कन्फ्यूशियस के शिष्य रोज-रोज यह आग्रह किया करते थे कि किसी ब्रह्मज्ञानी के दर्शन कराके लाइए। रोज तो वे टाल देते, पर एक दिन तैयार हो गए। शिष्यों को लेकर वे एक गुफा में पहुँचे, जहाँ एक साधु भजन कर रहे थे। उन लोगों ने ब्रह्मज्ञान की कुछ बातें बताने का आग्रह किया। साधु बहुत नाराज हुआ, क्रोध में बोला, भग जाओ धूर्तों, व्यर्थ हैरान मत करो। मुझे अपना भजन करने दो। वे उलटे पैरों लौटे। अब मंडली एक तेली के घर पहुँची। पूछा, आपको लोग ब्रह्मज्ञानी बताते हैं, कुछ बतलाइए। तेली ने कहा, यह बैल ही मेरा ब्रह्म है। मैं इसे पूरा चारा-दाना देता हूँ और यह मेरे कुटुँब का पूरा पेट भरता है। हम दोनों ही एक-दूसरे से खुश हैं।
उससे आगे कन्फ्यूशियस अपनी शिष्य मंडली को एक बुढ़िया के यहाँ ले गए, जो चरखा कात रही थी। साथ ही पास में खेल रहे बाल-बच्चों में से किसी को समझाती, किसी को हँसाती, किसी को धमकाती हुई मगन थी। बुढ़िया से वही प्रश्न किया, तो उसने कहा, देखते नहीं, मरे ओर ब्रह्म ही ब्रह्म खेल रहा है। वह मुझ से लिपटा है और मैं उससे। इतनी यात्रा के बाद शिष्य मंडली समेत कन्फ्यूशियस वापस लौट आए और उन्होंने समझाया, स्वयं प्रसन्न रहना, दूसरों को प्रसन्न करना और तालमेल बिठाकर रहना, यही है ब्रह्म और यही है उसकी उपासना।