अनेकों घटनायें तथा तथ्य प्रश्न बनकर मानवीय मस्तिष्क को चुनौती देते हैं। उन्हें असंभव मान लेने पर विचारों का विकास रुक जाता है। हमारा समाज हमारे विचारों का ही प्रतिबिम्ब है। विचार प्रवाह को अवरुद्ध कर देने से समाज के विकास की गति धीमी पड़ गयी है। अतः तथ्यों को असंभव मानने की अपेक्षा उनका नवीन दृष्टि से विश्लेषण करना ही उचित है।
न्यूटन की दृष्टि से भौतिक जगत् में प्रत्येक वस्तु की एक निश्चित पहचान और स्थान है। एक व्यक्ति एक समय एक ही स्थान पर रह सकता है। कपड़े का रंग हरा,नीला अथवा कोई और हो सकता है। क्वाण्टम फिजिक्स ने आज अथवा इस दृष्टिकोण पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है, उसके अनुसार जो स्थूल नेत्रों से दिखाई दिया है,उसके परे भी सत्य है और हमें उस पर विश्वास करना सीखना होगा। हमारे मस्तिष्क के लिए यह एक नवीन दृष्टिकोण है अतः इसे अपनाना कठिन कार्य है। रिचर्ड पास्कल के अनुसार “कुछ विषयों पर विचार करना लगभग असंभव है क्योंकि हमारा मस्तिष्क उसका आदी नहीं है।”
वर्षों तक यह विवाद चलता रहा कि प्रकाश तरंगों से बना है अथवा कणों से। क्वाण्टम रियलिटी ने रहस्योद्घाटन किया कि प्रकाश तरंगों तथा कणों दोनों से बना है। किन्तु किसी प्रयोग में प्रकाश शृंखला बद्ध तरंगों के रूप में दिखता है तो किसी में कणों का प्रवाह। पर दोनों रूपों में एक साथ प्रकाश को नहीं देखा जा सकता। दोनों रूपों में से कोई एक अधिक प्रमुख भी नहीं है। दोनों समान रूप से एक दूसरे के पूरक हैं। क्वाण्टम थ्योरी के अनिश्चितता के सिद्धान्त के अनुसार हम प्रकाश से नहीं कह सकते, “अपने वास्तविक स्वरूप को दिखाओ।” परन्तु जो दिखायी नहीं देता उसके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। किसी वस्तु का एक साथ एक से अधिक रूपों में रहना भी असंभव नहीं।
मशीनों का एक निश्चित स्वरूप होता है। आसपास के वातावरण का उन पर नगण्य सा प्रभाव पड़ता है। किन्तु अणु-परमाणु अपना स्वरूप वातावरण के संपर्क में रहकर बदलते रहते हैं। जिस प्रकार प्रयोग किये गये स्थान के अनुसार एक ही शब्द के दो भिन्न स्वरूप अथवा अर्थ स्पष्ट होते हैं उसी प्रकार क्वाण्टम रियलिटी बाह्य वातावरण के अनुसार अपना स्वरूप बदल लेती है-जिसको ‘कान्टेक्स्चुएलिजम’ कहते हैं। सामाजिक जीवन में भी इसी नियम के तहत किसी सत्य का अन्वेषण उसके आसपास के देश,काल,परिस्थिति को ध्यान में रखकर करना ही समुचित परिणाम दे सकता है। फ्रेंच दार्शनिक मोरिस मर्लो पोण्टी के अनुसार सत्य की परिभाषा दी गयी परिस्थिति के अनुसार ही की जा सकती है।
प्रकाश का एक साथ कणों और तरंगों के रूप में रहना तथा अणुओं के बाह्य परिस्थिति-वातावरण के अनुसार स्वरूप बदल लेने की क्रियाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि जो कुछ हम देखते हैं वही सब कुछ नहीं है। ऐसा भी बहुत कुछ है जिसका हमें अनुभव नहीं हुआ अथवा जिसे व्यक्त अथवा प्रदर्शित करना संभव नहीं। अतः तत्कालीन परिस्थितियों की जानकारी करके वस्तुएँ क्या हैं इससे अधिक ध्यान कि वे कहाँ जा रही हैं तथा उनका स्वरूप कैसा बन रहा है, इस पर दिया जाए तो दृष्टिकोण अधिक विस्तृत तथा क्रान्तिकारी बनेगा।
समस्त संसार परिवर्तनशील है। आज का नन्हा बालक भविष्य में पूर्ण विकसित पुरुष या नारी में परिवर्तित हो जाता है। वर्तमान के गर्भ में आश्चर्यजनक भविष्य छुपा हो सकता है। आज के आधार पर कल का निर्धारण ठीक नहीं है। लोगों के व्यवहार एवं व्यक्तित्व को भी स्थायी नहीं माना जा सकता। जो आज असंभव लग रहा है कल वह संभव हो जाये तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए। क्वाण्टम रियलिटी की दृष्टि से सिद्ध यह तथ्य हमें पुनः अपने पुराने दर्शन तथा अध्यात्म को स्वीकारने की प्रेरणा देता है।
अनिश्चितता क्वाण्टम रियलिटी का एक अंग है। नील बोर के अनुसार सामान्य अवस्था में परमाणु के भीतर अपनी ऊर्जा के अनुसार इलेक्ट्रान निश्चित परिधि में न्यूक्लियस के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। पर जब परमाणु की आँतरिक ऊर्जा व्यवस्था में अनिश्चित कारणों से अस्थिरता आती है तब इलेक्ट्रान वर्तमान ऊर्जा स्तर से नीचे-ऊपर अथवा किसी अन्य एनर्जी लेवल में चले जाते हैं।
हालाँकि यह जानने का कोई उपाय नहीं है कि एक निश्चित इलेक्ट्रान किस पथ से और क्यों जायेगा। इससे भी अधिक आश्चर्यजनक तथ्य बर्नार्ड डि ऐस्पेग्नेट ने “रियलिटी एण्ड द फिजिसिस्ट” में दिया है कि इलेक्ट्रान सभी संभव मार्गों से एक ही समय पर जाता है-मानो पूरे स्थान विशेष में वह लीपा हुआ हो और एक ही समय में हर जगह उपस्थित हो। यही बात सामाजिक संदर्भ में भी लागू होती है। इलेक्ट्रान के नये एनर्जी लेवल पर पहुँचने के बाद ही उसका वास्तविक मार्ग निश्चित होता है। उसी प्रकार अनेकों संभावनाओं के सत्य घटना में परिवर्तित होने तक अनिश्चितता बनी रहती है। जीन्स में होने वाले परिवर्तन अगली पीढ़ी में व्यक्त होंगे अथवा नहीं-यह भी प्राकृतिक अनिश्चिंतता का एक उदाहरण है। इसलिए कहा गया है कि कोई भी कार्य प्रारंभ करने से पूर्व तदनुकूल परिस्थितियों का विश्लेषण करें और यह भी ध्यान रहे कि कुछ भी संभव हो सकता है।
हालाँकि यह जानने का कोई उपाय नहीं है कि एक निश्चित इलेक्ट्रान किस पथ से और क्यों जायेगा। इससे भी अधिक आश्चर्यजनक तथ्य बर्नार्ड डि ऐस्पेग्नेट ने “रियलिटी एण्ड द फिजिसिस्ट” में दिया है कि इलेक्ट्रान सभी संभव मार्गों से एक ही समय पर जाता है-मानो पूरे स्थान विशेष में वह लीपा हुआ हो और एक ही समय में हर जगह उपस्थित हो। यही बात सामाजिक संदर्भ में भी लागू होती है। इलेक्ट्रान के नये एनर्जी लेवल पर पहुँचने के बाद ही उसका वास्तविक मार्ग निश्चित होता है। उसी प्रकार अनेकों संभावनाओं के सत्य घटना में परिवर्तित होने तक अनिश्चितता बनी रहती है। जीन्स में होने वाले परिवर्तन अगली पीढ़ी में व्यक्त होंगे अथवा नहीं-यह भी प्राकृतिक अनिश्चिंतता का एक उदाहरण है। इसलिए कहा गया है कि कोई भी कार्य प्रारंभ करने से पूर्व तदनुकूल परिस्थितियों का विश्लेषण करें और यह भी ध्यान रहे कि कुछ भी संभव हो सकता है।
बिना किसी शक्ति अथवा संकेत का आदान-प्रदान किये किसी वस्तु का दूसरी से तत्काल संपर्क होने को हम भूत-प्रेतों का कार्य मानते हैं। रिलेटिविटी थ्योरी के अनुसार ऐसा कुछ भी नहीं जिसकी गति प्रकाश से अधिक तीव्र हो। अतः “तत्काल हेतुक प्रभाव” जैसा कुछ होना संभव नहीं। आइन्स्टीन ने भी इसे ‘भूतहा तथा बकवास’ कहा। अपने कथन को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने प्रख्यात् आइन्स्टीन-पोडोलस्की-रोजन पैराडॉक्स दिया, जिसे इस उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। बाल्यकाल में बिछुड़े दो जुड़वा भाई-बहन हैं जो दो सुदूर स्थानों में रहते हैं। वे एक दूसरे से पूर्णतया अनभिज्ञ हैं। किन्तु उनके जीवन में आश्चर्यजनक समानताएँ हैं। दोनों तिमञ्जिले मकान में रहते हैं,विवाह चिकित्सक से हुआ है,प्रिय रंग लाल है तथा दोनों ही उपन्यासकार हैं। आइन्स्टीन ने अपनी “थ्योरी ऑफ हिडन वैरियेबल्स” के द्वारा कहा कि दोनों में कोई गूढ़ तत्त्व इस साम्य का कारण है। वह तत्त्व समान अनुवाँशिक गुण भी हो सकता है। किन्तु आयरिश फिजिसिस्ट जॉन बेल ने ‘बेल्स थ्योरम’ के द्वारा आगे प्रतिपादित किया कि दोनों बच्चे विभिन्न नृत्य विद्यालयों में एक साथ प्रवेश लेते हैं। नृत्य करते समय एक का हाथ ऊपर उठता है तो तत्काल दूसरे का भी हाथ ऊपर उठता है। इस तत्काल घटित क्रिया के पीछे अनुवाँशिक कारण का होना संभव नहीं। न ही प्रकाश से अधिक तीव्र कोई संकेत हो सकता है जो उनको एक दूसरे की प्रत्येक क्रिया की जानकारी दे सके। फिर दोनों के व्यवहार में ऐसी समानता किस प्रकार संभव हो सकती है। मानो वे एक ही कमरे में नृत्य कर रहे हों। इसे ‘भूतहा या बकवास’ कहा तो जा सकता है पर ऐसी सत्य घटनाएँ जीवन का एक अंग हैं। विश्व में एक साथ एक जैसी क्रान्तियों का जन्म लेना या दो भिन्न स्थानों पर एक दूसरे से अनभिज्ञ दो व्यक्तियों द्वारा एक साथ एक जैसे विचारों का प्रतिपादन करने की अनेकों घटनाएँ हैं। स्वतंत्रता आन्दोलन भारत में छिड़ा तब अन्य कई देशों में ऐसी ही क्रान्तियाँ भड़की। इसी प्रकार स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक साथ अनेकों सन्तों एवं वीरों का जन्म लेना ऐसी ही एक घटना है।
समाजवादी तथा इतिहासकार इन घटनाओं के पीछे ‘संयोग‘ अथवा ऐसे अनेकों कारण बता सकते हैं। किन्तु क्वाण्टम फिजिक्स के अनुसार एक ऐसी सार्वभौमिक शक्ति “क्वाण्टम होल “ है, जिसका गूढ़ तंत्र इन घटनाओं को संचालित करता है। यही तंत्र उन एक जैसी घटनाओं के लिए भी उत्तरदायी है जो भिन्न समय में घटित होती हैं।
सम्पूर्ण ब्रह्मांड को संचालित करने वाली यह सार्वभौमिक शक्ति समस्त प्राणियों एवं ब्रह्मांड में घटने वाली प्रत्येक घटना को आपस में जोड़े हुये है। कोई राजनीतिज्ञ अथवा अधिकारी किसी घटना को उतना नियंत्रित अथवा प्रभावित नहीं कर सकता जितना एक संवेदनशील व्यक्ति जो लोगों की भावनाओं से गहराई तक जुड़ा है। वह जानता है कि किस विशेष परिस्थिति में जन मानस की तत्काल कैसी प्रतिक्रिया होगी। दृष्टिगत रूप से स्पष्ट है कि ताकत राजनीतिज्ञ अथवा अधिकारी के पास अधिक है। फिर ऐसी कौन सी अदृश्य शक्ति है जो एक संवेदनशील व्यक्ति को अधिक सामर्थ्यवान बना देती है। यह वही सर्वसामर्थ्यवान अदृश्य तंत्र है जो प्रत्येक मनुष्य की भावनाओं का नियंत्रण-संचालन करता है। असंभव को संभव बनाता है। यह बात समझ लेने पर सामाजिक-पारिवारिक संस्थाओं में व्याप्त कठोर अनुशासन तथा निश्चित कार्यों में उदारता का समावेश किया जा सकेगा। वैचारिक ढाँचे में होने वाले इस महत्त्वपूर्ण परिवर्तन में ही भावी समाज में क्रान्ति की सम्भावना निहित है।