धन का दुरुपयोग नहीं (kahani)

June 2001

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गाँधीजी के सामने डाक का ढेर लगा था। वह आए हुए प्रत्येक पत्र को ध्यान से पढ़ते जाते और जो हिस्सा कोरा होता, उसे कैंची से काटकर अलग रख लेते। एक सज्जन वही पास में बैठे थे और बहुत देर से गाँधीजी की कतरनें देख रहे थे। उन्होंने बहुत आश्चर्य से पूछा-मैं यह जानना चाहता हूँ कि आप इन कतरनों को एकत्रित कर क्यों रखते जा रहे है? इनका क्या उपयोग है?

गाँधीजी ने कहा, मुझे जब पत्रों के उत्तर देने होते है, तब मैं इन्हीं कतरनों का उपयोग करता हूँ। यदि ऐसा न करुँ तो यह कागज बेकार हो जाएँगे और इससे दो प्रकार की हानियाँ होगी, एक तो अनावश्यक खरच में वृद्धि हो जाएगी और दूसरे राष्ट्रीय संपत्ति नष्ट होगी। किसी देश में जितनी वस्तुएँ है, वह सब उस देश की संपत्ति मानी जानी चाहिए। हमारा देश निर्धन है। ऐसी स्थिति में हमें धन का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।


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