यज्ञोपचार से विविध ज्वरों से निवृत्ति - (भ्)

June 2001

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अखण्ड ज्योति के गत दो अंकों में विविध प्रकार के मानसिक रोगों के निवारण एवं मस्तिष्कीय क्षमताओं की अभिवृद्धि हेतु शोधपूर्ण यज्ञोपचार प्रक्रिया का उल्लेख किया गया था। इन पृष्ठों में विशिष्ट प्रकार की औषधियों से विनिर्मित हवन सामग्री के प्रयोग द्वारा नानाप्रकार के ज्वरों, ‘फीवर’ से कैसे छुटकारा पाया और स्वस्थ हुआ जा सकता है, इसका वर्णन किया जा रहा है। ज्वर चिकित्सा में हवन करते समय आहुतियाँ प्रदान करने का मंत्र का सूर्य गायत्री मंत्र ही प्रयुक्त होगा, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके साथ ही सभी प्रकार के ज्वरों में प्रयुक्त होने वाली अलग-अलग हवन सामग्री में पहले से बनीं, कीमेन हवन सामग्री नंबर (क्) को संभाग में मिलाकर तब हवन करना चाहिए। कामन हवन सामग्री को अगर, तगर, देवदार, रक्त चंदन, श्वेत चंदन, गुगल, लौंग, जायफल, चिरायता और असगंध की बराबर मात्रा लेकर बनाया जाता है।

ज्वर की विविध श्रेणियाँ हैं। उदाहरण के लिए, मलेरिया को ही लें तो इसके एकतरा, तिजारी, चौथिया, डेंगू फीवर आदि कितने ही रूप हैं इनमें ठंड देकर बुखार आता है और पसीना देकर उत्तर जाता हैं। इसी तरह वात, पित्त, कफ के कुपित होने, बैक्टीरिया, वायरस जैसे जीवाणुओं-विषाणुओं के कारण शरीर के विविध अंग-अवयवों में संक्रमण होने से तरह-तरह के बुखार उत्पन्न हो जाते हैं। समयानुसार इनकी तीव्रता घटती-बढ़ती रहती है और तदनुसार रोगी के शरीर का तापमान भी परिवर्तित होता रहता है। ऐसी अवस्था में जिन रोगियों को सामान्य बुखार होते हैं और उन्हें चलने फिरने, उठने-बैठने, स्नान करने आदि में कठिनाई नहीं होती, वे स्वयं हवन कर सकते हैं। किंतु जिन्हें उन सब बातों में कठिनाई अनुभव होती हैं, वे स्वयं आहुति न डालकर केवल हवन के समीप आराम से बैठ सकते हैं। चलने-फिरने एवं उठने-बैठने में असमर्थ रोगियों की शैया के पास ही ताँबे से बने हवन कुँड में हवन करना चाहिए। रेडीमेड हवन कुँड न होने पर जमीन पर ही मिट्टी या ईंट से छोटा-सा हवन कुँड बनाकर हवन किया जा सकता है। रोगी को पूर्वाभिमुख होकर हवन करना तथा ईशानकोण की ओर मुख करके इष्टदेवता को नमन करते हुए औषधि सेवन करना चाहिए।

यहाँ पर रोगानुसार जिस विशिष्ट प्रकार की हवन सामग्री से हवन करने का विधि-विधान बताया जा रहा है, उन्हीं औषधियों का सूक्ष्मीकृत कपड़छन पाउडर भी नियमित रूप से सुबह-शाम एक-एक चम्मच रोगी को खिलाते रहना चाहिए। इससे रोग-शमन में तीव्रता आती है और व्यक्ति जल्दी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है।

(क्) साधारण बुखार (सिंपिल फीवर) की विशेष हवन सामग्री :--

इसके लिए निम्नाँकित औषधियां बराबर मात्रा में ली जाती हैं।

(क्) चिरायता (ख्) तुलसी की लकड़ी (फ्) तुलसी के बीज (ब्) करंज गिरी (भ्) लाल कनेर के पुष्प (म्) नीम छाल (स्त्र) सहदेवी (त्त्) गिलोय (−) नीम छाल (क्) पटोल पत्र (क्ख्) मुलहठी।

हवन करने के साथ ही इन्हीं बारह द्रव्यों के कपड़छन चूर्ण को सुबह-शाम एक-एक चम्मच कुनकुने जल के साथ रोगी व्यक्ति को सेवन भी कराते रहना चाहिए।

(ख्) शीत ज्वर ‘कामन कोल्ड’ (मलेरिया) की विशेष हवन सामग्री :--

क्) चिरायता (ख्) तुलसी की लकड़ी (फ्) तुलसी के बीज (ब्) करंज गिरी (भ्) लाल कनेर के पुष्प (म्) नीम छाल (स्त्र) सहदेवी (त्त्) गिलोय (−) नीम छाल (क्) पटोल पत्र (क्ख्) लाल चंदन (क्फ्) चित्रक।

उक्त क्फ् औषधियों के महीन चूर्ण को सुबह-शाम एक-एक चम्मच गरम जल के साथ मलेरिया ग्रस्त व्यक्ति को देते रहना चाहिए। हवन करते समय उक्त सामग्री में ही ‘कामन हवन सामग्री नंबर (क्)’ बराबर मात्रा में तथा इनमा दसवाँ भाग शर्करा एवं दसवां भाग ही घी मिलाकर तब हवन करना चाहिए

(फ्) जाड़े का बुखार तिजारी व चौथिया मलेरिया ज्वर की विशेष हवन सामग्री :--

यह मलेरिया बुखार एक दिन बाद एवं दो दिन बाद अंतर देकर ठंडक के साथ आता है।

इसमें प्रयुक्त होने वाली हवन सामग्री में निम्नांकित औषधियां मिलाई जाती है-

(क्) अडूसा (ख्) पटोल पत्र (फ्) तेजपत्र (ब्) अमलतास (भ्) दारु हल्दी (म्) चिरायता (स्त्र) काला (त्त्) बच (−) गिलोय (क्) लाल चंदन (क्क्) शलिपणीं (क्ख्) पृष्टिपणीं (क्फ्) देवदार (क्भ्) खस (क्ब्) करंज गिरी (क्म्) तुलसी पत्र।

हवन के साथ ही इन सभी सोलह औषधियों का कपड़छन पाउडर सुबह-शाम एक-एक चम्मच कुनकुने जल के साथ खिलाते रहने पर तत्काल लाभ मिलता है।

मलेरिया की तरह ही गरमी के दिनों विशेष रूप से डेंगू फीवर एवं वायरल फीवर का प्रकोप ज्यादा पाया जाता है। एलोपैथी दवाओं का सेवन करने की अपेक्षा आयुर्वेदिक औषधियों से निर्मित विशिष्ट प्रकार की हवन सामग्री से हवन करने, उसी को चूर्ण रूप में या क्वाथ रूप में सेवन करने से यह दोनों प्रकार की व्याधियों समूल रूप से नष्ट हो जाती है। ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान ने इस संदर्भ में गहन अध्ययन व अनुसन्धान करके जो फार्मूला प्रस्तुत किया है, वह इस प्रकार है-

(ब्) डेंगू फीवर, वायरल फीवर एवं संबंधित रोगों की विशेष हवन सामग्री :--

इसके घटक तत्व इस तरह से हैं-

(क्) चिरायता (ख्) कालमेघ (फ्) आर्टीमीसिया एनुआ (ब्) कपूर तुलसी (भ्) शरपुँखा (म्) सप्तपर्णी (स्त्र) मुलहठी (त्त्) गिलोय (−) सारिवा (क्) विजया (क्क्) कुटकी (क्ख्) करंजगिरी (क्फ्) पटोल पत्र (क्ब्) नीमगिरी (निबौली)।

हवन करने के साथ ही उक्त सभी क्ब् चीजों के संभाग बारीक कपड़छन पाउडर को हल्के कुनकुने जल के साथ सुबह-शाम एक-एक चम्मच रोगी व्यक्ति को खिलाते रहने से शीघ्र लाभ मिलता है।

(भ्) दंडक ज्वर की विशेष हवन सामग्री :-- (सभी संक्रामक रोगों पर)

दंडक ज्वर की हवन सामग्री बनाने के लिए जो औषधियां बराबर मात्रा में प्रयुक्त होती है, वे इस प्रकार है-

(क्) पटोल पत्र (ख्) कालमेघ (फ्) चिरायता (ब्) आर्टीमीसिया एनुआ (भ्) कुटकी (म्) नीम गिरी (स्त्र) गिलोय (त्त्) करंज गिरी (−) कपूर तुलसी।

हवन के साथ ही उक्त सभी − चीजों को मिलाकर कपड़छन करके प्राप्त पाउडर को एक-एक चम्मच सुबह व शाम को जल के साथ खिलाना चाहिए।

(म्) विषम ज्वर :--

जो ज्वर कभी सरदी से, कभी गरमी से, कभी कम, कभी ज्यादा तथा समय-कुसमय अनियमित रूप से आते हैं, उन्हें विषम ज्वर कहते हैं।

विषम ज्वर की विशेष हवन सामग्री :--

विषम ज्वर की विशिष्ट हवन सामग्री बनाने में जो औषधियां संभाग में प्रयुक्त की जाती है, वे इस प्रकार हैं-

(क्) चिरायता (ख्) कालमेघ (फ्) आर्टीमीसिया एनुआ (ब्) करंज गिरी (भ्) नीम गिरी (म्) नीम छाल (स्त्र) सहदेवी (त्त्) गिलोय (−) पाढ़ की जड़ (क्) नागरमोथा (क्ख्) तुलसी पत्र (क्फ्) कपूर तुलसी (क्ब्) कुटकी (क्भ्) पटोल पत्र।

हवन के साथ ही इन सभी क्भ् चीजों को मिलाकर बनाए गए कपड़छन पाउडर को एक चम्मच सुबह एवं एक चम्मच सुबह एवं एक चम्मच शाम को जल के साथ रोगी को अवश्य खिलाते रहना चाहिए। हर तरह के विषम ज्वर की शमन करने में यह योग अतीव उपयोगी सिद्ध हुआ है।

(स्त्र) उष्ण ज्वर की विशिष्ट हवन सामग्री :-- (टाइफ़ाइड, पैराटाइफ़ाइड एवं संबंधित रोगों पर)

इसके लिए जिन औषधियों को विशेष रूप से हवन करने एवं खाने में प्रयुक्त किया जाता है, उनके नाम इस प्रकार हैं-

(क्) इंद्र जौ (ख्) पटोल पत्र (फ्) नाम का गुठला (निबौली) (ब्) नेत्रवाला (भ्) त्रयमाण (म्) काला जीरा (स्त्र) चौलाई की जड़ (त्त्) बड़ी इलायची (−) मुलहठी (क्) वासा (क्क्) गिलोय (क्ख्) नागरमोथा।

इन सभी क्ख् चीजों को मिलाकर बारीक पिसा हुआ कपड़छन पाउडर एक-एक चम्मच सुबह-शाम जल के साथ रोगी को खिलाना चाहिए। टाइफ़ाइड एवं पैराटाइफ़ाइड इससे शीघ्र लाभ मिलता है।,

(त्त्) जीर्ण ज्वर का विशिष्ट हवन सामग्री :--

(क्) चिरायता (ख्) कालमेघ (फ्) आर्टीमीसिया (ब्) करंज गिरी (भ्) नीम गिरी (म्) नीम छाल (स्त्र) सहदेवी (त्त्) गिलोय (−) पाढ़ की जड़ (क्) नागरमोथा (क्ख्) तुलसी पत्र (क्फ्) कपूर तुलसी (क्ब्) कुटकी (क्भ्) पटोल पत्र (क्म्) जवासा (क्स्त्र) इंद्र जौ।

हवन करने के साथ ही उक्त सभी क्त्त् चीजों को मिलाकर बनाए गए कपड़छन चूर्ण को जल के साथ सुबह एवं शाम को एक-एक चम्मच लेते रहना चाहिए। चूँकि यह ज्वर ज्वरों के आरंभ में, समुचित चिकित्सा के अभाव और रोगवृद्धि ज्वराँत में अपथ्य, अज्ञानतावश, कब्ज एवं अधिक ताप के कारण होता है। अतः समुचित आहार-विहार एवं पथ्य-परहेज का इसमें विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।


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