सारी स्त्रियाँ मेरी माँ के समान (Kahani)

December 2002

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रामकृष्ण परमहंस से एक बार उनके एक परिचित ने पूछा, महाराज, आप अपनी पत्नी के साथ गृहस्थ जीवन क्यों नहीं बिताते?

प्रश्न सुनकर परमहंस कुछ पल चुप रहे, फिर मुस्कुराते हुए बोले कि तुमने कार्तिकेय का किस्सा सुना है? एक दिन बालक कार्तिकेय ने खेल खेल में एक बिल्ली को नोंच खरोंच दिया। घर आए, तो अपनी माँ का मुख देखकर हैरान रह गए। माँ के गालों पर नाखूनों की खरोंच के वैसे ही निशान पड़े थे। कार्तिकेय ने आश्चर्य से खरोंच के निशानों का कारण पूछा, तो माँ बोली, बेटा यह तेरा ही कार्य है। तूने ही तो अपने नाखूनों से मुझे नोंचा है।

मैंने नोंचा है? बालक कार्तिकेय का आश्चर्य और बढ़ा। अविश्वास के स्वर में बोला, मैंने तुमको कब नोंचा?

क्यों, भूल गया क्या? आज तूने बिल्ली को नोंचा खरोंचा नहीं था?

बिल्ली को तो जरूर नोंचा था........कार्तिकेय ने उसी स्वर में कहा, लेकिन तुम्हारे गालों पर निशान कैसे पड़ गए?

अरे बेटा, माँ बोली, मेरे सिवा इस संसार में और है ही कौन? सारा संसार मेरा ही स्वरूप है। यदि तू किसी को सताता है, तो मुझे ही तो सताता है।

कार्तिकेय से कुछ कहते न बना। निश्चय कर लिया उसने, मैं विवाह ही नहीं करूंगा। संसार की सब स्त्रियाँ जब मातृवत् हैं, तो विवाह करूं भी तो किसके साथ?

रामकृष्ण ने इतना कहकर कारण बताया, कार्तिकेय के समान मेरे लिए भी संसार की सारी स्त्रियाँ मेरी माँ के समान हैं। तुम्हीं बताओ, गृहस्थ जीवन किसके साथ बिताऊँ?


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