अपनों से अपनी बात-ख् - गायत्री जयंती पर्व से अभियान साधना में भागीदारी करें

June 2001

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गायत्री परिवार की पृष्ठभूमि साधना है। गुरुवर की चौबीस लक्ष की महापुरश्चरण साधना ने वह आधार खड़ा किया कि आज चारों और गायत्री महाविद्या के विस्तार की बात गूँजती सुनाई देती है। हमारा बारह वर्षीय महापुरश्चरण पुरुषार्थ सन् ख् में ‘सृजन संकल्प विभूति महायज्ञ’ के साथ संपन्न हुआ। कइयों के मन में असमंजस है कि अब इसके बाद क्या। क्या साधना मात्र इतनी ही अवधि के लिए थी ? क्या इस वर्ष कुछ और इस संदर्भ में नहीं किया जाना हैं ? अब आगामी वर्षों की रीति-नीति क्या सामाजिक आँदोलनों की सुधारात्मक-रचनात्मक कार्यक्रमों की धुरी पर बनेगी ? तो क्या साधना का इसमें कोई स्थान नहीं ?

परिजनों को-पाठकों को यही स्पष्ट करना है कि इस वर्ष वसंत पंचमी (ख्क्.क्.ख्क्) से आरंभ हुए हीरक जयंती वर्ष का मुख्य केंद्र बिंदु है- जीवन साधना एक आंदोलन बन जाए। हमारे व्यक्तित्व को भी वह आँदोलित कर दे एवं इसी की धुरी पर सारे समाज में नवनिर्माण की गतिविधियाँ संचालित हो पड़े। यह सब तभी हो पाएगा जब हमारे परिजन, विराट् गायत्री परिवार के घटक, पूज्यवर के-गुरुसत्ता के अंग-अवयव अपनी साधना से कदापि पीछे न हटकर और भी सक्रिय हों। श्रेष्ठ साधक ही युगनिर्माण का भागीरथी लक्ष्य पूरा करने में सहायक सिद्ध होंगे।

इसी उद्देश्य से जीवन साधना आँदोलन जो जन-जन द्वारा विभिन्न संप्रदायों-मतों के लोगों में क्रियान्वित होना है, के साथ-साथ गायत्री अभियान साधना को भी इस वर्ष गति देने का मन है। गायत्री महाविज्ञान भाग-ख् के अंतिम पृष्ठों में इसका विस्तार से वर्णन है। यहाँ संक्षेप में इसकी क्रियापद्धति दी जा रही है, जो गायत्री जयंती क् जून ख्क् से आरंभ की जा सकती है। यह साधनाक्रम छिटपुट रूप में पूज्यवर द्वारा मथुरा से एवं हरिद्वार से पहले भी आरंभ किया गया था। आज सूर्य पर बढ़ते कलंकों-विक्षोभों एवं धरती पर संभावित ध्वंस की घुमड़ती घटाओं को देखकर इस एक वर्ष की साधना को यदि गायत्री परिवार के पच्चीस प्रतिशत कार्यकर्त्ता भी मन लगाकर कर सकें, तो इससे महाविनाश से जूझने की सामर्थ्य भी मिलेगी एवं सूक्ष्मजगत् में कार्य कर रही ऋषि सत्ताओं के शक्ति संवाहक-दूत श्रेष्ठ साधकों के रूप में मिल सकेंगे।

गायत्री अभियान साधना पंचमुखी गायत्री माता का एक नैष्ठिक अनुष्ठान है, जो पाँच लाख गायत्री मंत्र ज पके माध्यम से एक वर्ष में पूरा होता है। एक वर्ष की तपश्चर्या साधक के व्यक्तित्व को निखार देती है। साधक को प्राणशक्ति से भर देती है। इससे उसका आत्मबल बढ़ता है एवं साधक अपने अंदर-बाहर चारों ओर एक दैवी शक्ति की उपस्थिति की अनुभूति करता है।,

पंचमुखी गायत्री का वर्णन आलंकारिक रूप में आता है। वास्तव में यह गायत्री महाशक्ति के पाँच विभाग हैं, ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। यह पांचों चरण पाँच देवताओं के भी प्रतीक है। ॐ गणेश, व्याह्नति-भवानी, तीन चरण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश। यह पांचों गायत्री के पाँच प्रमुख शक्तिपुंज कहे जा सकते हैं। पंचतत्वों से समस्त प्रकृति का, मानवी काया का संचालन हो रहा है। जीव को चारों ओर से पाँच कोषों ने आच्छादित कर रखा है, अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनंदमय कोष। पाँच ज्ञानेंद्रियाँ, पंचप्राण, चैतन्य पंचक (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आत्मा)। ये सभी पंचमुखी गायत्री की प्रस्फुटित प्रेरणाएं हैं। इस अभियान साधना के फलस्वरूप साधक की मनोवृत्ति में शोधन होता है तथा पंचकोशों के जागरण की पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है।

इस साधना को, जिसमें एक वर्ष में पाँच लाख गायत्री मंत्र का जप विधिवत पूरा किया जाता हैं, किसी भी शुक्लपक्ष की एकादशी से आरंभ किया जा सकता है। परंतु इसके लिए शुभारंभ कर श्रेष्ठतम समय गायत्री महाशक्ति के अवतरण की शुक्लपक्ष की दशमी के अगले दिन से माना गया है। यही मुहूर्त सबसे उत्तम है। जिस एकादशी से यह अनुष्ठान क्रम आरंभ हो, उसी एकादशी को अगले वर्ष पूर्ण हो, इसका ध्यान रखा जाए। इस वर्ष यह मुहूर्त ख् जून ख्क् (गायत्री जयंती के अगले दिन) से आरंभ होकर आगामी वर्ष की गायत्री जयंती के अगले दिन तक के लिए है। इस साधना के कुछ नियम है। ये बड़े कड़े भी नहीं हैं और वर्षभर अपनी दैनंदिन क्रियाओं के साथ भी निभाए जा सकते हैं। ये नियम इस प्रकार है-(क्) माह की दोनों एकादशियों को चौबीस माला जपनी चाहिए। साधारण दिनों में प्रतिदिन क् मालाएँ जपनी चाहिए। बिना गिनती की चिंता किए क् मालाएँ एक घंटे में तथा चौबीस मालाएँ ढाई घंटों में पूरी करने की, पूर्णतः भावविह्वल होकर जप करने की बात सोचनी चाहिए।

(ख्) वर्ष में तीन ऋतु संध्याएँ (नवरात्रि-नवदुर्गा) आती हैं। वर्षा के अंत व शीत के आरंभ में आश्विन शुक्ल क् से − तक, शीत के अंत व ग्रीष्म के आरंभ के चैत्र शुक्ल क् से − तक तथा ग्रीष्म के अंत और वर्षा के आरंभ में ज्येष्ठ शुक्ल क् से − तक। चूँकि दशमी का भी समान महत्व है एवं गायत्री जयंती का दिन तीसरी नवदुर्गा में पूर्णाहुति का हैं, इसलिए तीनों ऋतु संध्याएँ दस दिन की मानी जाती है। इनमें प्रत्येक में चौबीस माला प्रतिदिन के हिसाब से तीन चौबीस हजार के अनुष्ठान पूरे हो जाते हैं।

(फ्) अंतिम दिन (ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी ख्ख्) को चौबीस मालाओं के रूप में विशेष जप एवं हवन करके पूर्णाहुति की जाए।

यदि संख्या का हिसाब सही ढंग से बिठा लें, तो यह पूरा उपक्रम वर्षभर में पाँच लाख का पूरा कर देता हैं। लक्ष्य के साथ नियमों को निभाकर की गई इस साधना के प्रतिफल भी विशेष ही मिलेंगे। संख्या का हिसाब इस प्रकार हैं-

(अ) बारह माह की चौबीस एकादशियों को प्रतिदिन चौबीस मालाओं के हिसाब से ख्ब्’ख्ब्=भ्स्त्रम् मालाएँ।

(ब) दस-दस तीन की कुल तीन नवदुर्गाओं में प्रतिदिन की ख्ब् मालाओं के हिसाब से फ्’ख्ब्=म्ख् मालाएं।

(स) वर्ष के फ्म् दिनों में से शेष फ्म् दिनों में दस माला प्रतिदिन के हिसाब से फ्म् मालाएं।

(द) प्रति सप्ताह रविवार को पाँच माला अतिरिक्त जपी जाएं। इस प्रकार भ्ख् भ्=ख्म् मालाएं।

(इ) अंतिम दिन चौबीस मालाओं द्वारा पूर्णाहुति।

इस प्रकार सब मिलाकर कुल पाँच लाख का जप पूरा हो जाता है। इस दौरान माह की दोनों एकादशियों का उपवास करना चाहिए। उपवास में दूध, दही, छाछ, शाक जैसे तरल द्रव्य, सात्विक पदार्थ लिए जाएं। यदि एक समय भोजन कर काम चला सकें, तो थोड़ा तप सध सकेगा। उपवास की अवधि में पानी कई बार पिया जाए। बालक, वृद्ध, गर्भिणी या कमजोर प्रकृति के व्यक्ति चाहें तो दो बार सात्विक आहार ले सकते हैं।

तीनों नवरात्रियों में कामसेवन, पलंग पर सोना, दूसरे व्यक्ति से हजामत बनवाना, चमड़े के जूते पहनना, मद्यमाँस का सेवन आदि विशेष रूप से वर्जित हैं। शेष दिनों में सामान्य क्रम रखा जा सकता है। यदि सध सके, तो बावन रविवार तथा चौबीस एकादशियों में भी ये नियम न्यूनाधिक करें, तो अच्छा है। हर माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को क्त्त् मंत्रों से गायत्री हवन कर लें या पूर्णिमा के दिन दीपयज्ञ के माध्यम से उस मास की पूर्णाहुति कर लें।

अभियान साधना एक प्रकार से लक्ष्यवेधन की साधना है। विशिष्ट किसी प्रकार के और मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं है। मात्र शांतिकुंज संरक्षण हेतु पत्र भेजकर अपना साधनाक्रम आरंभ किया जा सकता है। गायत्री जयंती से यदि आरंभ न हो सके, तो इसे आगामी मास में आरंभ कर इसी माह में एक वर्ष बाद समाप्त करने का प्रयास किया जाना चाहिए। बीच-बीच में जो भी साधना संबंध अनुभूतियाँ हों, उन्हें लिखते चलें, एक डायरी लेखन का क्रम बनाते चलें। नित्य दैनंदिन कार्य करते हुए भी इस सुनिश्चित लक्ष्य वाली साधना को निश्चित ही पूरा किया जा सकता हैं, इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए।

प्रातः-साँय दोनों समय जप किया जा सकता हैं। प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में अधिक समय भी मिल जाता हैं, मन भी लगता है। अतः तीन-चौथाई अंश सबेरे पूरा कर लेना चाहिए। ज पके समय मस्तक के मध्य भाग अथवा हृदय क्षेत्र में प्रकाश पुँज गायत्री का ध्यान करते रहना चाहिए। सूतक, यात्रा, बीमारी आदि के दिनों में भी बिना माला के मानसिक जप चालू रखना चाहिएं। किसी दिन साधना छूट जाए, तो प्रायश्चित की एक अतिरिक्त मास के साथ अगले दिन उसे कर लिया जाए।

गायत्री जयंती पर सभी साधकों से यही भावभरा आह्वान है कि स्वयं की साधना को और प्रखर बनाएँ। जितना बन सके, इस अभियान साधना में भागीदारी करें इस वर्ष शांतिकुंज में आश्विन नवरात्रि ख्क् से चैत्र नवरात्रि ख्ख् तक की अवधि में विशिष्ट प्राण प्रत्यावर्तन स्तर के पाँच-पाँच दिवसीय साधना सत्र लगाए जा रहे हैं। प्रयास करें कि अभियान साधना में भाग लेने वाले परिजन यहाँ अथवा अपने पास के शक्तिपीठों-प्रज्ञा संस्थानों पर वर्ष में न्यूनतम एक सत्र तो संपन्न कर लें। यहाँ तो स्थान सीमित हैं, पर सभी से पत्राचार किया जा सके, तो कुछ की व्यवस्था तो जाँच-पड़ताल कर बनाई जा सकती है। गायत्री जयंती पर्व से आरंभ की जाने वाली यह अभियान साधना सभी के लिए मंगलमय पथ प्रशस्त करें, ऐसी माँ से प्रार्थना है


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