बीज को गलकर वृक्ष का रूप लेने की प्रक्रिया समयसाध्य है। जो अधीरता बरतते हैं, कर्मों का प्रतिफल तुरंत चाहते हैं, उन्हें निराश ही होना पड़ता है। इससे यह नहीं सोचना चाहिए कि दुष्कर्मों की प्रतिक्रिया नहीं होती और सत्कर्मों के पुण्यफल प्राप्त नहीं होते। जो दूरदर्शी होते हैं, वे कर्मफल व्यवस्था में सच्चे आस्तिकवादी की तरह विश्वास रखते हैं।