हीरक जयंती वर्ष में परमपूज्य गुरुदेव के ज्ञानशरीर को घर-घर तक पहुँचाएँ

June 2001

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

“हमारे लिखे विचारों में कितनी आभा हैं, कितनी रोशनी हैं, कितनी मौलिकता है और कितनी शक्ति हैं, यह कहने की नहीं, अनुभव करने की बात है। जिन्होंने इन्हें पढ़ा, तड़पकर रह गए। रोते हुए आँसुओं की स्याही से जलते हृदय ने इन्हें लिखा हैं, सो इनका प्रभाव होना ही चाहिए, हो रहा है और होकर रहेगा।” (अखण्ड ज्योति अगस्त क्−म्−, पृष्ठ ब्क्) यह अभिव्यक्ति है परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी की, अपने विचारों के संबंध में, जो उन्होंने अपनी कलम से जीवनभर लिखे। उनकी लेखनी बहुत कम उम्र से प्रायः क्ख्-क्फ् वर्ष की आयु से ही सक्रिय हो उठी थी, किंतु विधिवत लेखन उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने एवं श्री अरविंद, रवींद्रनाथ टैगोर एवं महात्मा गाँधी से मिलने के बाद प्रायः सत्ताईस वर्ष की उम्र में क्−फ्स्त्र-फ्त्त् में आरंभ किया, जब उन्होंने ‘अखण्ड ज्योति’ प्रकाशित करने का प्रयास किया। इस प्रक्रिया में कुछ अवरोध आए, परंतु क्−ब् के वसंत पर्व से अनवरत यह प्रकाशित होने लगी एवं उसी वर्ष एक ग्रंथ लेकर भी आई, “मैं क्या हूँ’। व्यक्ति को अपने अंदर की चेतना तक ले जाकर बोध कराने वाली यह पुस्तक आज भी परिजनों-पाठकों की प्रिय पुस्तक बनी हुई हैं।

पुरुषार्थ सक्रिय रहा

क्−ब् से प्रारंभ हुआ पुरुषार्थ कागज काले करने के लिए नहीं वरन् जन-जन के मन को मथने एवं अंतः में छिपे देवत्व को उभारने के लिए सक्रिय हुआ था। यह क्रमशः और तीव्र गति लेता चला गया एवं प्रायः प्रतिवर्ष एक या दो विशेषांक एवं त्त्-क् पुस्तिकाओं का ‘अखण्ड ज्योति संस्थान’ मथुरा से प्रकाशन होने लगा। व्यक्ति के मन की समस्याओं का समाधान, शारीरिक स्वास्थ्य, समाज की विभिन्न समस्याओं का विधेयात्मक सुधारात्मक हल किए ‘अखण्ड ज्योति’ लोकप्रिय होने लगी। इसने राष्ट्र की आजादी वाला वर्ष पार किया, लोगों की राजनीतिक चेतना को जगाया। एक आजाद राष्ट्र में किए जाने वाले कर्तव्यों का स्मरण कराया, साथ ही अध्यात्म दर्शन, गायत्री महामंत्र की विशद् व्याख्या यज्ञ के तत्वज्ञान से जन-जन को परिचित कराते हुए अपनी एक अलग पहचान बना ली। क्−भ्त्त् के सहस्रकुंडी महायज्ञ मथुरा के बाद इसने एक विराट गायत्री परिवार के संगठनात्मक नवसृजन की भूमिका संभाल ली एवं देखते-देखते यह प्रत्येक परिजन की एक अनिवार्य पाठ्य पुस्तिका बन गई। व्यक्ति, परिवार, समाज निर्माण की धुरी पर केंद्रित ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका ने युग के नवनिर्माण की योजना क्−म्ख् में प्रस्तुत की। इसके बाद साधनात्मक मार्गदर्शन हेतु लगातार ‘पंचकोशीय जागरण’ साधना का पत्राचार-मार्गदर्शन इससे चलने लगा। ढेरों व्यक्ति साधना के क्रम में इससे जुड़ें।

क्रांतिकारी स्वर

क्−म्भ्-म्म् से परमपूज्य गुरुदेव के स्वर क्राँतिकारी एवं तीखे होते चले गए एवं उन्होंने महाकाल की युग-प्रत्यावर्तन प्रक्रिया के आरंभ होने का उद्घोष कर दिया। साथ ही एक पत्रिका और प्रकाशित होने लगी ‘युग निर्माण योजना’। व्यक्ति निर्माण यदि अखण्ड ज्योति की विषयवस्तु था, तो परिवार एवं समाज निर्माण ‘युग निर्माण योजना’ पत्रिका की। दोनों का ही इष्ट एवं लक्ष्य एक था, देवमानवों द्वारा युग का नवनिर्माण।

विज्ञान ओर अध्यात्म के समन्वयात्मक दार्शनिक प्रतिपादनों ने क्−म्म्-म्स्त्र के बाद एक बहुत बड़े बुद्धिजीवी, तर्क-तथ्य प्रमाण की भाषा समझने वाले वर्ग को गायत्री परिवार, अखण्ड ज्योति परिवार से जोड़ा। बड़ी संख्या में छात्र-अध्यापक, वैज्ञानिक, चिकित्सक आदि इस चिंतन से जुड़ते चले गए। जीवन जीने की कला की विधा के रूप में अध्यात्म का प्रतिपादन कर जीवन साधना को एक अनिवार्यता बताने वाले आचार्य श्री ने जन-जन के हृदय स्थल को स्पर्श ही नहीं किया वरन् अपने विचारों से गजब का एक क्राँतिकारी आँदोलन खड़ा कर दिया। यह अपने समय का विचार क्राँति अभियान बना, जो साधना की पृष्ठभूमि पर टिका था।

अंतिम पुरुषार्थ

क्−स्त्र-स्त्रक् से लेकर क्−− तक की आयुष्य के अंतिम बीस वर्ष का समय परमपूज्य गुरुदेव की जीवन साधना के प्रखरतम पुरुषार्थ का समय है। इस अवधि में उन्होंने युगतीर्थ शांतिकुंज की स्थापना की। इसकी बागडोर परमवंदनीया माताजी के हाथ में सौंपी। स्वयं उच्चस्तरीय व्यक्तियों के निर्माण में लग गए। उनसे प्राण प्रत्यावर्तन साधनाएँ संपन्न कराई, वानप्रस्थ का पुनरुज्जीवन किया एवं हरिद्वार में ब्रह्मवर्चस् षोध्पा संस्थान सहित प्रायः ढाई हजार गायत्री तीर्थों, शक्तिपीठों की स्थापना की। अस्सी वर्ष की आयु तक खिले ब्रह्मकमल की एक-एक पंखुड़ी एक महत्वपूर्ण स्थापना का इतिहास लिए, क्राँतिधर्मी साहित्य के निर्माण एवं इक्कीसवीं सदी उज्ज्वल भविष्य के उद्घोष के साथ क्−− तक सुवासित रह गायत्री जयंती ख् जून के दिन स्थूल रूप में दृष्टि के वर्ष के लिए लिखे गए विचारों का सशक्त जखीरा उनकी पत्रिका अखण्ड ज्योति एवं वाङ्मय के रूप में जीवंत है, सूक्ष्म व कारण सत्ता से सक्रिय है एवं आज लाखों नहीं, करोड़ों के मर्म को स्पर्श करता दिखाई देता है।

महापुरुष कभी मरते नहीं, वे सतत विचारों से सक्रिय रह हजारों-लाखों-करोड़ों को प्रेरणा देते रहते हैं। स्वामी विवेकानंद एक छोटी आयुष्य का जीवन जीकर क्−ख् में शरीर छोड़कर गए, परंतु उनके जाने के बाद उनके प्रचंड वैचारिक ऊर्जा प्रवाह ने जो क्राँति का तूफान पैदा किया, वह दिन-प्रतिदिन गति पकड़ता जा रहा है। श्री अरविंद ने स्वयं को प्रकाराँतर से जीवन के अंतिम चालीस वर्षों में कुछ गिने-चुने व्यक्तियों तक सीमित रह साधना में खपा दिया था, पर क्−भ् में उनके महाप्रयाण के बाद उनके विचारों ने जो तीव्र गति पकड़ी, वह आग भी उनके साहित्य के विस्तार में देखी जा सकती हैं।

प्राण संजीवनी वाड्मय एवं अखण्ड ज्योति पत्रिका

परमपूज्य गुरुदेव ने जीवनभर न केवल मासिक पत्रिका ‘अखण्ड ज्योति’ के रूप में प्राण संजीवनी जन-जन तक पहुँचाने वाली पाती पहुँचाई, पुस्तकों के रूप में वह मार्गदर्शक साहित्य लिखा, जिसकी कि भारतवर्ष को ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व को अत्यधिक आवश्यकता थी। उन्होंने बेड़ियों में जकड़े धर्मतंत्र को न केवल मुक्त कर उसका स्वरूप सबके समक्ष स्पष्ट किया, उसका व्यावहारिक अध्यात्मपरक प्रतिपादन प्रायः फ्ख् से अधिक लिखी, बड़ी-छोटी पुस्तिकाओं के रूप में प्रकाशित किया। कोई एक व्यक्ति इतना अधिक कार्य अपने जीवित रहते रह सकता है, यह अकल्पनीय है। बिना किसी स्टेनो या सहायक के एकाकी अपने पुरुषार्थ के बलबूते उन्होंने सारगर्भित विचारों-प्रतिपादनों से भरे इस साहित्य का जीवनभर सृजन किया एवं जन-जन को इस सुधा को पिलाकर उनके जीवन की राह को एक नई प्रगति की दिशा की ओर मोड़ दिया। इसी साहित्य का संकलन है-स्त्र खंडों में प्रकाशित वाङ्मय।

परमपूज्य गुरुदेव द्वारा लिखे गए साहित्य के इस वाङ्मय के एक-एक खंड में जिन विषयों के अंतर्गत उनके द्वारा विगत साठ वर्षों में लिखे विचारों को संकलित किया गया है, वे स्वयं में निराले हैं। किसी ‘एनसाइक्लोपीडिया’ की तरह ये सत्तर ग्रंथ एक प्रकार से सौगुना शोधग्रंथों की सिनाप्सिस की तरह हैं। इनका विमोचन भारत सरकार के प्रधानमंत्री के हाथों आंवलखेड़ा (आगरा) की प्रथम महापूर्णाहुति की वेला में क् नवंबर क्−−भ् को हुआ। तब से अब तक ये ग्रंथ भारत के कोने-कोने में पहुँच पाने में सफल हुए हैं।

हीरक जयंती वर्ष में ‘ज्ञान शरीर’ की स्थापना

परमपूज्य गुरुदेव के विचारों को हम जितना अधिक, जितनी तेजी से जन-जन तक पहुँचा पाएंगे, उतना ही युग के नवनिर्माण का प्रयोजन पूरा होता दीख पड़ने लगेगा। वाङ्मय का पुस्तकालयों में स्थापित कराना, विभिन्न विद्यालयों, महाविद्यालयों में एक अनिवार्य अंग के रूप में पहुँचाना अब हमारे सभी परिजनों का परम ध्येय बन जाना चाहिए। इसके लिए ‘अखण्ड ज्योति ज्ञान केंद्र’ की स्थापना स्थान-स्थान पर हो एवं जिसके न्यूनतम फ् सदस्य हों। इसकी स्थापना में अपने निज की या अन्य समान विचारधारा के व्यक्तियों की पूँजी मिल-जुलकर लगाई जा सकती है। ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका जो अब म्भ्वें वर्ष में चल रही है, को अधिकाधिक पहुँचाना, वाङ्मय को सरकारी-सामाजिक संगठनों के माध्यम से एक अभियान के रूप में स्थापित किए जाने का महायज्ञ अब किया जाना चाहिए। इस हीरक जयंती वर्ष का यह अतिरिक्त पुरुषार्थ हमारा हो कि हम अपने प्रभाव का पूरा उपयोग कर स्थान-स्थान पर वाङ्मय स्थापित कर सकें। हर पोस्ट ग्रेजुएट, डिग्री एवं इंटर कालेजों में अपने प्रयासों से यह स्थापित हो जाए। यदि परमपूज्य गुरुदेव के विचार इन स्थानों पर पहुँच गए, तो शिक्षा और विद्या का सार्थक समन्वय होने लगेगा।

ऐसे केंद्री अधिकाधिक स्थापित हों एवं वे मात्र विचार क्रांति के जाग्रत तीर्थ बनें, ऐसा मन हैं। वहाँ से मिशन की पत्रिकाओं तथा अभी सत्तर खंडों में फैले विचार समुच्चय के रूप में विद्यमान परमपूज्य गुरुदेव के ‘ज्ञान शरीर’ के रूप में वाङ्मय के विस्तार की, घर-घर स्थापना का अभियान चले, तो देखते-देखते परिवर्तन गति पकड़ने लगेगा। परिजन ऐसे केंद्रों की स्थापना, उनके संचालन की योजना, वित्तीय तंत्र आदि के विषय में संलग्न फार्म भरकर अखण्ड ज्योति संस्थान घीयामंडी मथुरा भेज दें एवं इस गायत्री जयंती गुरुपूर्णिमा से इस योजना के सक्रिय अंग बनकर कार्य करें, ऐसा सभी से भावभरा आह्वान है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118