पतित पावनी गंगा, गायत्री (kavita)

June 2001

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गंगा बंदी थी सुरपुर में, भगीरथ ने मुक्त कराया। भगीरथ का ही प्रचंड तप, मृत्युलोक में सुरसरि लाया॥

गंगा बंधन मुक्त हो गई, राजा, रंक सभी को तारा। पतित और पावन दोनों के लिए खुल गया उसका द्वारा॥

इतना ही क्यों, निज प्रवाह को कोटि-कोटि जन तक पहुँचाया॥ पतित पावनी गायत्री भी, कीलित ही मानी जाती थी।

कुछ विशिष्ट लोगों द्वारा ही बना ली गई निज थाती थी। पर गुरुवर के प्रचंड तप ने, जन-जन को उपलब्ध कराया॥

अब ‘गायत्री’ विश्वव्यापनी, आदि शक्ति होती जाती है। ऊँच-नीच का भेद भुला सबके पातक धोती जाती।

गुरुवर श्रीराम शर्मा ने युग भगीरथ का यश पाया॥ आओ! नमन करें गंगा के, गायत्री के भगीरथ को।

श्रद्धा सुमन चढ़ाएं आओ! कोटि-कोटि जन उद्धारक को। उन्हें गायत्री जयंती पर, गायत्री ने गले लगाया॥

-मंगलविजय ‘विजय’

*समाप्त*


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