कठोर अनुबंधों के सहारे (Kahani)

December 2002

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जोधपुर महाराज एक युद्ध में लड़ने के लिए सेना समेत गए। हार होती देखकर अपनी जान बचाकर भाग आए, रात्रि को किले का दरवाजा खटखटाया, प्रहरी रानी के पास गए। उस स्थिति में रात्रि के समय दरवाजा उनकी आज्ञा से ही खुल सकता था।

रानी ने पूरा विवरण सुनने के बाद दरवाजा न खोलने का हुक्म दिया और राजा से कहलवा भेजा, जोधपुर नरेश होते तो पीठ दिखाकर न आते। या तो जीतकर लौटते या उनकी लाश वापस आती। भगोड़ा तो कोई छद्मवेशधारी हो सकता है।

राजा का पहरेदारों ने रानी का आदेश सुनाया। वे उल्टे पैर वापस लौट गए। पूरे जोश के साथ दुबारा लड़े और जीतकर वापस लौटे।

इस देश और जातीय जीवन की समर्थता ऐसे ही कठोर अनुबंधों के सहारे विकसित हुई थी।


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