भावी कार्यक्रम
परमपूज्य गुरुदेव द्वारा 1980-81 में शक्तिपीठों की प्राण प्रतिष्ठा का क्रम क्षेत्र में चला था। 2005-2006 में इस ऐतिहासिक शुभारंभ की रजत जयंती का वर्ष आ रहा है। केंद्र की इच्छा है कि जिन स्थापनाओं ने वातावरण को गायत्रीमय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उन सभी को इस विशिष्ट वर्ष 2005-2006 (वसंत से बसंत तक) में अपने केंद्र का वार्षिकोत्सव विशिष्ट उद्देश्यों के साथ समाना चाहिए। उनकी शृंखला केंद्र में यहाँ बनाई जाएगी तथा समयदानियों के माध्यम से ही इस क्रम को संपन्न कराया जाएगा। इस सम्बन्ध में विस्तार से भावी पत्रिकाओं के संपादकीय पढ़ें,
अगला वर्ष संगठन- सशक्तीकरण वर्ष का उत्तरार्द्ध है, यह जनवरी 2004 तक पूर्णता तक पहुँचेगा। इस पूरे वर्ष एक अतिरिक्त दायित्व वाङ्मय की स्थापना एवं पत्रिकाओं के पाठक बढ़ाया जाना एक विशेष जिम्मेदारी के रूप में लिया जाएगा।
कृपया ध्यान दें
बड़े भाव भरे वातावरण में अपना शपथ स्वर्ण जयंती समारोह संपन्न हुआ। साथ ही ऋषियुग्म की युगल मूर्ति की स्थापना भी हुई। परमपूज्य गुरुदेव प्रायः तीस वर्ष एवं परमवंदनीया माता जी प्रायः 26 वर्ष इस पावन मथुरा नगरी में विराजमान रहे। उसी आधार पर यह निर्धारण हुआ कि वेदमाता गायत्री के विग्रह के दोनों ओर दोनों की सुँदर सी मूर्तियाँ इस वर्ष के क्रम में जो गायत्री तपोभूमि की स्थापना का पचासवाँ वर्ष है, सबके दर्शनार्थ स्थापित की जाएँ। ब्रह्मा जी का मंदिर मात्र पुष्कर में है और कही नहीं, ऐसे ही इस युग के विश्वामित्र गायत्री महाशक्ति को लुप्त होने से बचाने वाले गुरुदेव का विग्रह मात्र मथुरा में ही स्थापित रहेगा, और कही नहीं। सजल श्रद्धा प्रखर प्रज्ञा भारत में कही भी स्थापित की जा सकती हैं। सबसे महत्वपूर्ण है उनके ज्ञान शरीर की स्थापना। जितना प्रयास इस दिशा में चलेगा, उतना ही परिजन गुरु अनुकंपा के भागीदार बनेंगे।
ज्ञातव्य
‘प्रज्ञा परिषद’ की स्थापना पूरे भारत वर्ष के हर जनपद में होनी हैं। सातों जोनों के केंद्रों द्वारा ही मुख्य केंद्र से इनका संचालन होगा। अभी कोई अपने मन से इनका गठन न करें। इसके लिए शाँतिकुँज द्वारा विधिवत एक संविधान उसके नियम उपनियम बनाए जा रहे हैं। यह विशुद्ध रूप से अपने परिजनों के माध्यम से प्रबुद्ध वर्ग के विशिष्ट व्यक्तियों को मिशन की कार्यविधि से जोड़ने वाला माध्यम बनेगा। परिजन अभी फरवरी 23 की तीनों पत्रिकाओं के अंकों की प्रतीक्षा करें। जब यह भलीभाँति समझ में आ जाए, तब इस कार्य को गति दें, ध्यान रखें कि यह कोठ्र समानांतर तंत्र नहीं। यह हर जनपद या जोनल समन्वय समिति का एक घटक ही होगी एवं पूर्णतः जोनल केंद्रीय अनुशासन में कार्य करेगी। ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की रजत जयंती के उपलक्ष्य में 24 में वर्षभर इसके माध्यम से सारे देश में प्रबुद्ध वर्ग के सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे।
*समाप्त*