पादरी लार्ड बेकन भारत आए तो धर्म परिवर्तन कराने का उद्देश्य लेकर थे। पर जहाँ की स्थिति को देखकर वे पिछड़े लोगों का जीवन स्तर ऊँचा उठाने में लग गए। धोती-कुर्ता पहनना शुरू किया। चर्च ने सहायता देनी बंद कर दी, तो उन्होंने खेती करके गुजारे का इंतजाम कर लिया। मुफ्त दवा बाँटने के स्थान पर लागत मूल्य पर वे दवा देते। जो पैसे नहीं दे सकता था, उससे उतने मूल्य की मजूरी करा लेते। ऐसा आदर्श पादरी देखकर एक भारतीय लड़की ने उनसे विवाह कर लिया। दोनों मिलकर देना काम करने लगे। दोनों एक-एक मिलकर ग्यारह हो गए। पिछड़ों और गिरों को ऊँचा उठाने में दोनों आजीवन लगे रहे। उनकी कार्यपद्धति अनेकों को प्रेरणादायक बनी।
श्रीनगर कश्मीर में जन्मी उर्मिला एक धनी ठेकेदार की बेटी थी। वे पढ़ती और पढ़ाती रही। किशोरावस्था में भी उन्होंने महिला समाज की बड़ी सेवा की।
बड़ी होने पर उनका विवाह मेरठ के धर्मेन्द्रनाथ शास्त्री से हुआ। उर्मिला भी शास्त्री थी। वे एक स्कूल में अध्यापिका हो गई। गृह कार्यों के अतिरिक्त वे पति समेत सार्वजनिक सेवा में विशेषकर महिला उत्थान में लगी रहती।
सत्याग्रह आँदोलन आरंभ हुआ। उसे आगे बढ़ाने में उर्मिला जी प्राणपण से लग गई। उनकी संगठन और आँदोलन की क्षमता अद्भुत थी। मेरठ शहर को ही नहीं, पूरे जिले से उन्होंने जगा दिया। सत्याग्रह आँदोलन में वह क्षेत्र अग्रणी हो गया। महिला संगठन उन्होंने अलग ही खड़ा किया, जिसकी पाँच हजार सदस्या थी।
उर्मिला जी को दो बार जेल जाना पड़ा। फिर भी वे पूरे उत्साह के साथ आजादी की लड़ाई लक्ष्मीबाई रानी की तरह लड़ती रही। उनके द्वारा स्थापित ‘शिशु विद्यालय’ अभी भी सफलतापूर्वक चल रहा है। वे अब नहीं रही, किंतु दाँपत्य द्वारा स्थापित आदर्श अभी भी जिंदा है।