गायत्री परिवार का संगठनात्मक ढाँचा अब ऐसा होगा

August 2002

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विगत अंक में ‘गुरुसत्ता के चरणों में समर्पित होंगे हीरकमाल’ शीर्षक से संगठन-सशक्तीकरण वर्ष के लिए गए संकल्पों की चर्चा की गई थी। ‘अखिल विश्व गायत्री परिवार’ रूपी संगठन ऋषियुग्म की अवतारी सत्ता द्वारा संवेदना-ममत्व की धुरी पर खड़ा किया गया एवं भावनाशीलों के समयदान को पूँजी की तरह प्रयुक्त किया गया छह जोनों में पूरे भारत को बाँटने की चर्चा विगत अंक में की गई थी, जिसमें पश्चिमोत्तर, पूर्वोत्तर, दक्षिण भारत, मध्य क्षेत्र, नेपालतराई क्षेत्र तथा राजस्थान-गुजरात क्षेत्र में विभाजन की बात कही गई थी। संगठनात्मक संरचना का स्वरूप आखिर कैसा होगा, यह जानने का मन सभी का होगा। यहाँ संक्षेप में उसे हम दे रहे हैं। विस्तार से अक्टूबर अंक में तथा पाक्षिक में विभिन्न कड़ियों में उसे प्रकाशित कर रहे हैं।

(अ) हमारी प्रारंभिक इकाई है हमारे परिजन। ये अखण्ड ज्योति वह अन्य पत्रिकाओं के पाठक भी हो सकते हैं, दीक्षित भी, उपासक भी, ज्ञानघट, धर्मघटधारी, अंशदानी, सहयोगी, श्रद्धालु एवं समर्थक भी। इनकी संख्या आज लगभग पाँच से सात करोड़ के बीच आँकी जाती है।

(ब) परिजनों की संयुक्त इकाई है-प्रज्ञामंडल एवं महिला मंडल। ये ग्राम/वार्ड/मुहल्ले/कालोनी स्तर तक फैले एक जिले में कई हो सकते हैं। 2000 से 5000 की आबादी तक एक मंडल बनाए जाने की योजना रही है। इनमें पाँच से पचास सदस्य हो सकते हैं, जिनकी साप्ताहिक न्यूनतम एक संयुक्त गोष्ठी होती है।

(स) ग्राम पंचायत/वार्ड/कस्बा या क्षेत्र स्तर पर हमारी दो इकाइयाँ हैं- स-3, स-41

सक्रिय संगठित समूह का नाम ही स-3 है। इसमें ग्रामीण क्षेत्र में 5 से 25 प्रज्ञामंडल जुड़े हो सकते हैं। प्रत्येक समूह की बीच की दूरी 10 से 15 किलोमीटर या कम भी हो सकती है। शहरी क्षेत्र में 5 से 50 प्रज्ञामंडल भी इसमें हो सकते हैं। सभी मंडलों के दो-दो सक्रिय सदस्य मिलाकर एक समन्वय समिति बन जाती है। न्यूनतम 11 सदस्य होने चाहिए, जिनमें तीन केंद्रीय संपर्क हेतु जिम्मेदार कार्यकर्ता हों। गोष्ठी प्रतिमाह न्यूनतम एक होनी चाहिए।

समर्थ समयदानी सहयोगी समूह का नाम ही स-4 है। इसमें आँशिक व पूर्णकालिक समयदानी होते हैं। प्रचारक, पुरोहित, प्रशिक्षक स्तर के अथवा उत्प्रेरक, नियोजक, समन्वयक स्तर के कार्यकर्ता इसमें होते हैं।

(द) विकास खंड स्तर पर संयुक्त समन्वय समिति (न्यूनतम 11 सदस्य) एवं स-4 के रूप में समर्थ समयदानी-सहयोगियों का समूह इसमें कार्य करेंगे। संयुक्त समन्वय समिति में सभी ग्राम पंचायतों, वार्डों, क्षेत्रों की समन्वय समिति के नामित सदस्य होंगे। साथ ही भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के सहयोगी, शक्तिपीठों, प्रज्ञापीठों के नामित ट्रस्टीगण तथा रचनात्मक केंद्रों, ट्रस्टों के नामित सदस्य होंगे। तीन मास में एक बार गोष्ठी अनिवार्य होगी। केंद्रीय संपर्क सूत्र हेतु पाँच जिम्मेदार कार्यकर्ता निर्धारित होंगे।

(ई) तहसील स्तर पर विकास खंड की ही तरह संयुक्त समन्वय समिति (न्यूनतम 11 सदस्य) एवं स-4 के सदस्यों की दो स्तरीय इकाइयाँ इसमें होंगी। इस समन्वय समिति में सभी विकास खंडों (ब्लॉक्स) की संयुक्त समन्वय समिति के नामित सदस्य होंगे। शेष क्रम उसी प्रकार रहेगा जैसा विकास खंड में होगा।

(फ) संयुक्त समन्वय समिति (11 सदस्यों की) एवं समर्थ समयदानी सहयोगी समूह (स-4) की भागीदारी इसमें होगी। इनकी गोष्ठी छह माह में एक बार अवश्य होनी चाहिए। अनिवार्य हो तो दो या कई बार हो सकती है।

उपर्युक्त सभी इकाइयों में बँटे जिले अपने जोन (क्षेत्र) द्वारा सीधे केंद्र से जुड़े रहेंगे। केंद्रीय तंत्र शाँतिकुँज हरिद्वार के ही वरिष्ठ दो भाई एवं 10 सहयोगी भाई 3-3 माह के लिए जोन के लिए निर्धारित केंद्रों में बैठकर सीधे केंद्र के संपर्क में रहेंगे। केंद्र के निर्देश उन्हें जोन्स में बैठे केंद्रीय दल के कार्यकर्ताओं के माध्यम से मिलते रहेंगे। विशेष परिस्थितियों में परिजन सीधे संगठन प्रकोष्ठ शाँतिकुँज से भी संपर्क कर सकेंगे।

जोन (क्षेत्र) जैसा कि सभी जानते हैं, छह हैं। इनके केंद्र हैं- सिलिगुड़ी टाटानगर (पूर्वोत्तर), चंडीगढ़ (मोहाली), शाँतिकुँज एवं नोयडा (पश्चिमोत्तर), नागपुर, रायपुर एवं हैदराबाद (दक्षिण भारत), मुजफ्फरनगर-बस्ती (नेपाल एवं तराई का उ.प्र., बिहार), चित्रकूट-आँवलखेड़ा (दक्षिण बिहार, शेष झारखंड, उ.प्र. व म.प्र.) तथा क्राँतिकुँज अहमदाबाद, गाँधीधाम एवं पुष्कर (गुजरात तथा राजस्थान)। यह एक मोटा ढाँचा है। आशा है 2004 की वसंत तक यह सारा तंत्र सक्रिय रूप ले लेगा।


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