मानस का मर्म

August 2002

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श्रावण शुक्ल पक्ष की सप्तमी (14 अगस्त) गोस्वामी तुलसीदास की जन्मतिथि है। रामचरित मानस के ऋषि तुलसीदास इसी पवित्र दिन अपनी माता हुलसी की कोख से प्रकट हुए थे। उनका जन्म, जीवन एवं साधना सभी दिव्य थे। उनकी जीवन-साधना का सुफल रामचरित मानस तो दिव्यतम है ही। इस सत्य के तत्व से अपरिचित जन यदा-कदा उनके ऋषि जीवन और ऋषि कर्म में कमियाँ ढूंढ़ने की कोशिश करते रहते हैं, ऐसे लोगों के लिए महाकवि ने कहा है- ‘वचन वज्र जेहि सदा पिआरा। सहस नयन पर दोष निहारा॥’ इन्हें कठोर वचन रूपी वज्र सदा प्यारा लगता है। और ये हजार आँखों से दूसरों के दोषों को देखते हैं। लेकिन यथार्थ में ये कमियाँ उनकी अपनी कमियाँ होती हैं। जो उनके अज्ञान को, उनकी बुद्धि की क्षुद्रता को प्रकट करती हैं। हालाँकि गोस्वामी जी ने ऐसे लोगों की भी सच्चे भाव से वन्दना की है। वह कहते हैं- ‘बहुरि बन्दि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएं॥’ अब मैं सच्चे भाव से दुष्टों को प्रणाम करता हूँ। जो बिना ही कारण अपना हित करने वालों के भी प्रतिकूल आचरण करते हैं।

अपनी निन्दा करने वालों को भी नमन, वन्दन करने वाले, कष्ट सहिष्णु परम भक्त तुलसी ने अपनी भाव समाधि में रामचरित के सत्य का साक्षात्कार किया। अपने मानस में रामचरित के काव्य सरोवर की अनुभूति की। फिर इस मानसरोवर को लोकहित के लिए महाकाव्य के रूप में प्रकट किया। इसमें व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण एवं समाज निर्माण के सभी सूत्र एवं सत्य हैं। इन्हें अपना कर हर युग के लोग अपने युग प्रश्नों का समाधान पा सकते हैं। रामचरित मानस में शाश्वत सत्य सामयिक रूपों में प्रकट होता है। बस पहचानने के लिए विवेक चाहिए। ऐसे विवेकवानों के लिए तुलसी की प्रत्येक काव्य पंक्ति का महामंत्र जैसा महत्व है। वे इसकी साधना से अपने जीवन की सफलता और सार्थकता सिद्ध करते रहते हैं।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित के मानसरोवर और उसकी काव्य नदी का बालकाण्ड के दोहा क्रमाँक 35 से दोहा क्रमाँक 43 तक बड़ा ही मधुर वर्णन किया है। इसमें रामचरित मानस का स्वरूप एवं सत्य बड़ी तात्विक रीति से प्रकट हुआ है। इसे पढ़कर, इसका चिन्तन, मनन एवं निदिध्यासन करके गोस्वामी जी द्वारा रचित रामचरित मानस के सत्य की अनुभूति की जा सकती है। रामचरित के इस अद्भुत मानस सरोवर का शीतल स्पर्श किया जा सकता है। तुलसी की भक्ति साधना एवं काव्य सौंदर्य का रसपान किया जा सकता है। इसकी कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा है-

जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु। अब सोई कहऊँ प्रसंग सब, सुमिरि उमा वृषकेतु॥

यह राम चरित मानस जैसा है, जिस प्रकार बना है और जिस हेतु से जगत् में इसका प्रचार हुआ है, अब वही सब कथा मैं माता पार्वती एवं भगवान् शिव का स्मरण करके कहता हूँ।

इस अद्भुत मानसरोवर के निर्माण की कथा सुनाते हुए वह कहते हैं- सुन्दर सात्विक बुद्धि भूमि है। हृदय ही उसमें गहरा स्थान है। वेद-पुराण समुद्र हैं, और साधु सन्त मेघ हैं। इन साधु-सन्त रूपी मेघों ने भगवान् श्रीराम के सुयश रूपी मनोहर और मंगलकारी जल की वर्षा की है। भगवान् की सगुण लीला का विस्तार इस मानसरोवर के जल की निर्मलता है। इसमें समाया भगवत्प्रेम एवं भगवद्भक्ति इस जल की मधुरता और सुन्दर शीतलता है। इस मानस सरोवर का जल सत्कर्मों की फसल के लिए बड़ा ही लाभकारी है। भगवान के भक्तों का तो यह जीवन ही है। यह पवित्र जल सात्विक बुद्धि रूपी धरती पर गिरा और सिमटकर सुहावने कानों के रास्ते चलकर मानस (हृदय की गहरी भावनाओं) में भरकर वहीं स्थिर हो गया। ऐसे बना यह मानसरोवर सुन्दर, शीतल और सुखदायी।

इस मानसरोवर के चार उत्तम संवाद (काकभुशुण्डि-गरुड़जी, भगवान् शिव-माता पार्वती, याज्ञवल्क्य-भारद्वाज और गोस्वामी जी एवं रामचरित मानस के हम सभी भक्त पाठकगण) इस पवित्र और सुन्दर सरोवर के चार मनोहर घाट हैं। रामचरित मानस के सात काण्ड इस मानसरोवर की सुन्दर सात सीढ़ियाँ हैं। यही वेदान्त ज्ञान की सप्त भूमियाँ हैं। इन्हें ज्ञान की आँखों से देखने पर मन प्रसन्न हो जाता है। प्रभु की निर्गुण एवं निर्बाध महिमा का वर्णन इस सरोवर के जल की गहराई है। भगवान् श्रीराम एवं माता सीता का यश- इसका अमृत जल है। इसमें जो काव्य उपमाएँ हैं, वही इस जल में उठने वाली मनोहर तरंगें हैं। सुन्दर चौपाइयाँ ही इसमें घनी फैली हुई कमलिनी हैं। काव्योक्तियाँ मनोतियों को जन्म देने वाली सुहावनी सीपियाँ हैं।

इसमें जो सुन्दर छन्द, सोरठे और दोहे हैं, वही इसमें बहुरंगे कमलों का समूह है। इनका अनुपम अर्थ, ऊँचे भाव और सुन्दर भाषा ही इन कमल पुष्पों का पराग, मकरन्द और सुगन्ध है। सत्कर्मों के पुञ्ज कमल पुष्पों पर मंडराने वाले भौरों की पंक्तियाँ हैं। ज्ञान, वैराग्य और विचार इस मानसरोवर में विहार करने वाले हंस हैं। अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष, ज्ञान-विज्ञान के विचार, काव्य के नौ रस, जप, तप, योग और वैराग्य के प्रसंग ये सभी इस मानसरोवर में निवास करने वाले जलचर जीव हैं। पुण्यात्मा जनों एवं साधुओं द्वारा किया जाने वाला श्रीराम का गान इस सरोवर के सुन्दर जलपक्षी हैं। सन्तों की संगति इस सरोवर के चारों ओर की अमराई है। भक्तों की श्रद्धा यहाँ सदा छाई रहने वाली वसन्त ऋतु है।

तरह-तरह से किया गया भक्ति का निरूपण और क्षमा, दया तथा दम इस सरोवर के पास वाले बगीचे में लताओं के मण्डप हैं। मन का नियंत्रण, यम और नियम ही इन लताओं पर उगने वाले फूल हैं। ज्ञान फल हैं और भगवान् के चरणों की भक्ति और प्रेम इस ज्ञान रूपी फल का रस है। इस रामचरित मानस में जो अन्य अनेकों कथाएँ हैं- वे ही इस बगीचे के तोते-कोयल आदि रंग-बिरंगे पक्षी हैं। कथा सुनने में होने वाला रोमाँच सरोवर के पास के वाटिका, बाग और वन हैं। इस कथा श्रवण से मिलने वाला सुख सुन्दर पक्षियों का विहार है। अपना निर्मल मन ही वह माली है, जो इन बगीचों को भगवत्प्रेम के जल से सींचता है।

रामचरित मानस का मानसरोवर और उसके आस-पास के सभी वाटिका बगीचे अत्यन्त सुन्दर है। गोस्वामी जी कहते हैं- जो लोग इस प्रभु चरित को सावधानी से (साधनापूर्वक) गाते हैं, वही इस सरोवर की चतुराई से रक्षा करने वाले हैं। और जो श्रोता है, वही इस सुन्दर सरोवर में आने वाले श्रेष्ठ देवता हैं। ऐसे देव तुल्य मनुष्य ही इसमें स्नान करके इस सरोवर की शोभा बढ़ाते हैं। कुसंग में पड़े, साधन पथ से भटके हुए तो यहाँ पहुँच ही नहीं पाते। ऐसे बगुले और कौओं का यहाँ कोई काम ही नहीं है। क्योंकि ये लोग तो काम कथा की कीचड़ और काई में रस लेते हैं। यहाँ तो राम-कथा का माधुर्य है। इसलिए यह अद्भुत सरोवर केवल भक्तों, साधकों, सन्तों के लिए है।

इस मानसरोवर को अपने काव्य में प्रकट करने वाले गोस्वामी जी का इसके बारे में कहना है- ‘रामकृपा बिनु आई न जाई’ राम कृपा के बिना यहाँ आया नहीं जाता। और जो प्रभु की कृपा से यहाँ आकर इस सरोवर में स्नान करता है, उसके बारे में उनके वचन हैं- ‘महा घोर त्रय ताप न जरई’ वह फिर महाभयानक त्रयताप (आध्यात्मिक, आधिदैविक एवं आधिभौतिक ताप) से नहीं जलता। महाकवि और रामचरित मानस के महान् ऋषि तुलसीदास द्वारा प्रकट किए गए इस भक्ति सरोवर में स्नान करने वाले असंम्य जनों का कल्याण हुआ है। आगे भी असंम्य जन इसके अवगाहन से अपना कल्याण करते रहेंगे। इस सत्य की अनुभूति हम और आप भी तुलसी जयन्ती पर मानस के कथा प्रसंगों का पाठ व चिन्तन करके पा सकते हैं।


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