मेघगर्जन की वाद्यधुन के साथ रिमझिम के गीतों को गाती हुई हरियाली की आकर्षक चादर ओढ़े सम्पूर्ण प्रकृति उत्सव मना रही है। यह हर्षोत्सव श्रावणी पर्व का है। श्रावणी सृष्टि का जन्मोत्सव पर्व है। इसी दिन परमेश्वर का ‘एकोऽहं बहुस्याम्’ संकल्प मूर्त हुआ। बहुआयामी सृष्टि जन्मी। प्रकृति की उर्वरता में जीवन के अनेक रूप-रंग अंकुरित हुई। सर्वसमर्थ पिता परमेश्वर की कृपा से आदिमाता प्रकृति की गोद अनगिन सन्तानों से भर गयी। जगत् को जन्म देने वाली जगन्माता के उल्लास का रहस्य यही है। इसमें अनेकों संकेत है, सन्देश है और भागीदार बनने के लिए आवाहन है। माता प्रकृति के ज्येष्ठ पुत्र मनुष्य का दायित्व तो कुछ अधिक ही है। श्रावणी इसी दायित्व बोध को अनुभव करने, उसे सही ढंग से निभाने के लिए संकल्पित होने का पर्व है।
श्रावणी पर्व को व्यवस्था पूर्ण रीति से मनाने के लिए आवश्यक कर्मकाण्ड के मुख्य बिन्दु निम्न है- 1. षट्कर्म, 2. तीर्थ आवाहन, 3. हेमाद्रि संकल्प, 4. दस स्नान, 5. यज्ञोपवीत नवीनीकरण, 6. तर्पण एवं 7. अर्घ्यदान नमस्कार। कर्मकाण्ड की इन सारी रीतियों को शान्तिकुञ्ज द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘कर्मकाण्ड भास्मर’ को पढ़कर जाना-सीखा और पूरा किया जा सकता है। अपने परिजनों द्वारा ऐसा किया भी जाना चाहिए। लेकिन इसी के साथ उस तत्व को जानने, उसका चिन्तन करने की आवश्यकता है, जो इस समस्त कर्मकाण्ड प्रकरण का सार है। जिसे समझे बिना श्रावणी पर्व की यथार्थ अनुभूति नहीं हो सकती है।
यह तत्व बोध उस महत् संकल्प के बारे में है, जो समस्त सृष्टि का आधार है। ब्रह्म संकल्प से सृष्टि जन्मी इस सत्य से सभी परिचित हैं। लेकिन जन्म किसी वस्तु का हो या व्यक्ति का या फिर स्वयं सृष्टि का उसके रक्षण और पोषण की व्यवस्था भी आवश्यक
है। ब्रह्म संकल्प से प्रकट हुई इस सृष्टि के रक्षण एवं पोषण में जो ब्रह्म के सहयोगी बनते हैं, उन्हें ही ब्राह्मण कहा जाता है। श्रावणी इसी ब्राह्मणत्व के लिए संकल्पित होने का महापर्व है। इसी की उच्चस्तरीय कक्षा ऋषित्व है। ऋषि अंतर्दृष्टि सम्पन्न वह व्यक्ति है, जो परमेश्वर के संकेतों को अपनी परिष्कृत अन्तर्चेतना में अनुभव करता है और तदनुरूप जीवन जीने के लिए निरत होता है।
श्रावणी पर्व पर किया जाने वाला हेमाद्रि संकल्प इसी ब्राह्मणत्व एवं ऋषित्व के सम्वर्धन एवं अभिवर्धन के लिए है। इसमें आन्तरिक एवं बाह्य सम्पूर्ण प्रकृति को प्रदूषण मुक्त करने का उद्घोष है। अपना अन्तःकरण यदि प्रदूषण से मुक्त हो तो ही व्यक्ति पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने में सहायक हो पाता है। अन्तःकरण एवं पर्यावरण दोनों ही गहराइयों में एक-दूसरे से जुड़े हैं। एक का प्रभाव दूसरे पर पड़े बिना नहीं रहता। बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण का कारण यही है कि इन दिनों व्यक्तियों के अन्तःकरण बुरी तरह से प्रदूषित हुए हैं। इन दोनों को ही प्रदूषण से मुक्त करने की प्रतिबद्धता ही हेमाद्रि संकल्प का यथार्थ है।
श्रावणी पर्व को मनाने की आदर्श रीति यही है कि पर्व के पुण्य क्षणों में कर्मकाण्ड के सारे विधान पूरा करते हुए, अपने अन्तःभूमि में कम से कम किसी एक सद्गुण का बिरवा रोपें। इसी के साथ प्रकृति के आँगन में कम से कम एक वृक्ष-पादप रोपित करें। साथ ही इन्हें पूरे वर्ष आवश्यक रक्षण-पोषण देने का संकल्प करें। इस संकल्प को पूर्ण करने के लिए किए जाने वाले सतत प्रयास से अन्तःकरण और पर्यावरण दोनों ही प्रदूषण मुक्त होने लगेंगे। जीवन और प्रकृति में सुगन्ध फैलने लगेगी। श्रावणी पर किए गए इस हेमाद्रि संकल्प की महिमा स्वयं ही प्रकाशित हो उठेगी। ब्रह्म संकल्प के सहयोगी बनने के फलस्वरूप जीवन में अपने-आप ही ब्राह्मणत्व एवं ऋषित्व के वरदानों की छटा निखरेगी। सृष्टि के जन्मोत्सव की खुशियाँ अपने घर-आँगन में भी आएँगी।