आत्मा की अनंत यात्रा का एक पड़ाव है या जीवन

June 2001

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जन्म चेतना की प्रत्यक्ष अवस्था है, तो मृत्यु इस प्रकटीकरण का अवसान। जन्म और मृत्यु आत्मा की यात्रा के पड़ाव है। किसी एक जीवन के प्रति व्यक्ति विशेष का लगाव रहने पर अगले जीवन में भी यह संस्मरण सजीव रहता है और पुनर्जन्म के रूप में अतीत के चलचित्र को उजागर करता है। क्या मौत और जिंदगी के बीच की स्थिति का वर्णन संभव है,? करीब पाँच साल पहले तक चिकित्सा शास्त्री मानते थे कि जीवन के उस पार का वर्णन करना असंभव है, कारण कि उनके अनुसार हृदय की गति रुकते ही मस्तिष्क को रक्त के जरिए ऑक्सीजन मिलना बंद हो जाता है और उसके बाद से मौत के होने तक (जो करीब पाँच मिनट बाद मस्तिष्क तंतुओं में विकार पैदा हो ही जाती है) मनुष्य न कुछ देख सकता है, न कुछ अनुभव कर सकता है और न कुछ समझ सकता है। इसलिए वे मृत्यु के स्वरूप के सब वर्णनों और मृत्यु के बाद के सब संस्मरणों को काल्पनिक मानते है। उनका तर्क था कि ऐसे वर्णनों और संस्मरणों का कोई आधार नहीं है।

आधुनिक चिकित्साशास्त्रियों की इस मान्यता के बावजूद कुछ ऐसे विश्वसनीय और प्रामाणिक उदाहरण सामने आए हैं, जिनसे लगता है कि विद्युत तरंगों से शून्य स्तब्ध मस्तिष्क में भी मृत्यु पथ की यात्रा और अगले जनम की स्मृति रेखाएँ अंकित रह जाती हैं। इनमें सबसे उल्लेखनीय उदाहरण जीवंतता की सजीव मूर्ति सुविख्यात अभिनेत्री एलीजाबेथ टेलर का है, जो मौत के चंगुल से मुक्त होकर कुछ समय बाद जीवन में वापस लौट आई थी।

जीवन लाभ करने के बाद मौत के दरवाजे के उस पार का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि लंदन के उस ऑपरेटिंग थियेटर में मौत मेरे चारों ओर मँडराने लगी थी मृत्यु के मुख में होते हुए भी मैं जिंदा रहने की कोशिश कर रही थी। उनके अनुसार विजीविषा न हो तो शायद मौत एक सहज सुखदायक और स्वागत योग्य अनुभव बन जाए। धीरे-धीरे मेरा शरीर जीवन को निरंतर सोखता चला गया, साँसें बंद हो गई और जीवन शेष न रहा। अनजाने- अकेलेपन का एहसास हुआ। इस अवस्था में दो अनुभूतियाँ हुई, पहल छोटे-बड़े, कठोर मृदु हाथों से मैं ढक गई। दूसरी अनुभूति भूली बिसरी आवाजों की हुई। वे दोनों अनुभूतियाँ तब तक होती रही जब तक साँसों की हलचल पुनः शुरू न हो गई। ठीक इसी समय मेरे शरीर को डॉक्टर मृत घोषित कर चुके थे। इस तरह मृत्यु एक स्थिर अनुभव नहीं हैं, अनुक्रमिक अनुभूति है।

इतना ही नहीं, कतिपय घटनाओं से यह भी पता चलता है कि कृताता आत्मा का गुण है, जो मृत्यु के बाद की इस घटना से सिद्ध होता है। घटना क्−फ्म् की है। स्त्र वर्षीय श्रीमती बीज रूस एक कलाकृति के सृजन के लिए न्यूयार्क से पेरिस आई हुई थीं। अनजानी जगह पर वह चाहकर भी न सो सकी। यूँ सोचते-सोचते अचानक झपकी आ गई। इस दौरान एक अज्ञात शक्ति उन्हें बिस्तर से उठाकर उनके स्टूडियो में ले गई। अंधेरे में ही कागज पर उनके हाथ ने ब्रश चलाना शुरू कर दिया। उन्हें लग रहा था कि कोई अज्ञात शक्ति संभवतः उनके माध्यम से अपनी मनचाही कलाकृति का सृजन कर रही है। जो कुछ घट रहा था, उस पर उनका कोई वश नहीं है। सुबह उठकर अंधेरे में बने उस चित्र को देखकर दंग रह गई। यह असाधारण कलाकृति किसी अनजान सुँदरी की थी।

सौभाग्य से उन्हें एक ऐसी महिला का पता चला, जो किसी भी वस्तु को देखकर या छूकर उसका संबंध उसके अतीती से स्थापित कर सकती थी। सचमुच उस महिला ने स्पेन के महान चित्रकार गोया की प्रेतात्मा से संपर्क स्थापित करने के बाद उस रहस्य को सुलझा दिया। गोया की मृत्यु क्त्त्ख्त्त् में हुई थी। जीवन के अंतिम दिनों में स्पेन स्थित अपने शत्रुओं से मुक्ति पाने के लिए फ्राँस के दक्षिण भाग में स्थित बीज रूप के पूर्वजों के घर में शरण ली थी। इस अहसान का बदला था, जो वीज रूस को चित्रकारिता के रूप में गोया की प्रेतात्मा ने चुकाया। इस घटना का अमेरिकी परामनोवैज्ञानिक डॉ. स्टीवेंसन ने वैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण किया है।

एक अन्य घटना में चार साल का अनिल कुमार जब अपनी माँ को भाभी कह कर पुकारने की जिद पर अड़ा रह, तो उससे घरवालों को बड़ा आश्चर्य हुआ। इस मामले का दिलचस्प पहलू तब सामने आया जब अनिल कुमार ने अपने पूर्व जन्म का सारा वृत्तांत कह सुनाया। अनिल की विचित्र परंतु सत्यकथा इस प्रकार है, पूर्व जन्म में जब वह सोलह साल का था, तो अपनी भाभी को लेने के लिए रिक्शा में बैठकर रवाना हुआ। कुछ दूर चलने के बाद रास्ते में ही दुर्घटना हो गई, जिसमें उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना की जाँच करने वाले एडवोकेट श्री एलपीमाथुर ने सहवासन में अनिल के साथ हुई दुर्घटना की पुष्टि की। उसने उस रिक्शा का नंबर फ्फ्स्त्र बताया, जिस पर आजकल जाप्ता फौजदारी के अंतर्गत उसके मालिक और चालक पर मुकदमा चल रहा है। अनिल ने सहवासन में अपने पूर्व जन्म के भाई भाभी को भी पहचान लिया। घर से बाहर स्कूल में भी उसे अपने तमाम पुराने अध्यापकों और सहपाठियों को पहचानने में कोई परेशानी नहीं हुई उसने उस जूते की दुकान की ओर भी संकेत किया, जिसमें अक्सर वह बैठा करता था। पिछले जन्म में वह सहवासन के मुख्तार क्षेत्रपाल के पुत्र और लालाजी के नाम से जाना जाता था। अब उसने उसी घर में अपनी भाभी के पुत्र अनिल कुमार नाम से जन्म लिया था।

अमेरिका के प्रख्यात पुनर्जन्म विशेषज्ञ फ्राँसिस स्टोरी पिछले बीस वर्षों से भी अधिक समय तक पुनर्जन्म की घटनाओं की जाँच करते रहे हैं। स्टोरी ने एशिया के भारत, वर्मा, थाइदेश और श्रीलंका आदि देशों में काफी खोजबीन की है। एक बार क्−म्ख् में पुनर्जन्म के अध्ययन के संबंध में वह खाम गए थे। इस दौरान मध्य थाइदेश, सूरिन में स्थित एक सैनिक शिविर के कंपनी कमाँडर कैप्टन नित वालसिरी ने उनके पास एक संदेश भेजा। उसने अनुरोध किया कि शिविर के सार्जेट थियाँग सान क्ला, जिसे अपने पुनर्जन्म की काफी घटनाएँ याद है, से मिले।

सार्जेट क्ला कद से छोटा और काफी चुस्त और पुष्ट था उसके बायें कान से लेकर खोपड़ी के निचले सिरे तक चोट का एक भद्दा सा निशान था। उससे पूछे जाने पर अपना विवरण इस प्रकार सुनाया, मेरे पूर्व जन्म का नाम होह था। मेरी मृत्यु क्−ख्ब् में हुई थी। इस जन्म के पिता मेरे पूर्व जन्म के बड़े भाई थे। मवेशी चुराने संबंधी घटना के कारण गाँव वालों ने मुझ पर तेज चाकू से हमला कर दिया। चाकू खोपड़ी में लगा और तत्काल मेरी मृत्यु हो गई। वही निशान मेरे इस जन्म में भी बना हुआ हैं इस घटना को और अधिक स्पष्ट करते हुए उसने बताया कि मेरी मृत्यु चाँग नाम के व्यक्ति के वार से हुई। मैं चाँग से बदला लेना चाहता था, परंतु कुछ समय बाद वह भी मर गया। मृत्यु के बाद मैं अपने मृत शरीर को स्पष्ट देख रहा था। खून से सना मेरा मृत शरीर पड़ा हुआ था। मैं सबको देख रहा था, परंतु मुझे कोई देख नहीं पा रहा था। बारी-बारी से सभी मित्रों, रिश्तेदारों के पास गया। बड़ी इच्छा हुई कि मैं भैया के घर में जन्म लूँ, जिससे उसी परिवार में मुझे प्यार मिल सके। भाभी का पेट फूला और मैं उसी के गर्भ में प्रवेश कर गया। क्ला ने अपने पूर्व जन्म की पत्नी मई (जिनकी मौत क्−ख्ब् में स्त्रम् वर्ष की आयु में हुई) निजीस को पहचान कर भी स्वयं को प्रमाणित किया। सूरिन नगरपालिका के एक अधिकारी स्त्रख् वर्षीय प्रमाने ने होह की हत्या के मामले की जाँच की थी। क्ला के बयान के सारे तथ्य को उसने सही बताया।

जुड़वाँ बच्चों के बारे में अक्सर कहा जाता है कि उनकी उत्पत्ति और विकास विषयक परिस्थितियाँ समाजन होते हुए भी उनकी नियति अलग-अलग ही होती है। इस घटना में जुड़वाँ लड़कियों में से सिर्फ एक को अपने पूर्व जन्म की याद थी। क्−स्त्रम् में अमेरिका के मर्सर नाम के एक कस्बे के एक साधारण परिवार में जुड़वाँ लड़कियों ने जन्म लिया था। एक का नाम था गेल और दूसरी का सुसान। थोड़ी बड़ी होने पर गेल कुछ यहूदियों का नाम कहती कि वह उन लोगों को जानती है। उसने बताया मेरा जन्म जर्मनी में हुआ था और हिटलर के यातना शिविर में मेरी मृत्यु हुँई थी। गेल के पिता ने इस मामले को अमेरिका के पुनर्जन्म विशेषज्ञ को सौंपा। जिसने इसकी जाँच करने पर तथ्यों को सही पाया। ईसाई होते हुए भी क्त्त् साल की गेल गिरजाघर के बजाय अपने कस्बे से क्भ् मील दूर यहूदियों के उपासना गृह में उपासना के लिए जाती है।

“मैं जब कभी अपने कमरे में अकेला होता हूँ, तो कुछ होने लगता है। जिसके आधार पर मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि मेरे अंतःव्यक्तित्व का परिचालन मुख्यतः पूर्व जन्मों के संस्कार ही करते हैं। अवचेतन में निहित जन्म-जन्म के ये संस्कार हमें समय-समय पर चेतावनी भी देते हैं और हितकर परामर्श भी।”

यह वक्तव्य था महान कवि विलियम बटलर शीट्स का, उन्हें क्−ख्फ् में साहित्य का नोबुल पुरस्कार मिला था। उन्होंने स्पष्ट रूप से स्वीकार कि वे पूर्व जन्म में लियो आफ्रीकंस नामक कवि थे। सोलहवीं सदी में जन्में लियो आफ्रीकंस यूरोप के नामी कवि और भूगोलशास्त्री थे। शीट्स कहते है। आफ्रीकन्स की आत्मा ने विचित्र स्वरों एवं अनेक महान क्षणों में मेरा मार्गदर्शन किया है। यही कारण है कि विचारों में डूबते ही उस काल के साहित्य से मेरा अनायास सामंजस्य स्थापित हो जाता है। अपने पूर्व जन्म का प्रभाव शीट्स के अंतर्मन पर अंत तक प्रबल और गहरा बना रहा। इस प्रभाव की विराट् रहस्यमयी छाया चित्र विचित्र प्रतीकों के माध्यम से उनकी रचनाओं में स्पष्ट दिखाई देती है।

ये सभी घटनाएँ हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण सूत्रों की ओर संकेत करती है। इनसे यह स्पष्ट होता है कि वर्तमान जीवन ही जीवन का अंत नहीं वरन् आत्मा की अनंत यात्रा का एक पड़ाव है। इसको परिष्कृत और पवित्र कर नए तथ्यों और समाधान की खोज करनी चाहिए। जिससे अनंत पथ की यात्री आत्मा उत्तरोत्तर विकासावस्था की ओर अग्रसर होती रह सके।


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