अपनों से अपनी बात-फ् - आपदा प्रबंध हेतु अनिवार्य अक्षय निधि एवं वाहिनी

June 2001

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हमारा यह अखिल विश्व गायत्री परिवार जिस एक धुरी पर खड़ा है, जो उसके संसाधनों का स्त्रोत हैं, वह है प्रत्येक भावनाशील का स्वेच्छा से दिया गया नियमित अंशदान-समयदान। इसी ने इतना बड़ा तंत्र खड़ा कर दिया कि उसकी क्षमता की कल्पना भी नहीं जा सकती। मुट्ठीफंड से काँग्रेस चले, यह मंत्र महामना श्री मालवीय जी स्वतंत्रता-प्राप्ति के पूर्व उस जन आँदोलन को देना चाहते थे। उन दिनों स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की तरह उनके साथ आसनसोल जेल में बंद हमारी गुरुसत्ता ने इस मंत्र को गाँठ बाँध लिया एवं अपने इस तंत्र को जनशक्ति के बल पर खड़ा कर दिया। भावनाशीलों के श्रम-सीकरों में कितनी शक्ति होती है, यह कारगिल युद्ध की वेला में हमारे परिजनों ने दिखाया। जब थोड़े ही समय में सवा करोड़ रुपये की राशि उन्होंने एकत्र कर दिखाई। अब गुजरात त्रासदी की वेला भी कुछ ऐसी ही है।

हमने परिजनों से फरवरी-मार्च की अखण्ड ज्योति में अनुरोध किया था कि यदि हम समय-समय पर आने वाली आपदाओं के लिए समय रहते एक निधि खड़ी करने की व्यवस्था कर लें, तो ठीक रहेगा। सरकार से कभी भी एक कौड़ी की सहायता न लेने वाला गायत्री परिवार अभी तक गुजरात भूकंप त्रासदी में जो कुछ भी कर पाया हैं, वह सभी परिजनों के अंशदान से ही संभव हो पाया है। इसके अतिरिक्त तप के माध्यम से सप्ताह में एक दिन के एक समय के व्रत की बात कही गई थी एवं यह बताया था कि यह बचत सीधे शांतिकुंज भेजी जानी चाहिए, जहाँ कि इसकी राहत कार्य हेतु सदैव त्वरित व्यवस्था हेतु उपयोगिता रहेगी। हमने परिजनों को बताया था कि यदि मात्र साढ़े छह लाख पाठक जो ‘अखण्ड ज्योति’ से जुड़े हैं, अपनी स्वयं की एक समय की भोजन की राशि बचा सकें, तो इससे एक माह में बीस रुपये प्राप्त होगी। वर्षभर में यह राशि बासठ करोड़ रुपये हो जाती है। यदि गायत्री परिवार के नैष्ठिक-प्राणवान् भावनाशील समर्थक-शुभेच्छुओं की संख्या पाँच करोड़ सारे भारत व विश्व में मान ली जाए, तो प्रति व्यक्ति एक हजार रुपया प्रतिवर्ष की बचत के साथ यह राशि पाँच हजार करोड़ हो जाती है। इससे कितने बड़े काम हो सकते हैं, कल्पना की जा सकती है।

सरकार के पास सीमित साधन है। वह भी तो जनता से लेकर हमें सुविधाएं देती है। अब शासकीय खरच बढ़ जाने ये प्रायः सभी राज्य सरकारें दिवालिया हैं। केंद्रीय शासन तंत्र कर्जे में कार्य कर रहा है। हम अपने स्तर पर ही इतना बड़ा तंत्र खड़ा कर सकते हैं कि आने वाले समय में अखिल विश्व गायत्री परिवार अपने बलबूते ही कई रचनात्मक आँदोलन चलाया सके, राष्ट्र सृजनात्मक गतिविधियों को अंजाम दे सके। प्रत्येक परिजन से यह प्रार्थना है कि वे अपने सभी पाठक मित्र परिजन-हितैषी शुभेच्छुओं से, नवयुग लाने को इच्छुक परिजनों से कर बद्ध याचना करें कि इस वर्ष में वे सभी इसी निधि का घट भर दें। बूँद-बूँद से घड़ा भरता है एवं बूँदों के संग्रह से ही सरोवर विनिर्मित होता है। एक बूँद पानी का कितना महत्व होता हैं, यह अभी ‘वाटर हारवेस्टिंग‘ (पानी की खेती) से दुर्भिक्ष निवारण के युद्धस्तरीय उपायों से नजर आता है।

यदि सभी भावनाशील एकजुट होकर इस एक वर्ष ख्क्-ख्ख् में गायत्री जयंती तक एक हजार रुपया प्रति व्यक्ति बचत एकत्र कर शांतिकुंज भेज सके, तो सात सौ जिलों का आपदा प्रबंधन तंत्र भी खड़ा किया जा सकेगा। किंतु यह बचत तप पर आधारित होनी चाहिए। तप अर्थात् फिर अतिरिक्त न खाना, फलाहार न लेना, मात्र एक समय बिना भोजन-दूध अतिरिक्त किसी वस्तु के भूखे रह लेना। इससे सप्ताह में एक बार अवकाश मिल जाने से शरीर भी स्वस्थ रहेगा एवं एक समय की भोजन की राशि बच जाएगी। यह राशि प्रतिमाह ‘आपदा राहत अंशदान’ श्री वेदमाता गायत्री ट्रस्ट शांतिकुंज हरिद्वार-ख्ब्−ब्क्क् के पते पर एम. ओ., चेक या डीडी द्वारा भेज दी जानी चाहिए। यह नियमित अंशदान के अतिरिक्त हो, यह ध्यान रखें।

एक दूसरी महत्वपूर्ण बात है आपदा प्रबंधन वाहिनी की इसके लिए चुस्त स्वस्थ स्काउटिंग की मानसिकता वाले ऐसे स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण का तंत्र खड़ा किया जाना हैं, जो अपने वार्ड, मुहल्ले या ग्राम से लेकर क्षेत्र में आने वाली किसी भी विपत्ति में तुरंत एकजुट होकर पहुँच सके एवं बचाव (रिक्स्यू), राहत (रिलीफ) तथा पुनर्वास (रिहैबिलिटेषन) का कार्य संभाल सके। इनके विधिवत प्रशिक्षण की व्यवस्था बनाई जा रही हैं संभवतः यह प्रशिक्षण जुलाई माह से आरंभ हो सकेगा। अपनी तैयारी अभी से रखें एवं प्रशिक्षक बनने है अपना पत्राचार केंद्र से कर लें। इसमें चिकित्सा, भोजन, आपूर्ति निर्माण से जुड़े कारीगर, इंजीनियर्स तथा मजबूत काठी वाले श्रम करने वाले स्वयंसेवकों को वरीयता दी जाएगी। दोनों ही कार्य आपाद् धर्म की तरह इस गायत्री जयंती से सभी को आरंभ कर देना चाहिए।


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