प्रवासी पक्षियों की ये नैसर्गिक यात्राएँ

December 2002

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अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी से दूर कुछ दिन कहीं प्रवास पर जाकर सुकून के दिन बिताना किसे अच्छा नहीं लगता? बदलाव की यह नैसर्गिक आकाँक्षा सिर्फ इंसानों में ही नहीं अपितु पक्षियों में भी पायी जाती है। तेज बारिश एवं कड़ी धूप में भी हजारों मील का सफर तय करके पक्षी अपने पर्यटन की आकाँक्षा पूरी करते हैं।

भारत में शरद ऋतु के प्रारम्भ होने के साथ ही प्रवासी विदेशी पक्षियों का आना शुरू हो जाता है। भारत के विभिन्न अभ्यारण्यों के जल-थल एवं नभ पर विविध गुंजन, कूक-कलरव क्रीडारत ये पक्षी चित्ताकर्षक महाकुम्भ का दृश्य उपस्थित करते हैं। ये पक्षी कुछ समय के प्रवास के लिए 15-20 हजार फीट ऊँची बर्फीली चोटियों को पार कर टील्स, गीज, पोचाड़, केन्स, पेलिकन्स आदि मध्य एशिया एवं उत्तरी यूरोप से भारत के आँतरिक क्षेत्रों में आते हैं। पंजाब से केरल तथा गुजरात से असम तक ये पक्षी अपने अनुकूल स्थानों को प्रवास के लिए चुन लेते हैं। उदाहरण के लिए राजस्थान के भरतपुर क्षेत्र के घाना पक्षी अभ्यारण्य व केवला देव राष्ट्रीय उद्यान तथा मध्यप्रदेश के शिवपुरी क्षेत्र की दिहाला झील और बखखेड़ा तालाब में प्रतिवर्ष सौ प्रकार की जातियों से भी अधिक के पक्षी प्रवास हेतु एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं।

काफी समय से वैज्ञानिक यह जानने का प्रयत्न कर रहे हैं कि ये पर्यटक पक्षी किन कारणों से इतनी लम्बी यात्राएँ करते हैं? इनका मार्ग निर्देशन कौन करता है? कौन इन्हें उपयुक्त समय की सूचना देता है? किस प्रयोजन से बच्चे,बूढ़े-जवान पक्षी अपनी मञ्जिल की ओर द्रुतगति से चले जाते हैं। पक्षी विशेषज्ञों ने इस पर्यटन के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए निरंतर अनेक प्रयोग किये,किन्तु इस संबंध में बहुत सी बातें अभी भी अबूझ हैं।

इसके लिए एक तरीका अपनाया गया है जो लाभदायक सिद्ध हुआ है और वह है इन पर्यटक पक्षियों के पैरों में धातु के बने छल्ले पहना देना। छल्ले पर, छल्ला पहनाने वाले का नाम, पता व छोटा सा अनुरोध लिखा रहता है कि यदि कोई इस पक्षी का शिकार करे या कैद करे तो इस छल्ले पर लिखे पते पर शिकार के स्थान का उल्लेख करते हुए वापस कर दे। यह विधि लगभग 65 वर्षों से सफल रूप से प्रयोग में लायी जा रही है। इससे यह पता चलता है कि पर्यटक पक्षी 2000 मील तक की यात्रा करते हैं। कई खंजन पक्षी जो सिर्फ शरद ऋतु में ही उत्तर भारत में दिखाई देते हैं, सुदूर साइबेरिया में मारे गये। उनके पैर के छल्लों को देखने से यह मालूम हुआ कि वे छल्ले उन्हें जाड़े के दिनों में सिंधु तीरे पर भारत में पहनाये गये थे। यह भी पता चला है कि कुछ पक्षी 27000 मील तक सफर करते हैं।

इंग्लैंड में पक्षियों की एक ऐसी जाति है जिसमें वयस्क और बूढ़े पक्षी पहले उड़कर चले जाते हैं और बच्चे को अपने पीछे आने का आदेश दे जाते हैं। यह बच्चे बिना किसी अनुभव के लंबे अनजान रास्तों को तय करते हैं और परिवार के वयस्कों के पास ठीक जगह पर जा पहुँचते हैं। किस प्रकार यह अपना मार्ग सही-सही तय कर लेते हैं, यह जानकारी अभी पूरी तरह नहीं मिल पाई है। सैलानी पक्षी समूह में तथा एकाकी प्रतिवर्ष हजारों-लाखों की संख्या में एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश की यात्रा करते हैं। हिमालय की ऊंचाइयां एवं प्रशाँत महासागर की गहराइयाँ भी इनके मार्ग की बाधाएँ नहीं बन पातीं। ये पक्षी वर्ष की किसी ऋतु विशेष में देखने को मिलते हैं,ऋतु समाप्त होते ही अदृश्य हो जाते हैं और दूसरे वर्ष उसी ऋतु के आरम्भ होते ही पुनः आ जाते हैं।

छोटी-छोटी चिड़ियाँ जैसे गौरैया आदि फसल तैयार होने का समय आते ही किसी अज्ञात प्रेरणा शक्ति द्वारा शहरी इलाकों को छोड़कर ग्रामीण क्षेत्रों की ओर उड़ जाती हैं। ऐसा ये इसलिए करती हैं ताकि उन्हें खेत में गिरे दाने अथवा फसल चुगने का अवसर मिले, फसल कट जाने के बाद जब खेत अन्न कणों से रिक्त हो जाते हैं तब वे पुनः वापस लौट जाती हैं। भारत के प्रमुख पर्यटक पक्षियों में खंजन, राजहँस, चक्रवाक और कररी हैं। हंसों का सबसे प्रिय निवास स्थान मानसरोवर है।

छल्ले पहचानने के अतिरिक्त कुछ और परीक्षण भी इस विषय की विस्तृत जानकारी हासिल करने के लिए किये गये हैं। इनमें से एक है बर्डकास्ट नामक एक कार्यक्रम द्वारा राडारों से पक्षियों के प्रवास की पूरी जानकारी एकत्र करना। एक अन्य तकनीक बायोएकास्टिक यह बता पायेगी कि आसमान में उड़ने वाले पक्षी कौन सी प्रजाति के हैं। बर्डकास्ट प्रोग्राम के तहत पक्षियों की छवियां जब प्रसारित की गई तो मेरीलैंड के दर्शक स्लाइड शो देखने के पश्चात काफी प्रभावित हुये। प्रवास का दृश्य सूर्यास्त में दिखने वाले पक्षियों के झुण्ड से अलग होता है। साथ ही बड़ा भी। ये सिर्फ एक छोटा झुँड न होकर सैकड़ों-हजारों पक्षियों का होता है। पक्षी विज्ञानी की इस राडार प्रोग्राम बर्डकास्ट के द्वारा पक्षी प्रवास की ऑनलाइन फोरकास्ट किया जाता है। यह मध्य एटलाँटिक पक्षियों के बारे में अनुमान प्रसारित करता है जो कि गोधूलि बेला से मध्यरात्रि के दौरान होता है। यह वह समय है जब पक्षियों का प्रवास अपने चरम पर होता है।

बर्डकास्ट वेबसाइट पक्षियों की राडार छवियां उपलब्ध कराती है। यह छवियां राडार स्टेशनों से डाउनलोड की जाती हैं, जिससे कि नेशनल वेदर सर्विस द्वारा पहले दिन की भविष्यवाणी की सत्यता का मिलान किया जा सकता है। इस पूरे प्रोग्राम के बारे में इस प्रोजेक्ट के मुख्य सिडनी ए.गोथरॉक्स का कहना है कि “हमारी भविष्य वाणियाँ विस्मयकारी रूप में सही साबित हो रही हैं। ये भी सही है कि इन भविष्यवाणियों का आधार जलवायु पूर्वानुमान रहता है। मौसम पक्षी-प्रवास में एक बड़ा फैक्टर है।”

गोथरॉक्स कहते हैं कि यदि वाकई प्रवास हेतु स्थितियाँ अच्छी हैं और एक पक्षी के पास उड़ने के लिए बहुत कम ऊर्जा शक्ति है तो भी वह दो सौ मील तेज हवा के बहाव के साथ चला जाता है। हवा के बहाव के साथ तापमान आर्द्रता और बेरोमीट्रिक दबाव भी अन्य कारक हैं। आर्द्रता बढ़ने और प्रेशर के कम होने पर पक्षी ठण्ड में उत्तर की ओर प्रेरित होते हैं। ठीक इसके विपरीत तापमान और आर्द्रता घटने तथा बैरोमीट्रिक दबाव के बढ़ने से दक्षिण की ओर लौटते हैं। प्रवास करने वाले पक्षी तूफान और हवा के विपरीत दिशा में उड़ान को टालते हैं।

अंततः ऐसा कहा जा सकता है कि पक्षियों की लंबी-लंबी यात्राओं की कोई सीमा नहीं होती। ये पक्षी अपनी इन दीर्घकालीन यात्राओं को तैरकर, उड़कर, दौड़कर तथा साधारण गति से चलकर सभी तरह से सफल बनाते हैं। निःसंदेह सब प्राणियों पर समान रूप से अपनी कृपा-दृष्टि रखने वाले परम पिता परमात्मा ने अवश्य ही पक्षियों को कोई ऐसी शक्ति प्रदान की है जो उनके प्रवास की नैसर्गिक आकाँक्षा की पूर्ति में उनका मार्ग-निर्देशन करती हैं।


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