रावण का सारे भूमंडल पर दबदबा था। सभी राज्य और संपन्न व्यक्ति उसे कर देते थे, पर उससे उसकी तृष्णा शाँत न हुई। उसने ऋषियों से भी कर वसूलना आवश्यक समझा। सलाहकारों ने ऋषियों की शक्ति और उनके क्रोध की बात समझाने का प्रयास भी किया, तो अहंता ने उसे कुछ महत्व न दिया। उसने व उसके साथियों ने ऋषियों के कार्य में विघ्न डाल-डालकर उन्हें रुष्ट किया। ऋषियों ने कर के रूप में एक-एक बूँद रक्त घड़े में भरकर भेज दिया, उसी से सीता का जन्म हुआ और रावण का सपरिवार विनाश के गर्त में जाना पड़ा।