वह बसरा का सुलतान था। सुलतान होने के साथ ही वह खुद को जरूरत से ज्यादा समझदार एवं अक्लमंद भी समझता था। उसका एक काजी भी था, जो सदा ही प्रमुख काजी बनने की फिराक में रहता था। सो वह हमेशा ही तरह-तरह के दाव फेंकता रहता।
एक दिन सुलतान को अपनी बुद्धि पर कुछ ज्यादा ही गर्व हो गया। काजी ने इस अवसर का भरपूर फायदा उठाना चाहा। उसने सुलतान को कहा, हुजूर सलामत! आप अपने बड़े काजी की परीक्षा क्यों न कर लें। यदि वह सफल न हुआ तो उसे फौरन बदल देना चाहिए। सुलतान को यह बात जँच गई। काजी ने उसे सुझाया कि आप उनसे पूछें, बड़े मियाँ! खुदा क्या है? वह कहाँ-कहाँ रहता है? उसका मुंह किस दिशा की ओर होता है? वह क्या करता है इत्यादि।
काजी तो आग लगाकर घर चला गया। सुलतान नपे प्रधान काजी से यही सवाल पूछा और उसे एक सप्ताह का समय दिया।
काजी ने मजबूरी में ‘हाँ’ कर दी। परंतु यह सुलतान की नासमझी एवं चंचल स्वभाव से परिचित था। अतः वह बड़ा परेशान एवं चिंतित हो उठा था कि क्या करे, क्या न करे। इधर वक्ता था कि तेजी से खिसकता चला जा रहा था। आखिर कार एक हफ्ते की मोहलत बीत गई। वह इस विषय में कुछ सोच विचार नहीं कर पाया। ऐसे में उसने अपनी समस्या अपने एक वफादार नौकर के सामने रखी। नौकर जरा ज्यादा ही चालाक था। वह बोला, आप भी बाबा बेकार ही हैरान हो रहे है। आप यदि अन्यथा न लें तो मैं कल ही सुलतान को आपको पूछे सवालों का जवाब देकर संतुष्ट कर दूँ।
नौकर ने जवाब दिया, बाबा आप तो मुझे अपना नुमाईदा घोषित करके सुलतान के पास भेज दें। आगे की सारी बातों को आप मुझ पर छोड़ दें। मैं खुद संभाल लूँगा। यदि नहीं संभाली गई, तो जो भी दण्ड मिलेगा मुझे मिलेगा, आप तो बच जाएंगे।
इसी बीच सुलतान ने नौकर से काजी को बुलवाने भेजा और काजी ने सुनियोजित रूप से अपने नौकर को प्रतिनिधि बनाकर दरबार में भेज दिया।
नौकर बेझिझक अपनी मस्ती में मस्त सुलतान के पास पहुँचा और अर्ज किया, जहाँपनाह, हुक्म दीजिए। बंदा हाजिर है। आप क्या पूछना चाहते हैं?
सुलतान ने नौकर को क्रूरतापूर्वक घूरकर देखा, फिर सख्त स्वर में पूछने लगा, क्या तुम काजी से पूछे गए सभी सवालों का जवाब देने में सक्षम हो?
नौकर शाँत, संयत और निर्भय होकर बोला, आपके सवालों का जवाब लेकर ही मैं खिदमत में हाजिर हूँ। किंतु....................।
यह किंतु-परंतु क्या है? सुलतान एकाएक बीच में उबल पड़ा।
हुजूर! आप ज्ञान के अगाध भंडार के रहस्य को जानना चाहते हैं। मैं सारे रहस्यों का भेद भी खोल दूँगा, परंतु आप एक सच्चे मुसलमान का फर्ज अदा करें और मुझको अपने से ऊँचा आसन बख्सें। एक अच्छे गृहस्थ की तरह आप खुद जमीन पर बैठें। क्योंकि मजहब के मुताबिक जो जिज्ञासु है वह शागिर्द है तथा जो समाधान देगा वह उस्ताद होता है। सो मैं उस्ताद और आप शागिर्द हुए।
सुलतान को यह बात जँची। उसने उसके लिए बेशकीमती पोशाक मँगाई और अपना आसन बैठने के लिए पेश किया और खुद नीचे फर्श पर बैठ गया।
उस्ताद ने शागिर्द से प्रश्न पूछने की इजाजत दे दी। सुलतान पूछने लगा, उस्ताद! खुदा कहाँ पर रहता है? उस्ताद ने एक लोटा दूध मँगवाया और कहा, सुलतान आप तो बड़े ज्ञानवान व्यक्ति हैं। जरा बतलाइए इस दूध में मक्खन कहाँ पर है।
सुलतान ने काफी सिर खपाया, उसे कोई स्पष्ट जवाब नहीं सूझा। अंत में सुलतान ने कहा, इसमें मक्खन है तो सही, परंतु दिखाई नहीं दे रहा है।
उस्ताद बोला, आप यह तो स्वीकार कर रहे है कि इसमें मक्खन है तो जरूर, परंतु बता नहीं पा रहे हैं। इसी तरह से खुदा भी जहान के जर्रे-जर्रे में मौजूद है। मक्खन पाने के लिए दूध मथना पड़ता है, इसी तरह खुदा को पाने के लिए भी इंसान के हृदय को मथना पड़ता है।
सुलतान ने अपना अगला जवाब माँगा कि खुदा किस दिशा में मुँह किए रहता है।
उस्ताद बने नौकर ने तुरंत एक शमाँ मँगवाई, जब शमाँ आ गई तो उस जलती हुई शमाँ की लौ की तरफ संकेत करके उसने कहा, सुलतान जरा गौर करें और बताएँ कि यह रोशनी किस दिशा की ओर मुँह किए हुए है।
सुलतान को इसका भी कोई हल नहीं मिला, तो उस्ताद ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, जहाँपनाह यह रोशनी किसी एक तरफ मुँह किए हुए नहीं है, बल्कि चारों ओर एक साथ मुँह किए हुए है, जो चारों दिशाओं में एक साथ रोशनी के करते फेंक रही है। ऐसे ही इसलिए खुदा भी एक नूर है, वह भी हर तरफ अपनी चमक-दमक फैलाता ही रहता है। जहाँ निहारते हैं, वही उसका ही प्रकाश नजर आएगा।
सुलतान उस्ताद की इस वाक्पटुता से बड़ा ही संतुष्ट हुआ और बड़े विनम्र स्वर में पूछा, कृपया अब यह भी बता दीजिए कि खुदा करता क्या है?
नौकर ने उचित अवसर जान काजी को फौरन बुलवा लिया और फिर उसने सुलतान को अपने आसन पर बैठाया और कहा, जहाँपनाह! खुदा यही करता है। वह राजा को रंक और रंक को राजा करता रहता है। किसी को ताज देता है, किसी का ताज गिराता है। कालचक्र की इसी तरह की गति को पकड़कर चलाने वाला खुदा ही है। वह परिवर्तनशीलता बनाए रखता है।
सुलतान ने उसे अपना उस्ताद बना लिया। काजी के साथ उसे भी भरपूर उपहार देकर विदा किया।