एक बहेलिया जैन धर्म की दीक्षा लेने गया। श्रावक मुनि ने कहा, अहिंसा व्रत पालन करने की शर्त पूरी करनी पड़ेगी। उसने कहा यह कैसे हो सकेगा? मेरी आजीविका तो यही है।
श्रावक मुनि ने कहा, अच्छा तो निराश मत लौटो। कम से कम एक प्राणी के प्रति अहिंसा व्रत निर्वाह का प्रण करो। बहुत सोच-विचार के बाद उसने ‘कौआ’ पकड़ने, न मारने का संकल्प लिया।
अहिंसा की बात मस्तिष्क में घूमनी शुरू हुई तो उसने एक-एक करके सभी प्राणियों का वध छोड़ दिया और वह स्वयं भी मुनि बन गया। छोटा शुभारंभ भी विकसित होते-होते उच्च स्थिति तक जा पहुँचता है। शुभ संकल्प आदर्शों के प्रति निष्ठा यदि दृढ़ है तो निश्चित ही कालाँतर में उसके श्रेष्ठ परिणाम होंगे।