केंद्र के समाचार-क्षेत्र की हलचलें

August 2002

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जम्मू वासियों तक पहुँचा शाँतिकुँज का संदेश

आतंकवाद की आग में झुलस रहे जम्मू एवं कश्मीर में पहली बार समाजनिष्ठ भावनाशीलों के बीच शाँति एवं एकता का संदेश पहुँचाने का प्रयास संपन्न हुआ। छह अप्रैल को जम्मू विश्वविद्यालय के ब्रिगेडियर राजेन्द्रसिंह ऑडिटोरियम में आयोजित इस कार्यक्रम में प्राँत के मुख्यमंत्री डॉ. फारुख अब्दुल्ला सहित कई गणमान्य हस्तियों ने भाग लिया। जम्मू मंदिरों का शहर है। सुरक्षा का बंदोबस्त भी काफी है, पर समय-समय पर होती रहने वाली घटनाओं के बावजूद आम लोगों का मनोबल काफी ऊँचा है एवं सारे कार्य चलते रहते हैं। प्रायः ढाई सौ से अधिक जम्मू व आसपास के कठुआ-ऊधमसिंह जिले, पंजाब की सीमा से जुड़े पाँच जिले एवं हिमाचल के समीप के जिलों के कार्यकर्ता इस कार्यक्रम में पहुँचे। जम्मू नगर के गणमान्य नागरिक भी इसमें उपस्थित थे। डॉ.फारुख अबदुल्ला व केंद्रीय प्रतिनिधि के भावभरे उद्बोधन को सभी ने सुना। मल्टीमीडिया पावर पाइंट प्रेजेटेंशन द्वारा इक्कीसवीं सदी के धर्म, वैज्ञानिक धर्म की महत्ता को जाना। कार्यकर्ता गोष्ठी में आगे इस क्षेत्र में कार्य विस्तार की चर्चा हुई। केंद्रीय दल रात्रि दीपयज्ञ के बाद लौट आया।

गोदावरी तीर्थ की सद्भावनाओं का प्रतीक शिवलिंग विश्वविद्यालय आएगा

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्राँगण में ठीक मध्य में एक साधना-कक्ष का निर्माण धरातल के नीचे किया जा रहा है, जिसमें एक हजार व्यक्ति एक साथ बैठकर ध्यान कर सकेंगे। इसके ठीक ऊपर केंद्र में एक शिवालय बनाया जा रहा है, जहाँ महाकाल के प्रतीक की स्थापना होगी। नासिक रोड के श्री के.सी. पाँडे जी के ‘गारगोटी अंतर्राष्ट्रीय मिनरल म्यूजियम’ द्वारा नवरात्रि के दौरान साढ़े सात सौ किलोग्राम के एक बड़े शिवलिंग एवं छह छोटे शिवलिंगों के पूजन हेतु शाँतिकुँज प्रतिनिधि को आमंत्रण गया। इन्हें इसी शिवालय में स्थापित किया जाना है। 18 अप्रैल को केंद्रीय दल गया एवं नासिक के अपने सभी परिजनों तथा कैलाश मठ ट्रस्ट के महंत आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी संविदानंद जी की उपस्थिति में इसका विधिवत् पूजन-अर्चन किया गया। मुँबईवासी व आसपास के सभी कार्यकर्ता उपस्थित थे। सात फीट लंबे व प्रायः साढ़े तीन फुट चौड़े इस विशाल शिवलिंग को इस वर्ष के अंत में महाकाल रथयात्रा में नासिक से हरिद्वार लाया जाएगा। प्रायः डेढ़ माह बाद यह रथयात्रा हरिद्वार पहुँचेगी एवं संभवतः आगामी वसंत पर्व (6 फरवरी) या महाशिवरात्रि (1 मार्च) को इसकी प्राणप्रतिष्ठा विधिवत् संपन्न होगी। निश्चित ही विश्वविद्यालय के लिए यह ऊर्जा का केंद्र बनेगा।

विश्वविद्यालय की प्रथम कार्यशाला संपन्न

25 एवं 26 अप्रैल को देवसंस्कृति विश्वविद्यालय परिसर शाँतिकुँज में ‘समाज में मूल्य आधारित शिक्षा एवं मूल्य विकास के पावन प्रयास’ पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई। उत्तरांचल के समापन समारोह में आए तथा उद्घाटन सत्र को एन.सी.ई.आर.टी. के डॉ. जे.एस. राजपूत ने संबोधित किया। इसमें पूरे भारत के प्रायः ढाई सौ से अधिक शिक्षाविद् पधारे। शिक्षा एवं विद्या के सार्थक समन्वय पर विचार-विमर्श चला। दो सौ से अधिक शोधपत्र पढ़े गए एवं सकारात्मक निष्कर्ष निकाले गए, ताकि आज की शिक्षा नीति में बदलाव लाया जा सके। संगोष्ठी को कुमायूँ, गढ़वाल, रुहेलखंड, चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय के विभिन्न विद्वानों के अतिरिक्त लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ के कुलपति डॉ. वाचस्पति उपाध्याय ने भी संबोधित किया।

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में शिक्षण सत्र का शुभारंभ

3 जून को प्रथम कुलपति डॉ. एस.पी. मिश्र के पदभार ग्रहण करते ही विश्वविद्यालय सक्रिय हो उठा है। प्रायः दो सौ छात्र परिसर में आ चुके हैं एवं एंट्रेंस टेस्ट के बाद योग में एम.ए./एम.एससी. का 2 वर्षीय, 1 वर्ष का डिप्लोमा, 3 माह का सार्टीफिकेट कोर्स तथा मनोविज्ञान (आयुर्वेद आधारित) में एम.ए./एम.एससी. के पाठ्यक्रमों का शिक्षण प्रारंभ हो चुका है। विश्वविद्यालय की वेबसाइट डीएसवीवी.ऑर्ग पर विस्तृत जानकारी ली जा सकती है।

महिला जागरण सम्मेलनों की द्वितीय शृंखला

सफलतापूर्वक संपन्न- विगत 20 अप्रैल से जून से आरंभ तक तीन टोलियों के माध्यम से प्रायः तीस कार्यक्रम सारे भारत के कोने-कोने में महिला जागरण सम्मेलन के रूप में संपन्न हुए। ब्रह्मवादिनी बहनों के माध्यम से युगऋषि का संदेश सुनकर जन-जन प्रभावित हुआ है। अब आगामी शृंखला 1 अक्टूबर से मार्च 2003 के अंत चलेगी एवं स्थान-स्थान पर शिक्षण सत्र भी आयोजित किए जाएँगे।


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