बुद्धिजीवियों संभलो
सभी बुद्धिजीवियों को मिल-बैठकर अब यह विचार करना ही होगा कि मानव जाति का अंतिम लक्ष्य क्या है, विकास अथवा विनाश। एकाकी रूप में महाद्वीप या राष्ट्रीय स्तर पर समृद्ध होने और शेष सारे संसार को नष्ट कर देने की कल्पना शेखचिल्ली के समान ही कही जाएगी। यह मानकर चलना ही होगा कि हम इस सुविधा पर अकेला नहीं, सब एक साथ हैं, न मरेंगे तो सब एक साथ, जिएंगे तो भी एक ही साथ। आवागमन की द्रुत सुविधाओं ने आज विश्व को ‘जेट एज’ में पहुँचा दिया है। यहाँ की व्याधि कुछ ही पलों में हजारों मील दूर समुद्र पार भी पहुँच सकती है। ऐसे में कैसे थोड़ा परिष्कृत किया जाए एवं आदिम मानव के स्तर पर नहीं विकसित मानव के स्तर पर विश्व सभ्यता के अभ्युदय की चर्चा ही नहीं क्रियान्वयन भी हो, तभी महाप्रलय की आसन्न विभीषिका से मानवता को बचाया जा सकेगा।