अपनों से अपनी बात - मथुरा में आयोजित हुआ साधकों का महाकुँभ

December 2002

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स्वर्ण जयंती शपथ समारोह एक यादगार मिसाल बन गया

जिस पावन तपस्वी ने, अवतारी चेतना की अंशधर सत्ता ने एक विराट् संगठन का शुभारंभ एक ऋषि स्थापना से किया था, उसके जीवन दर्शन पर गहन मंथन, चिंतन व तदनुसार ही संकल्प शपथ के साथ गायत्री तपोभूमि मथुरा के स्वर्ण जयंती वर्ष का पहला प्रकल्प संपन्न हो गया। सभी पाठक परिजन जानते हैं कि यह गायत्री तपोभूमि, मथुरा की स्थापना का स्वर्ण जयंती वर्ष है, जो जून 2002 से जून 2003 की अवधि में मनाया जा रहा है। शपथ समारोह इसी का एक अंग था, जिसे प्रायः चालीस हजार प्राणवान साधकों ने 20, 21, 22 अक्टूबर की तारीखों में शरद चंद्र की पावन रश्मियों एवं जलते दीपों की उर्मियाँ की साक्षी में अपने संकल्पों द्वारा सुशोभित किया। पूरे वर्ष यह स्वर्ण जयंती संकल्प समारोह चलता रहेगा एवं वह चलेगा- ली गई शपथ को अमल करने के रूप में, अपनी गुरुसत्ता के एक सच्चे सुपात्र बनने के रूप में।

संवत् 2009 की पावन वेला में बाल्यकाल में देखी गई, बार-बार स्वप्नों में दिखाई देती रही, दुर्वासा ऋषि की तपःस्थली के इस भाग को आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने अपने सीमित साधनों में क्रय किया था। सबसे पहली अनुदान राशि गुरुदेव की माताजी (माता दानकुँवरि देवी, जिन्हें हम सभी ताईजी के नाम से संबोधित करते हैं) के 1100 रुपये के अनुदान द्वारा आई। भूमि क्रय व मंदिर, सीमित परिसर तथा यज्ञशाला निर्माण के लिए परमवंदनीया माता जी ने अपने कीमती जेवर बिक्री के लिए दिए। इस तरह 11,000, रुपये की राशि से गीता जयंती संवत् 2009 की पावन बेला में भूमि ले ली गई एवं फिर क्षेत्रीय स्तर पर गहन तप मंथन आरंभ हुआ, जो प्रायः वर्ष भर चला। सहस्रांशु जप, सवा करोड़ से अधिक मंत्र लेखन, उपवास, गायत्री चालीसा पाठ से ऊर्जा भरा वातावरण बनाया गया एवं संवत् 2010 की पावन गायत्री जयंती (22 जून, 1953) से जुड़ी 19 से 24 जून की तारीखों में कुल 240 साधकों का एक अनुपम समागम हुआ एवं एक अलौकिक दैवी वातावरण में गायत्री महाशक्ति के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा कर दी गई।

इस वर्ष इस पावन स्थापना की स्वर्ण जयंती है, पचास वर्ष पूरे हो गए हैं। यह वर्ष गायत्री तपोभूमि के पावन तप प्रधान संस्कारों को पूरे भारत भर में पहुँचाकर पूरी भारतभूमि को तपोभूमि बनाने का वर्ष है। इसी संदर्भ में गायत्री महामंत्र लेखन अभियान को, जीवन साधना को प्रखर बनाने की प्रक्रिया को गति दी गई। साथ ही साथ शाँतिकुँज हरिद्वार स्थित मुख्य केंद्र से सात जोनों के निर्माण का संगठनात्मक पुरुषार्थ भी चलता रहा, सभी वरिष्ठ कार्यकर्ता भाइयों ने सघन मंथन प्रधान दौरे किए एवं संगठन का एक सशक्त सुव्यवस्थित स्वरूप अब क्रमशः उभर कर आ रहा है। शाँतिकुँज गायत्री तीर्थ एवं गायत्री तपोभूमि, मथुरा दोनों ने ही अब साधना की धुरी पर संगठन को गति देने हेतु मिलकर प्रचंड पुरुषार्थ करने की ठानी है, ताकि इस वर्ष हम अधिकाधिक प्राणवान संकल्पित समर्थ समयदानी तैयार कर सकें। इसके लिए चर्चाओं के कई दौर हुए एवं फिर इस समारोह में पधारे क्षेत्र के वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने भी गहन चिंतन, परामर्श होता रहा। निष्कर्ष जो निकलकर आए हैं, वे समुद्र मंथन के चौदह रत्नों की तरह हैं एवं इतने मूल्यवान हैं कि इस राष्ट्र एवं जगती की काया पलट करके रख देंगे, ऐसा लगता है।

भव्य कलश यात्रा से शुभारंभ

इस स्वर्ण जयंती वर्ष के शपथ समारोह का शुभारंभ बीस अक्टूबर आश्विन शुक्ल चतुर्दशी 2059 की प्रातः की वेला में हुआ, जब एक विराट् कलश यात्रा का शुभारंभ गायत्री तपोभूमि से प्रातःकाल 8 बजे हुआ। हर शुभ कार्य के पहले नारीशक्ति के मस्तक पर कलश धारण करो उसमें विद्यमान तैंतीस कोटि देवताओं की शक्ति के आह्वान स्थापन का प्रयास इस माध्यम से किया जाता है। शपथ समारोह जैसे आयोजन के पूर्व भी नारी शक्ति को ही अग्रगामी बनाया गया। गुजरात प्राँत, उत्तर प्रदेश, उत्तराँचल, बिहार, मध्यप्रदेश, पं. बंगाल, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, हिमालय, झारखंड सहित दक्षिण एवं पूर्वोत्तर भारत के चुने हुए कार्यकर्ता भाई बहनों ने इस शोभायात्रा में भाग लिया। अमेरिका व कनाडा से आए प्रवासी भाई की इसकी शोभा बढ़ा रहे थे। बीस अक्टूबर की प्रातः गुरुसत्ता के वरिष्ठ प्रतिनिधिगणों द्वारा कलशधारी नारियों पर पुष्पवर्षा कर गायत्री तपोभूमि के प्राँगण (प्रज्ञानगर के मध्य स्थित संस्कारशाला) से यात्रा आरंभ हुई। प्रायः वे ही कार्यकर्ता भाई-बहन इसमें सम्मिलित थे, जो अपने अपने क्षेत्र में न्यूनतम 100-100 लोगों से प्रत्येक से चौबीस सौ गायत्री मंत्र लेखन की साधना कराकर आए थे।

दृश्य बड़ा अद्भुत था। सारी मथुरा नगरी यमुना तट से लेकर इसकी विभिन्न गलियों तथा बाहरी क्षेत्र में पीले वस्त्रधारी गायत्री परिजनों से भरी दिखाई दे रही थी। कलश पर जवारे रख पंक्तिबद्ध चल रही बहनों के साथ पाँच आकर्षक झाँकियाँ, घोड़े तथा बैंड के इक्यावन वादकों का एक दल चल रहा था। बैंड के प्रमुख रईस कुरैशी पीले वस्त्र धारण कर गायत्री मंत्र एवं मिशन के गीत गाते बजाते चल रहे थे। एक विलक्षण साँप्रदायिक सौहार्द्र का नमूना था यह पूरी यात्रा में मिशन के उद्घोष भी गुंजायमान होते रहे। जब कलशयात्रा का एक सिरा नगर से बाहर आकर यज्ञशाला में प्रविष्ट हो रहा था, तब अंतिम सिरा चौक बाजार से निकल रहा था। प्रायः सात किलोमीटर लंबी यात्रा के बाद तपस्वी बहनों के चेहरे प्रफुल्लित थे। रास्ते भर मथुरा के नागरिकों ने उन पर पुष्पों की वर्षा की थी। विभिन्न संगठनों द्वारा स्थान-स्थान पर जलपान, शरबत, जल, दूध आदि की व्यवस्था की गई थी। लगभग डेढ़ बजे मध्याह्न तक तेज धूप में पूरा यज्ञ क्षेत्र लौटकर आई पीत वस्त्रधारी नारीशक्ति से भर चुका था। बहनों को एक संक्षिप्त उद्बोधन के बाद उनकी आरती उतारी गई। प्रसाद वितरित कर सभी को भोजन हेतु रवा किया गया। भाइयों से सम्मेलन स्थल पर गोष्ठी हेतु एकत्र होने को कहा गया जहाँ क्षेत्रीय संगठन के सुनियोजन एवं आँदोलनों के संचालन पर चर्चा होनी थी।

प्रदर्शनी, बेस कैंप एवं आवास

इससे पूर्व गायत्री परिजनों के लिए लगाई गई एक संक्षिप्त किंतु समग्र जानकारी देने वाली प्रदर्शनी का उद्घाटन अखण्ड ज्योति संस्थान के व्यवस्थापन श्री मृत्युँजय शर्मा जी द्वारा हो चुका था। भारी संख्या में मथुरा नगरवासी व तीर्थयात्री इसे देखने आए। संध्या सात बजे से काफी पूर्व सभी ओर से कार्यकर्ताओं के दल प्रवचन स्थल (चूड़ी वालों की बगीची) की ओर कतारबद्ध होकर जाते दिखाई दे रहे थे। ये विभिन्न नगरों में ठहरे थे, जिन्हें गायत्री तपोभूमि के निकट यमुना तट पर खेतों में गायत्री नगर, गौतम नगर जमदग्नि नगर तथा विश्वामित्र नगर के रूप में बसाया गया था। टेंटों में सभी व्यवस्थाएँ थी। इसके अतिरिक्त नगर की सभी धर्मशालाएँ भी परिजनों के लिए आरक्षित कर ली गई थी। 2 अक्टूबर की शाम तक प्रायः चालीस हजार कार्यकर्ता सारे देश से आ चुके थे। सभी की सारी व्यवस्थाओं का, देख-रेख का संचालन शाँतिकुँज से प्रायः पंद्रह दिन पूर्व पहुँचकर बस कैंप बनाकर कार्य करने वाले सौ व्यक्तियों का दल कर रहा था। श्री गौरीशंकर शर्मा व्यवस्थापक शाँतिकुँज जनजागरण प्रेस ( बिरला मंदिर के सामने) के समीप बने इस बेस कैंप से इस तंत्र को देख रहे थे।

शाम सात बजे गायत्री तपोभूमि के व्यवस्थापक श्री द्वारिका प्रसाद जी चैतन्य के प्रारंभिक उद्घाटन उद्बोधन से कार्यक्रम आरंभ हुआ। श्री चैतन्य जी ने इस पूरे वर्ष की महत्ता, पूर्व की तैयारी व भविष्य की संभावनाओं के बारे में बताया। उससे मेजबान होने के नाते प्रबंध ट्रस्टी श्री मृत्युँजय शर्मा व गायत्री तपोभूमि के सभी कार्यकर्ताओं की ओर से देशभर से आए सभी चुने हुए साधक कार्यकर्ताओं का स्वागत किया। किसी भी प्रकार की असुविधा के लिए क्षमा माँगते हुए उनने कहा कि संकल्पों द्वारा ही हम इस कार्यक्रम को एक यादगार आयोजन बना सकते हैं। सभी प्राणवान कार्यकर्त्ताओं को उनने अधिकाधिक समय मिशन के लिए निकालने का भाव भरा आह्वान किया।

स्नेहसिक्त मार्गदर्शन, साथ में सुने संस्मरण

शाँतिकुँज से आई संस्था प्रमुख श्रीमती शैलबाला पंड्या ने अपने भावभरे उद्बोधन से जन-जन को गुरुसत्ता के स्नेह भरे स्वरूप का स्मरण करा दिया। उनने अपने उद्बोधन में परमवंदनीया माता जी से जुड़े संस्मरणों का हवाला देकर,

किस तरह गायत्री तपोभूमि विनिर्मित हुई एवं कैसे यह लंबी यात्रा तप-त्याग तितिक्षा के बल पर पूरी हुई, यह परिजनों को बताया। विशेष रूप से उनने भारी जागरण आँदोलन हेतु सभी परिजनों को सक्रिय होने को कहा ताकि राष्ट्र की आधी जनशक्ति पंगु स्थिति से उबर सके एवं उसकी तपःशक्ति से भारतीय संस्कृति सारे विश्व में छा सके। अंतिम उद्बोधन देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति व इस पत्रिका के संपादक का था। उनने गुरुसत्ता के प्रतिनिधि रूप में परमपूज्य गुरुदेव एवं परमवंदनीया माता जी के तपस्वी स्वरूप का सबको भान कराया। कई अब तक अविज्ञात संस्मरण उनने सुनाए, जो गायत्री तपोभूमि की स्थापना के पूर्व 1949 से 1953 तक की अवधि के थे। ये सभी प्रसंग ‘चेतना की शिखर यात्रा’ पुस्तक के भाग दो में प्रकाशित हो रहे हैं। परिजनों ने जाना कि सिद्धाग्नि व दिव्याग्नि रूपी अखण्ड अग्नि की स्थापना से लेकर प्राण प्रतिष्ठा के समय हुई आलौकिक घटनाओं से इस दिव्य पावन संस्थान की स्थापना के माहात्म्य की जानकारी मिलती है। अब पचास वर्ष बाद ये तप के संस्कार बीज बनकर सारे भारत में छा जाएँ, यही गुरुवर की अभिलाषा एवं इस कार्यक्रम का उद्देश्य है, यह उनने बताया। उनने इसी वर्ष गुरुसत्ता से एकाकार हुए श्रद्धेय पंडित लीलापति जी शर्मा का भी भाव भरा स्मरण किया व बताया कि किस तरह उनने अहर्निश लगकर गायत्री तपोभूमि का विस्तार पूज्यवर के मथुरा से प्रस्थान के बाद किया।

सारे कार्यक्रम का सीधा प्रसारण पूरे मथुरा में फैले केबल नेटवर्क द्वारा हो रहा था। इस तरह सारा नगर भी इस आयोजन में भागीदारी कर रहा था। सभी अपने बुजुर्गों द्वारा बताई 1953, 1956, 1958, के ऐतिहासिक आयोजनों से जुड़ी घटनाओं तथा 1971 के विराट् विदाई सम्मेलन की घटनाओं को याद कर रहे थे। इस कार्यक्रम के विराट् स्वरूप से उन्हें विगत में संपन्न हो चुके समागमों का एक आभास हो रहा था। ईटीवी, जीटीवी, स्टार टीवी, सहित सभी न्यूज चैनलों ने अपने समाचारों में इस कार्यक्रम की जानकारी भारत भर के कार्यकर्ताओं को दी। दूरदर्शन ने वरिष्ठ प्रतिनिधियों के विशेष इंटरव्यू रिकॉर्ड किए। मथुरा व आगरा के प्रेस क्लब से जुड़े विशिष्ट पत्रकार बंधुओं से भी पत्रकार वार्ता में इस आयोजन के विषय में जाना, स्वयं भागीदारी की तथा अपने’-अपने पत्रों में पर्याप्त कवरेज भी दिया।

सभी साधकों के लिए भोजन की व्यवस्था किशोरी रमण वाटिका स्थित भोजनालय में की गई थी। इस विराट् भोजनालय में एक बार में पाँच से सात हजार परिजन भोजन कर सकते थे। सारी व्यवस्था स्वयंसेवकों द्वारा नियंत्रित थी एवं सभी भोजन-प्रसाद पाकर तृप्त थे। अगले दिन प्रातः काल मूर्ति स्थापना कार्यक्रम से आरंभ होना था। रात्रिभर पूरे आयोजन स्थल में हलचल बनी ही रही। लोग मथुरा से वृंदावन तक बीस किलोमीटर की परिधि में विभिन्न धर्मशालाओं, विश्रामगृहों तथा टेंटों की नगरियों में ठहरे थे। कई अपने साथ कुछ नए प्रबुद्ध परिजनों को भी लेकर आए थे, जिन्हें संकल्पों की जानकारी दी गई थी।

प्रतिष्ठित हुए ब्रह्ममुहूर्त में गुरुसत्ता के विग्रह

प्रातः गायत्री तपोभूमि परिसर में संस्कार शाला से लेकर मंदिर के सामने स्थित हॉल में जहाँ स्थान मिले, वहाँ परिजन मौन जप कर रहे थे। वे मंदिर में चल रहे मूर्ति स्थापना समारोह में अपनी भागीदारी भी कर रहे थे। जिन्हें यहाँ स्थान नहीं मिला, वे यज्ञस्थल पर प्रातः जल्दी पहुँचकर अपना सान यज्ञकुँडों के चारों ओर ले चुके थे। मूर्ति स्थापना के बाद यही पर 151 कुँडीय यज्ञशाला में विशेष यज्ञ संपन्न होना था।

तपोभूमि का गायत्री मंदिर 1953 में विनिर्मित किया गया था। जिस सुँदर मातृशक्ति -वेदमाता गायत्री की मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठा चौबीस दिन के जल उपवास के बाद पूज्य गुरुदेव द्वारा 22 जून, 1953 को की गई थी, वह तो वहाँ थी ही, उसके दोनों ओर स्थित कक्षों में ऋषियुग्म परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी एवं परमवंदनीया माता भगवती देवी की मूर्ति की स्थापना 21 अक्टूबर शरदपूर्णिमा की प्रातः ब्रह्ममुहूर्त की वेला में होनी थी। जैसा कि सभी जानते है कि गायत्री माता का यह मंदिर पूज्यवर द्वारा 1952-53 की अवधि में बनवाया गया था। कालाँतर में इसके शिखर से लेकर फर्श आदि में संगमरमर की स्थापना हो गई, पर मूल स्वरूप यथावत ही रहा। मूर्ति के बायीं ओर स्थित कक्ष में चौबीस सौ पवित्र तीर्थों की जल रज स्थापित की गई थी एवं दायीं ओर चौबीस करोड़ गायत्री महामंत्र लेखन स्थापित किए गए थे। बाद में 1971 में गुरुसत्ता के मथुरा से हरिद्वार प्रयाण के बाद जल रज वाले कक्ष में परमपूज्य गुरुदेव की पादुकाओं एवं उनके एक चित्र की तथा मंत्रलेखन वाले कक्ष में परमवंदनीया माता जी की पादुकाओं तथा उनके चित्र की भी स्थापना कर दी गई।

यह सभी को होना चाहिए कि श्री कृष्ण की ही तरह परमपूज्य गुरुदेव विदाई सम्मेलन में घोषणा कर मथुरा छोड़कर जाने के बाद पुनः मथुरा नहीं आएं वे शक्तिपीठों के उद्घाटनों की शृंखला हेतु निकलने पर मथुरा के बायपास मार्ग से निकल गए, अंदर प्रवेश नहीं किया। दोनों अवतारी सत्ताओं में कितना साम्य है, कितना रहस्यपूर्ण यह सब है, यह देखकर अचरज होता है। परमवंदनीया माताजी के लिए पाबंदी मात्र दस वर्ष की थी, तो उसके बाद वे दो तीन बार मथुरा भी गई व आंवलखेड़ा भी।

विलक्षण अलौकिक छटा तपो भूमि की

ठीक इकत्तीस वर्ष वाद स्वर्ण जयंती वर्ष के पावन प्रसंग में पूज्यवर के चित्र के स्थान पर उनकी एक भव्य संगमरमर की बनी मूर्ति की तथा परमवंदनीया माता जी की भी इतनी ही सुँदर मूर्ति की स्थापना चित्र के स्थान पर शरदपूर्णिमा की वेला में प्रातः होनी थी। एक संक्षिप्त कर्मकाँड पं. चंद्रभूषण मिश्र द्वारा संपन्न कराया गया। वरिष्ठ प्रतिनिधिगण पूजन क्रम में बैठे। जिसकी शक्ति कण-कण में, हर कार्यकर्ता के हृदय में विद्यमान हो, उसकी प्राण प्रतिष्ठा क्या हो, अतः मात्र मूर्ति स्थापना का एक संक्षिप्त भावभरा क्रम रखा गया था। ठीक 6.45 प्रातः मूर्तियों का अनावरण आरती व गुरुवंदना का क्रम संपन्न हुआ। साथ ही कार्यकर्ताओं द्वारा क्षेत्र से लाए गए विभिन्न तीर्थों की जल रज व सैकड़ों की संख्या में इस वर्ष लिखे गए मंत्र लेखन की पुस्तिकाओं का भी पूजन आरती का क्रम चला। पूज्यवर एवं मातृसत्ता द्वारा 1971 में अपने पैरों से निकालकर रखी गई पादुकाएं भी सबके लिए स्पर्श दर्शन हेतु रख दी गई एवं मंदिर दर्शन हेतु खोल दिया गया। प्रातः सात से प्रखर प्रज्ञा सजल श्रद्धा, फिर ऋषि युग्म सहित आद्यशक्ति गायत्री की मूर्ति, चरण पादुकाओं का दर्शन पंक्तिबद्ध हो चलता रहा। यह क्रमशः रात्रि तक सतत चलता रहा, जब तक कि सभी ने दर्शन नहीं कर लिए। पंक्ति कभी नहीं टूटी। लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबी सतत बनी रही। अनुशासन देखने योग्य था।

प्रातः 7.30 से 151 कुँडीय यज्ञशाला में गायत्री महायज्ञ का शास्त्रोक्त विधि से शुभारंभ हुआ। वैदिक स्वर में सामगान व समवेत मंत्रों के उच्चारण से सारा नगर गुँजित हो उठा। नगरवासी भी भारी संख्या से या हेतु पधारे। आठ पारियों में यज्ञ हुआ। गायत्री महामंत्र, महामृत्युँजय मंत्र, देवसंस्कृति संवर्द्धन पर्यावरण संशोधन तथा राष्ट्र की समृद्धि हेतु आहुतियाँ दी गई। दीक्षा संस्कार भी संपन्न हुआ, जिसमें प्रायः सात हजार से अधिक ने भागीदारी की। इसी प्रकार तपोभूमि में प्रज्ञा नगर में संस्कारशाला में संस्कारों का क्रम चलता रहा। यज्ञोपवीत, पुँसवन, अन्नप्राशन, नामकरण शिखा स्थापन, वानप्रस्थ आदि संस्कार संपन्न हुए। संस्कृति जननी गौ माता, महामृत्युँजय मंत्र के ऑडियो कैसेट्स तथा गुरुकृपा गुरुधाम आराधना और युगधर्म की सीडी का भी विमोचन यज्ञ मंच से हुआ।

चाँदनी रात में दीप महायज्ञ एवं शपथ समारोह

शाम को विराट् दीप महायज्ञ से पूर्व श्रीमती शैलबाला पंड्या व डॉ. प्रणव के उद्बोधन हुए। इस क्रम में अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख ने परमपूज्य गुरुदेव के भावभरे संस्मरण नरमेध यज्ञ से लेकर उनके तपोभूमि छोड़ने तक के सुनाए। अपने पिता अपने आराध्य, इष्ट की भावभरी स्मृतियों को सुनकर सारा समुदाय अनुप्राणित था। इस पत्रिका के संपादक ने परमपूज्य गुरुदेव के ‘योगी’ रूप में जीवन दर्शन की व्याख्या घटनाक्रमों द्वारा की। यह भी बताया गया कि वे हमसे भी योगी बनने की अपेक्षा रखते थे। हमारा समर्पण गुरुकार्यों के प्रति और भी तीव्र हो, गति पकड़े यही इस शपथ समारोह में हमारा लक्ष्य होना चाहिए, यह सभी ने जाना। दीप महायज्ञ बड़ा ही विलक्षण था। शरदपूर्णिमा का चंद्रमा अपनी आलौकिक छटा बिखर रहा था। सवा लाख दीपक साधकों के संकल्प के साथ एक साथ जल उठे एवं लगभग बीस हजार साधकों ने मुट्ठी ऊँची कर अपनी शपथ आराध्य सत्ता के कार्यों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए ली। अनुशासित समुदाय पूरे चार घंटे बैठा रहा व अपलक इस दृश्य को निहारता रहा आरती व सत्संकल्प के साथ इस दिन के कार्यक्रम का समापन हुआ। समापन से पूर्व आठ पुस्तकों की स्वर्ण जयंती पुस्तकमाला का विमोचन भी किया गया जो गायत्री तपोभूमि द्वारा प्रकाशित की गई है।

कार्यक्रम का प्राणः गोष्ठियाँ

इस कार्यक्रम का प्राण था कार्यकर्ता सम्मेलन। भारी संख्या एवं स्थान के सीमा बंधन को देखते हुए सम्मेलन कार्यकर्ता गोष्ठियों को चार खंडों में बाँट दिया गया। सभी कार्यकर्ताओं ने न्यूनतम किसी एक में भागीदारी हेतु कहा गया। प्रत्येक गोष्ठी ब्रजवासी मंडप वाला यह स्थान खचाखच भरा रहा। ऐसी स्थिति में भी प्रायः छह

हजार कार्यकर्ता प्रत्येक में बने रहे। विषयवस्तु का केंद्र मात्र यही था कि अब समय बहुत कम बचा है। अब सभी कार्यकर्ताओं को एक जुट हो अधिकाधिक समय मिशन के कार्यों हेतु देना है। सुनिश्चित लक्ष्य निर्धारित कर आगामी डेढ़ वर्ष में हम सभी को अपने संगठन को सुव्यवस्थित कर देना है तथा आँदोलनों की कार्य योजना बना लेती है। पारस्परिक चर्चाओं का क्रम भी चला। विभिन्न समूहों में भी लोग कार्यशाला गोष्ठी के बाद वरिष्ठ भाइयों तथा व्यवस्थापक विचारक्राँति अभियान मथुरा, अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख से मिलते रहे व अपनी अभिव्यक्ति देते रहे। प्रायः दस हजार संकल्प पत्र परिजनों ने भर कर दिए, जिनमें तीन हजार समूहगत थे।

इन कार्यशालाओं को श्री कालीचरण शर्मा, श्री वीरेंद्र तिवारी, प्रो. प्रमोद भटनागर द्वारिका प्रसाद जी चैतन्य एवं श्री प्रमोद शर्मा ने संबोधित किया। सभी प्रायः एक साथ बैठे एवं अपनी बात कहने के साथ समूहगत मार्गदर्शन देते रहे। श्री कालीचरण शर्मा जी ने गुरुवर के कथनों की साक्षी देकर अपने स्थानीय संगठन को पारिवारिकता की धुरी पर विकसित करने की बात कही। उनने कहा कि जो व्यक्ति रोज नए पाँच व्यक्ति मिशन से जोड़ता है, वही असली युगनिर्माण का कार्य करता है। श्री वीरेंद्र तिवारी ने बताया कि साधना की धुरी पर ही संगठन सशक्त बन सकता है। साधक बनेंगे, तो अहंकार गलेगा, संयम विकसित होगा। बची ऊर्जा स्वाध्यायशील साधक द्वारा जनसेवा में लगेगी। तीनों पत्रिकाएँ हर परिजन पढ़ें, इस पर उनने विशेष जोर दिया।

प्रमोद भटनागर जी ने सच्चे शिष्य की परिभाषा बताई। साथ ही ऐसे प्राणवानों के संकल्पों के फलित होने की बात भी कही। प्रतिदिन साहित्य का विस्तार व कोई न कोई सेवा का कार्य हर व्यक्ति का एक निश्चित कर्तव्य हो। श्री द्वारिकाप्रसाद जी चैतन्य ने कहा कि मनोरथ कभी पूरे नहीं होते, संकल्प कभी अधूरे नहीं रहते। जनचेतना जगाने वाले गाँधी जी के प्रयोगों की चर्चा कर उनने गुरुदेव के छोटे-छोटे आँदोलनों की बात कही। सद्ज्ञान घर-घर पहुँचे एवं सत्कार्यों का अभ्यास बढ़े, यही गुरुवर की इच्छा थी, जिसे सबको पूरा करना है। श्री प्रमोद शर्मा ने मंत्र लेखन साधना, स्वाध्याय, अंशदान की नियमितता एवं गौसेवा के लिए किए जाने वाले प्रयासों की चर्चा की। संकल्पों की भावभरी पृष्ठभूमि इन चार गोष्ठियों ने बना दी थी, इसीलिए शाम का दीपमहायज्ञ अलौकिक वातावरण में शपथ के साथ सम्पन्न हुआ।

पुण्य स्मृति बन गया यह आयोजन

22 अक्टूबर मंगलवार का दिन पूर्णाहुति व विदाई का दिन था। सभी यज्ञ में भी भाग ले रहे थे, पुनि-पुनि तपोभूमि आकर माता के विग्रह के साथ ऋषियुग्म के दर्शन कर रहे थे एवं आपस में अपने गुरुभाइयों से मिल परिचित हो रहे थे तीन दिन के लिए ‘मिनी भारत’ बने इस साधकों के कुँभ ने अपने सुनिश्चित लक्ष्य की पूर्ति की एवं नया उत्साह कार्यकर्ताओं में प्रवाहित किया। भोजन व्यवस्था से लेकर संपूर्ण सुरक्षातंत्र श्री गौरीशंकर शर्मा जी एवं गौरी शंकर सैनी ने व्यवस्थित ढंग से संचालित किया। कही भी भगदड़ नहीं मची। सभी भोजन प्रसाद पा ज्ञान प्रसाद हेतु समय पर पहुँचते रहे। इन सब व्यवस्थाओं के मूल में श्री मृत्युँजय शर्मा का सौम्य मार्गदर्शन एवं शपथ समारोह संकल्प

सभी संकल्प जो लिए गए हैं, भलीभाँति पढ़े जाएंगे एवं उनका सही ढंग से क्रियान्वयन हो, यह कार्य केंद्र देखेगा। समयदान के सुनियोजन का एक तंत्र बनाया जा रहा है, जिसमें न्यून से अधिकतम समय देने वाले परिजनों को सतत स्पश्रडडडड करने का क्रम बनाया जाएगा। आँदोलनों की मॉनीटरिंग हेतु एक केंद्रीय नियंत्रण कक्ष शाँतिकुँज हरिद्वार में बनाया जा रहा है। संकल्पों की एक प्रति गायत्री तपोभूमि, मथुरा रहेगी, एक शाँतिकुँज हरिद्वार में। सातों जोन्स में सक्रियता लाने के लिए बनाए गए केंद्रों में भी संकल्पित समयदानियों की वर्कशॉप्स चलेंगी।

कार्यों का सुनियोजन देखने योग्य था। अखण्ड ज्योति संस्थान, गायत्री तपोभूमि मथुरा एवं शाँतिकुँज हरिद्वार के सभी कार्यकर्ताओं ने कंधे से कंधा मिलाकर यज्ञीय भाव के साथ इस पुण्य आयोजन को एक मिसाल बना दिया। सन 1971 के बाद संपन्न हुआ यह कुँभ सभी की स्मृति में ऐसा समा गया है कि अब हर पल उसी का ध्यान मन में रहेगा। लिए गए संकल्प सतत याद आते रहें एवं सक्रियता का उफान निश्चित ही युग परिवर्तन की प्रक्रिया को त्वरित गति देगा, यह विश्वास है।

स्वर्ण जयंती शपथ समारोह कुछ झलकियाँ

पूरे राष्ट्र के कोने-कोने से हर प्राँत के विशिष्ट कार्यकर्ताओं की भागीदारी रही।

तपोभूमि क्षेत्र में स्थान-स्थान पर गायत्री महामंत्र लेखन की सौ सौ प्रतियाँ लिए ढेरों व्यक्ति देखे जा सकते थे।

कलश यात्रा से लेकर पूर्णाहुति तक अनुशासन देखते बनता था। पत्रकारों तथा अनेक संगठनों की उक्तियाँ इस सम्बन्ध में प्रमाण है।

तपोभूमि से डेढ़ किलोमीटर पूर्व ( दक्षिण की ओर ) अखण्ड ज्योति संस्थान से लेकर जनजागरण प्रेस, बिड़ला मंदिर (उत्तर की ओर ) तथा पूरे वृंदावन में पीत वस्त्रधारी ही चारों ओर दिखाई दे रहे थे।

स्वर्ण जयंती शपथ समारोह कुछ झलकियाँ पूरे राष्ट्र के कोने-कोने से हर प्राँत के विशिष्ट कार्यकर्ताओं की भागीदारी रही। तपोभूमि क्षेत्र में स्थान-स्थान पर गायत्री महामंत्र लेखन की सौ सौ प्रतियाँ लिए ढेरों व्यक्ति देखे जा सकते थे। कलश यात्रा से लेकर पूर्णाहुति तक अनुशासन देखते बनता था। पत्रकारों तथा अनेक संगठनों की उक्तियाँ इस सम्बन्ध में प्रमाण है।तपोभूमि से डेढ़ किलोमीटर पूर्व ( दक्षिण की ओर ) अखण्ड ज्योति संस्थान से लेकर जनजागरण प्रेस, बिड़ला मंदिर (उत्तर की ओर ) तथा पूरे वृंदावन में पीत वस्त्रधारी ही चारों ओर दिखाई दे रहे थे। मूर्ति स्थापना समारोह के बाद अनेकों परिजनों ने वैसी ही अनुभूति की, जैसी कि प्राण प्रतिष्ठा के समय 1952-53 में साधकों ने की थी। चर्चा के समय सभी ने अपनी अनुभूतियाँ बताई। 

स्वर्ण जयंती शपथ समारोह

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

रईस कुरैशी के प्रकाश बैंड के 59 मुस्लिम भाई गायत्री मंत्र, गुरु वंदना एवं प्रज्ञागीत गाते पीतवस्त्रों में एक अलग ही समाँ बना रहे थे। कलश यात्रा देखने वालों का कहना था कि गायत्री परिवार ने जाति का भेद मिटाया है, अब साँप्रदायिक विषमता भी मिटेगी।

नगर के सभी उद्योग व्यापार समाज सेवा से जुड़े संगठनों ने उस शोभायात्रा में भागीदारी भी की। इसका स्वागत भी किया।

‘देवसंस्कृति विश्वविद्यालय प्रदर्शनी में सभी की जिज्ञासा का मुख्य केंद्र रहा। इसके बारे में अधिकाधिक जानने की इच्छा सबकी थी।

किसी भी राजनैतिक या बड़े पद से जुड़े व्यक्ति को इस आयोजन में मंचीय कार्यक्रम हेतु नहीं बुलाया गया था। आमंत्रण सभी को था, पर मूलतः यह नैष्ठिक स्वयंसेवकों का कार्यक्रम था। किसी भी नेता को मंच पर न देख सभी को सुखद आश्चर्य हुआ।

पाक्षिक प्रज्ञा अभियान के इस आयोजन में पाँच हजार सदस्य बने। यह अब तक का कीर्तिमान है। मिशन के सभी क्रियाकलापों की जानकारी देने वाला यह समाचार पत्र शाँतिकुँज, हरिद्वार से 1 व 16 तारीख को प्रतिमाह प्रकाशित होता है।

स्वर्ण जयंती शपथ समारोह कुछ महत्वपूर्ण तथ्य रईस कुरैशी के प्रकाश बैंड के 59 मुस्लिम भाई गायत्री मंत्र, गुरु वंदना एवं प्रज्ञागीत गाते पीतवस्त्रों में एक अलग ही समाँ बना रहे थे। कलश यात्रा देखने वालों का कहना था कि गायत्री परिवार ने जाति का भेद मिटाया है, अब साँप्रदायिक विषमता भी मिटेगी।नगर के सभी उद्योग व्यापार समाज सेवा से जुड़े संगठनों ने उस शोभायात्रा में भागीदारी भी की। इसका स्वागत भी किया। ’देवसंस्कृति विश्वविद्यालय प्रदर्शनी में सभी की जिज्ञासा का मुख्य केंद्र रहा। इसके बारे में अधिकाधिक जानने की इच्छा सबकी थी। किसी भी राजनैतिक या बड़े पद से जुड़े व्यक्ति को इस आयोजन में मंचीय कार्यक्रम हेतु नहीं बुलाया गया था। आमंत्रण सभी को था, पर मूलतः यह नैष्ठिक स्वयंसेवकों का कार्यक्रम था। किसी भी नेता को मंच पर न देख सभी को सुखद आश्चर्य हुआ। पाक्षिक प्रज्ञा अभियान के इस आयोजन में पाँच हजार सदस्य बने। यह अब तक का कीर्तिमान है। मिशन के सभी क्रियाकलापों की जानकारी देने वाला यह समाचार पत्र शाँतिकुँज, हरिद्वार से 1 व 16 तारीख को प्रतिमाह प्रकाशित होता है। गुजरात के परिजन पूरे समारोह में हर दिशा में, हर क्षेत्र में क्रियाशील नजर आए। मेहसाणा से विष्णुभाई का सौ स्वयंसेवकों का दल तो बीस दिन पूर्व से ही आ गया था। 


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