विधाता ने मनुष्य को सर्वसाधन संपन्न बनाकर धरती पर भेजा, पृथ्वी पर मनुष्य को शाँति न मिली।
वह विधाता के पास पहुँचा और कहा, “कृपाकर कुछ देवदूत भेज दीजिए, जिससे हमारी व्यथा दूर हो।” विधाता ने देवता भेजे। वे शाँति प्राप्त करने के उपाय संयम और कर्तव्य के रूप में समझाते रहे। किसी ने उनका परामर्श न सुना और अपनी ही बात कहते रहे। देवता दुःखी होकर लौट गए।
मनुष्य फिर पहुँचा और ईश्वर से सहायता करने के लिए इस बार और भी विनयपूर्वक अनुरोध किया।
विधाता ने सशर्त सहायता का वचन दिया। जो संयमशीलता, कर्तव्यपरायणता अपनाएँगे, उन्हीं को देवताओं की सहायता मिल सकेगी। तब से वे वही क्रम चला आया है, जो शर्त पूरी करते हैं, उन्हें ही देवता सुख-शाँति प्रदान करते हैं। वे दुर्भाग्यशाली हैं, जो प्रभू के संदेश की अवहेलना कर जीवन रूप अक्षय संपदा को सतत लुटाते और आँसू बहाते रहते हैं।