महाकाल का संदेश (Kahani)

December 2002

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

महाकाल का संदेश

परमपूज्य गुरुदेव ने जीवन भर जनकल्याण हेतु साहित्य सृजन किया, उनके तप एवं ज्ञान का निचोड़ उनके साहित्य में है। सभी लोगों तक यह ज्ञानगंगा पहुँचे, इसीलिए पं. श्री राम शर्मा आचार्य वाङ्मय का प्रकाशन किया गया है। लाखों ने इसे पढ़कर जीवन धन्य बनाया है। हर घर में वाङ्मय की स्थापना होनी चाहिए, परिवार के लिए यह अमूल्य धरोहर एवं विरासत है।

यदि आपको भगवान ने श्री संपन्नता दी है, तो ज्ञानदान कर पुण्य अर्जित करें। विशिष्ट अवसरों एवं पूर्वजों की स्मृति में पूज्यवर का वाङ्मय विद्यालयों, पुस्तकालयों में स्थापित कराएँ। विवाह, जन्मदिवस एवं अन्य उत्सवों पर अथवा पारितोषिक स्वरूप भी यह साहित्य अमूल्य भेंट सिद्ध होगा। आपका यह ज्ञानदान आने वाली पीढ़ियों तक को सन्मार्ग पर चलाएगा, जो भी इसे पढ़ेगा, धन्य होगा। शास्त्रों में कहा है-

सर्वेषामेव दानानाँ ब्रह्मदाँन विशिष्यते। वार्यन्नगोमहीवासस्तिलकाज्जनसर्पिषाम॥ -मनुस्मृति 4/233

जल, अन्न, गौ, पृथ्वी, वस्त्र, तिल, सुवर्ण और घी, इन सबके दानों में से ज्ञान का दान सबसे उत्तम है।

श्रेशन्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परंतप। सर्व कर्माखिंल पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते॥ -गीता 4/33

है परंतप! द्रव्ययज्ञ से ज्ञानयज्ञ श्रेष्ठ है, क्योंकि जितने भी कर्म हैं, वे सब ज्ञान में ही समाप्त होते हैं। ज्ञानदान सर्वोपरि पुण्य है, शुभ कार्य है।

महामनीषी चाणक्य राज्य के प्रधानमंत्री भी थे। दिनभर वे संपर्क और व्यवस्था कार्यों में निरत रहते। रात्रि को सरकारी कार्य देखते और उपासना कृत्य पूरा करते।

उनके पास दो दीपक थे एक को तब जलाते, जब राज्य का काम करते, उसमें राजकोष का तेल जलता, पर जब वे उपासना करते, तो पहला दीपक बुझाकर दूसरा जलाते, जिसमें उनके निजी परिश्रम का उपार्जित तेल जलता।

चाणक्य कहते थे, उपासना निजी लाभ के निमित्त की जाती है, उसकी सुविधा में दूसरों की सहायता क्यों ली जाए?


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118