सुभद्रा कुमारी चौहान प्रयाग के एक राजपूत घराने में जन्मी। बचपन में वे पढ़ती भी रही, पर उस समय के प्रचलन के अनुसार उनका विवाह खंडवा के लक्ष्मण सिंह नामक लड़के से हो गया। सुभद्रा कुमारी आरंभ से ही विद्याप्रेमी थी। विवाह के बाद भी पति से आगे पढ़ने की प्रार्थना की, तो उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर ली। उन्हें कॉलेज में भर्ती करा दिया गया। इस बीच पति ने भी वकालत पास कर ली।
आगे क्या करना है? दोनों ने निश्चय किया कि देश सेवा करेंगे। उन्हीं दिनों काँग्रेस आँदोलन चल पड़ा। पति-पत्नी दोनों झंडा सत्याग्रह में सम्मिलित हुए और जेल गए।
उनके पति ने खंडवा के ‘कर्मवीर’ साप्ताहिक में सहायक संपादक का काम कर लिया। माखनलाल चतुर्वेदी उसके संचालक थे। दोनों में से एक संपादक का कार्य करके घर चलाता और दूसरा जेल चला जाता। यह क्रम वर्षों तक चलता रहा। इस बीच सुभद्र कुमारी की प्रतिभा भी विकसित हुई। उन्होंने अनेकानेक उच्चकोटि की कविताएँ तथा कहानियाँ लिखी, जो देशभर में बहुत प्रख्यात हुई खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी’ कविता सुभद्रा जी की ही है। दोनों ने मिलकर समाज-सेवा के भी अनेक कार्य किए। पारिवारिक धर्म निबाहते हुए भी राष्ट्रसेवा का यह एक अनुपम उदाहरण है।