अकारण ही छोड़ना पड़ा (kahani)

June 2001

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

बड़ौदा में दीवान पद पर काम करते हुए अरविंद घोष को सत्रह रुपये वेतन के मिलते थे। कलकत्ता में राष्ट्रीय विद्यालय खुला और उसके लिए वस्तुएँ सदैव परिश्रम से मिला करती हैं। सत्रह रुपये मासिक का प्रिंसिपल योग्यता का व्यक्ति चाहिए था। घोष बाबू ने सत्रह रुपयों की सीमित परिकर वाली नौकरी छोड़ दी और सत्रह रुपयों के प्रिंसिपल पद पर चले गए, क्योंकि वे एक बड़े परिवार को ज्ञान लाभ दे सकते थे। नेशनल कॉलेज ने कितने ही कर्मठ राष्ट्रीय कार्यकर्त्ता निकाले। यही घोषबाबू योगिराज अरविंद बनकर बाद में पाँडिचेरी जाकर बस गए एवं विराट् विश्व की सेवा करते रहे।

एक घना जंगल था। उसमें कई शूकर परिवार थे। आक्रमणकारी सिंह एक ही था। वह जब चाहता, हमला करता और किसी भी मोटे या दुर्बल शूकर को चट कर जाता । झुँड के अन्य सदस्य घबराकर, सिर पर पैर रखकर इधर-उधर भागते। एक दिन बूढ़े शूकर ने स्वजातियों - सभी परिवारों को एकत्रित किया और कहा, “मरना है, तो बहादुरी से क्यों न मरें? रहना है तो मिल जुलकर क्यों न रहे?” बात सभी को अच्छी लगी और वे उसके कहने पर चलने को तैयार हो गए। दूसरे दिन तगड़े शूकरों का एक दल गठित किया गया और योजना बनी कि आक्रमण की प्रतीक्षा न करके, शेर की माँद पर चलें और वहाँ उस पर हल्ला बोल दिया जाए। नई योजना, नई हिम्मत और नई आशा से तगड़ें शूकरों के हौसले बढ़ गए। सो वे बहादुरी के साथ चले और माँद में सोए शेर पर बिजली की तरह टूट पड़े।

शेर को ऐसी मुसीबत का सामना इससे पहले कभी भी नहीं करना पड़ा था। वह घबरा गया और जान बचाकर इतनी तेजी से भागा कि यह देख तक न सका कि हमला करने वाले कौन और कितने हैं? भयाक्राँत शेर ने उस जंगल में भूतों का निवास सोचा और फिर कभी उधर न लौटने का निश्चय करते हुए दूरस्थ वन में अपना डेरा डाल दिया। शूकरों के परिवार निश्चिततापूर्वक रहने और वन विहार का आनंद लेने लगे। उस क्षेत्र में रहने वाले शृगाल ने रात को अपने बच्चों को मनोरंजन करते हुए, शूकरों द्वारा सिंह पर किए गए आक्रमण की कथा सुनाई और कहा, “बड़ी ताकत नहीं, सूझबूझ है, जिसे अपनाकर शूकरों को श्रेय मिला। जिसके अभाव में सिंह को अपना राज्य अकारण ही छोड़ना पड़ा।”


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118