‘सत्यं वद’ (Kahani)

August 2002

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पाँच पाँडव-सौ कौरव द्रोणाचार्य की पाठशाला में पढ़ने गए। सभी शिष्य एक पाठ रोज याद कर लेते, पर युधिष्ठिर को कई दिन से एक ही पाठ को रटते हो गए। गुरुजी ने झल्लाकर इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया, ‘सत्यं वद’ इस पहले पाठ को शब्दों से याद नहीं कर रहा हूँ। जीवन में उतारने का ताना-बाना बुन रहा हूँ। जब एक पाठ हृदयंगम हो जाएगा, तब दूसरा आरंभ करूंगा।


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