महान ईसाई धर्मशास्त्री संत थामस एक्विनास ने विद्वान मित्र फादर रेजिनाल्ड के सहयोग से एक पाँडित्यपूर्ण शास्त्र लिखने का निर्णय लिया, परंतु शाम को सलीब के सामने प्रार्थना करने बैठे, तो भाव समाधि में ऐसे डूबे कि आंखों से अश्रुधारा बह निकली। घंटों मुग्धभाव से बैठे रहे। इसी बीच उनके विचारों में न जाने ऐसे परिवर्तन हुआ कि शास्त्र लिखने का निर्णय ही बदल दिया।
रात को फादर आए और उन्होंने धर्मशास्त्र लिखने की चर्चा छेड़ी, तो संत थामस का उद्रेक फूट पड़ा, शास्त्र अब कभी न लिखा जा सकेगा। आज प्रभु कृपा से सलीब ने मुझे यह अंतर्ज्ञान दिया है कि समग्र विश्व का कल्याण करना, उसकी आस्थाएँ एवं श्रद्धा विश्वास जगाना ही धर्म का सार है। पाँडित्यपूर्ण शास्त्र का ज्ञान तो अहंकार ही उत्पन्न करता है, जो मानव की प्रत्येक प्रकार की प्रगति में अवरोध उत्पन्न करता है।