ब्रह्म देश में अश्वत्थ वृक्ष की जड़ में एक देव सर्प रहता था। एक ब्राह्मण ने उसे पहचान लिया, सो रोज एक कटोरा दूध बाँबी पर रखकर उसकी पूजा करने लगा।
सर्प देव प्रसन्न हुए। वे नित्य दूध पी जाते और बदले में एक स्वर्ण मुद्रा उसी कटोरे में रख जाते। ब्राह्मण का धन भी बढ़ने लगा और लालच भी।
ब्राह्मण ने सोचा, सर्प की बाँबी में स्वर्ण मुद्राओं का भंडार होगा, सो उसे मारकर एक ही दिन में क्यों न वह सारी राशि प्राप्त कर ली जाए। उसने घात लगाकर सर्प को मार डाला।
खोदने पर बाँबी में कुछ भी न निकला। अति लालच से होने वाली हानि का अनुभव करके ब्राह्मण सिर धुनकर पछताता रहा।