किचक राजा विराट का साला भी था और प्रधान सेनापति भी। वीर इतना कि जब पाँडव अज्ञातवास में थे, तो अकेले कौरवों को परास्त करके उन्हें संधि करने पर विवश कर दिया। द्रौपदी को देखकर वासना में बह गया। राजा स्तर के अधिकार उसके पास थे, किसी प्रकार की कमी न थी, परंतु दासी द्रौपदी के आगे प्रणय निवेदन में भी लाज न आई।
द्रौपदी ने सावधान भी किया, ऑर कहा-मेरे रक्षक गंधर्व हैं, वे क्रुद्ध होंगे, परंतु अहंता में उसने न राजा विराट की नाराजी को कुछ समझा, न गंधर्वों की परवाह की। वासना और अहंता की लपेट में उसे यश, सम्मान और जीवन से भी हाथ धोना पड़ा।