसके पीछे तीन देवियाँ भी प्रयास कर रही हैं। राजा ने देवपुरुष से पूछा, आप कौन हैं और आपके पीछे जाने वाली यह तीन देवियाँ कौन हैं? आप सबके जाने का कारण क्या है?
देवपुरुष ने कहा, मेरा नाम है सुसंस्कार। विवेक इसी से जन्म लेता है। जहाँ विलास और अधर्म के पैर जमते हैं, वहाँ मैं नहीं रहता और यह तीन देवियाँ भी मेरे साथ ही विदा हो जाती हैं। इनका नाम है- लक्ष्मी, कीर्ति और बुद्धि।
राजा की आँख खुली। उसने यथार्थता पर विचार किया और पाया कि उनके क्षेत्र में विलास और अधर्म बढ़ रहा है। सुसंस्कारजन्य प्रवृत्तियां घट रही हैं, अनाचार बढ़ रहा है। ऐसी दशा में इन विभूतियों का विदा होना स्वाभाविक ही है। राजा ने अपनी कार्यपद्धति में आमूल चूल परिवर्तन कर दिया।
दूसरे दिन स्वप्न आया कि वे चारों ही लौट आए हैं। जहाँ विवेक रहता हैं, चिंतन में श्रेष्ठता रहती है, वहाँ सभी विभूतियाँ बनी रहती हैं।