लोगों का मैल धोने लगा (kahani)

June 2001

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

वाजिश्रवा ने अपने पुत्र नचिकेता को उसकी इच्छानुसार यमाचार्य के लिए दान कर दिया। वह ब्रह्मविद्या प्राप्त करना चाहता था। अतः वे उसके मार्ग में बाधक नहीं बने। मोह ने उन्हें विचलित नहीं किया। यम ने बार-बार समझाया। पराक्रम से वैभव पाया जा सकता है। तुम साधना करो और सिद्धियाँ लेकर प्रसन्नता भरे दिन बिताओ। ब्रह्मविद्या तो छुरे की धार है, उसे पाने के लिए अपने मनोरथों से लड़ना पड़ता है और सोने की तरह अपने को तपाना पड़ता है, वह तुम कैसे कर सकोगे? नचिकेता का आग्रह नहीं, संकल्प था। उसे हर कीमत पर उपलब्ध करने का प्रण दुहराया। यमाचार्य उसे पाँच अग्नियों में तपाते गए और एक-एक करके ब्रह्मविद्या का एक-एक सोपान पार कराते गए। इन तपस्याओं में उसे इंद्रियजयी, मनोजयी, कालजयी बनना पड़ा। उसने पाँच इंद्रियों और पाँचों मनोरथों का निरस्त कर लिया था, अस्तु वह सच्चे अर्थों में ब्रह्मवेत्ता बना।

सरिता के सुरम्य तट पर सुशोभित शिव मंदिर, उसके पास ही घाट पर धोबियों के पत्थर पड़े थे। मंदिर में प्रतिष्ठित शिवलिंग और धोबी का एक पत्थर दोनों कभी पर्वत उपत्यिका के साथ-साथ चले थे। काल गति ने एक को शिव प्रतिमा बना दिया, तो दूसरे को धोबी का पत्थर। धोबी का पत्थर आत्महीनता अनुभव कर दुःखी होता। उससे एक दिन रहा नहीं गया, शिवलिंग को संबोधित कर कहा, “तात! आप धन्य है। देव मंदिर में प्रतिष्ठित है। भव-बंधनों में जकड़े प्राणी आपके पास आकर कितनी शांति, कितना संतोष अनुभव करते हैं। काश, यह पुण्य सुयोग हमें भी मिलता।” शिवलिंग आत्मप्रशंसा सुनकर गंभीर हो उठे। बोले, “तात! आपका दुख करना निरर्थक है, आप नहीं जानते, हम तो मात्र यहाँ आने वाले लोगों को क्षणिक शाँति और शीतलता प्रदान करते हैं। आप तो निर्विकार भाव से हर किसी का मैल धोते रहते हैं। आपकी साधना धन्य है। मेरे पास अपने की प्रथम कसौटी तो आप ही हैं। इसलिए जब लोग मेरी उपासना करते हैं, तब मैं आपकी किया करता हूँ। घाट का पत्थर गद्दा हो उठा और दुगने उत्साह से लोगों का मैल धोने लगा।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118