महर्षि अत्रि के वंश में उत्पन्न विदुषी विश्ववारा ने योगाभ्यास और विशाल अध्ययन के बल पर ब्रह्मवादिनी पद पाया। अपने ऋग्वेद के कितने ही अनुच्छेदों की गहन विवेचना की और उन लोगों का मुँह बंद कर दिया, जो स्त्रियों को वेद की अनधिकारिणी मानते हैं।