युगद्रष्टा दो महापुरुष एवं आज का युगधर्म

December 2001

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‘जबकि और लोग अपने देश एक जड़ पदार्थ का टुकड़ा समझते हैं, थोड़े से चरागाह और खेत, वन और पहाड़ियाँ, नदियाँ मैं अपने देश को अपनी माता मानता हूँ। मैं उसकी आराधना करता हैं, माता के रूप में उसकी पूजा करता हूँ। यदि एक राक्षस एक पुत्र की माता की छाती पर चढ़कर खून चूसने लगे, तो वह क्या करेगा? मैं यह जानता हूँ कि मुझमें इस गिरी हुई कौम को उबारने की ताकत है। शारीरिक शक्ति की बात नहीं, मैं कोर्ठ तलवार या बंदूक उठाकर लड़ने नहीं जा रहा, पर ज्ञान की शक्ति तो असीम है।’

श्री अरविंद अगस्त 30, 1905 (बंदेमातरम्)

‘हमारा देश गरीब है, फिर भी उसकी श्रद्धा बलवती है, जिसके बलबूते वे साधन जुटाए जा सके हैं, जो विश्व के कायाकल्प में महती भूमिका निभा सकें। संसार के प्रमुख तीर्थों में से तीन चौथाई भारत में ही हैं। उठे हुए दूसरों को कंधे पर बिठाकर उठाने वाले लोग इसी देश में हुए हैं। यह यहाँ की मिट्टी की विशेषता है। पूर्व दिशा से ही सदा सूर्य निकलता है और उसका प्रकाश सारे संसार में फैलता है। उषाकाल, ब्रह्ममुहूर्त और अरुणोदय का वह देश भारत ही है, जहाँ से दिनकर उदय होता और संसार में अपना प्रकाश फैलता है। कल परिस्थितियाँ बदलेंगी और तब तक बदलने की यह प्रक्रिया चलती रहेगी, जब तक कि सारा विश्व स्वाभाविक और संतोषजनक स्थिति में नहीं जा पहुँचता।’

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ‘अखण्ड ज्योति’ फरवरी 1987, पृष्ठ 57

‘जब एक महान समुदाय धूल में से उठ खड़ा होता है तो कौन-सा मंत्र संजीवनी मंत्र है अथवा उसे पुनर्जीवित करने वाली कौन-सी शक्ति है। भारत में दो महामंत्र हैं, एक तो ‘बंदेमातरम्’ का मंत्र है, जो मातृभूमि के प्रति जनता के जाग्रत प्रेम की सार्वभौम पुकार है और दूसरा और अधिक गुप्त और रहस्यपूर्ण है, जो अभी उद्घाटित नहीं हुआ है।’

श्री अरविंद फरवरी 19, 1908 (वंदेमातरम्)

‘अन्य धर्मावलंबियों के अन्य मंत्र हो सकते हैं, पर जब कभी सार्वभौम एवं सर्वजनीन मंत्र की खोज पूर्वाग्रहों को दूर रखकर निष्पक्ष भाव से उसकी निजी महत्ता के आधार पर की जाएगी, तो उसका निष्कर्ष गायत्री मंत्र ही निकलेगा। इस मंत्र का प्रत्येक अक्षर स्वयं में बीज जैसी शक्ति का स्रोत है। इस कारण इसकी सामर्थ्य का विस्तार अनंत है।’

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य अखण्ड ज्योति मई 1967, पृष्ठ 60

‘सृष्टि के आदि से लेकर अद्यावधि गायत्री मंत्र की जितनी आवृत्तियाँ हुई है उतनी और किसी उपासना प्रयोजन में प्रयुक्त होने वाले शब्द गुच्छक की नहीं। सृष्टि में अनेकों विभूतियाँ हैं। उनमें से एक गायत्री भी है। इस मंत्र का शब्द गुँथन इस प्रकार हुआ है जो भावार्थ और सामर्थ्य की दृष्टि से विलक्षण है। इसमें व्यक्ति और समाज को सुसंपन्न, सुसंस्कृत एवं समृद्ध बनाने वाले अनेकानेक रहस्यमय तत्वों का समावेश है। त्रिपदा के तीन चरणों में समझदारी, ईमानदारी और जिम्मेदारी के सिद्धाँत की साँगोपाँग विवेचना भरी पड़ी है। विश्व का यह सबसे छोटा, किन्तु सबसे सारगर्भित धर्मशास्त्र, तत्वदर्शन एवं अध्यात्म विज्ञान है। सतयुगी विश्व-व्यवस्था के समस्त सूत्र संकेत इसमें बीज रूप में कूट-कूटकर भरे हुए हैं। इसे नवयुग का संविधान कहें तो भी अत्युक्ति न होगी।’

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ‘अखण्ड ज्योति’ अगस्त 1983, पृष्ठ 33

‘केवल वही कौम, जो अपने जीवन के ग्रामीण मूल की पुष्टता को शहरी तड़क भड़करूपी पत्तों और फूलों के लिए बलिदान नहीं कर देती, स्वस्थ दशा में मानी जाएगी और उसका स्थायित्व सुनिश्चित होगा, भूमि की ओर वापस लौटना हमारी मुक्ति के लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना स्वदेशी का विकास अथवा अकाल के विरुद्ध संघर्ष। यदि हम अपने नवयुवकों को खेतों पर वापस जाने का प्रशिक्षण दें तो वे ग्रामीण जनता के लिए सलाहकार, नेता और उदाहरण बन सकेंगे।’

श्री अरविंद मार्च 6, 1908 (वंदेमातरम्)

‘इक्कीसवीं शताब्दी में बड़े शहरों का विकेंद्रीकरण होगा। गाँव का स्थान कस्बे लेंगे। कल-कारखाने छोटे-छोटे इस स्तर के लगेंगे, जो प्रदूषण उत्पन्न न करें, जिनके लिए बड़ी मात्रा में कोयला न जलाना पड़े। इतनी बिजली तो हवा-पानी से ही निकल आया करेगी, जिससे कुटीर उद्योगों के लिए छुटपुट शक्ति मिलती रहे। मनुष्य जिस शारीरिक श्रम का अनभ्यस्त हो गया है, उसे फिर से अपनाने लगेगा। साथ ही लघु उद्योगों के लिए छोटे संयंत्रों द्वारा उत्पन्न की गई बिजली भी मिलती रहेगी। देहाती जीवन स्वास्थ्यकर भी होता है, सुविधाजनक भी ओर सस्ता भी।’

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य अखण्ड ज्योति फरवरी 1987, पृष्ठ 41

‘विशेष युगों में कुछ विशेष आन्दोलन होते हैं जब ईश्वरीय शक्ति अपने आपको प्रकट करती है और अपनी चरम शक्ति से मानव के सारे आकलनों को तहस-नहस कर देती है, सावधान राजनेता और योजनाएं रचने वाले राजनीतिज्ञों की बुद्धिमानी का मजाक बना देती है, वैज्ञानिक विश्लेषण करने वालों के पूर्वानुमानों को झूठा बना देती है और जितनी प्रचंडता और तीव्रगति से वह आगे बढ़ती है, उससे उसका मानवातीत शक्ति होना स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाता है। बौद्धिक व्यक्ति बाद में उस आँदोलन के कारणों को ढूंढ़ निकालने का और उन तत्वों को उजागर करने का प्रयास करता है, जिन्होंने उसे संभव बनाया। किन्तु उस समय वह सरासर गलत होता है, प्रत्येक पग पर उसकी बुद्धि भूल कर बैठती है और उसका विज्ञान काम नहीं करता। यही वह समय है जब हम कहते हैं कि इस आँदोलन में ईश्वर का हाथ है। वही उसका नेता है और उसे अपना उद्देश्य पूरा करना ही है। चाहे मनुष्य के लिए उन साधनों को समझना कितना ही असंभव क्यों न हो जिनसे उसे सफलता मिलेगी।’

श्री अरविंद जुलाई 17, 1909 (वंदेमातरम्)

‘पिछले दिनों दो खंड अवतारों ने युगपरिवर्तन की दिशा में अत्यंत रहस्यपूर्ण भूमिका संपादित की है। रामकृष्ण परमहंस और योगी अरविंद की आध्यात्मिक तपश्चर्या ने अवतरण भूमिका ने क्या कुछ किया, इसका रहस्योद्घाटन आज नहीं कुछ समय उपराँत होगा। तीसरा अवतरण युगनिर्माण आँदोलन के रूप में आजकल चल रहा है। इसमें महाकाल भी काम कर रहा है और महाकाली भी। पूर्णावतार लगभग तीस वर्ष की कठिन अवधि के उपराँत प्रकट होगा। महान व्यक्तियों के रूप में भी और महान परिवर्तन के रूप में भी।’

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य अखण्ड ज्योति जून 1967 पृष्ठ 24

‘अवतार ऐसे ही समय में प्रकट होते हैं। मनुष्य का बाहुबल थक जाता है और विनाश की आशंका बलवती हो जाती है, तो प्रवाह को उलटने का पुरुषार्थ महाकाल ही करता है। स्रष्टा को अपनी इस सुरम्य विश्ववाटिका का दर्द भरा अवसान सहन नहीं हो सकता। वे धर्म की ग्लानि और अधर्म की अभिवृद्धि को एक सीमा तक ही सहन कर सकते हैं। मानवी पुरुषार्थ जब संतुलन बनाए रहने में असफल रहता है, तो व्यवस्था को भगवान स्वयं संभालते हैं इन दिनों कुछ ऐसा ही होने जा रहा है। महाकाल की चेतना सूक्ष्मजगत में ऐसी महान हलचलें विनिर्मित कर रही हैं, जिसके प्रभाव-परिणाम को देखते हुए उसे अप्रत्याशित चमत्कारी ही मना जाएगा।’

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य अखण्ड ज्योति अगस्त 1971 पृष्ठ 13

‘आदर्शवादी दुस्साहस ही अवतार है। वह एक भावनात्मक प्रवाह के रूप में उत्पन्न होता है और असंख्यों को अनुप्राणित करता है। अवतार का दार्शनिक विश्लेषण उस ऋतंभरा प्रज्ञा की उमंगभरी हलचलों के रूप में किया जाता है, जो मानवी अंतःकरणोँ में अनायास ही उभरती है और अपनी प्रखरता के कारण मनुष्यों को आदर्शों के लिए मर मिटने को विवश कर देती हैं।’

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य अखण्ड ज्योति अगस्त 1979, पृष्ठ 25, 26

‘आध्यात्मिकता ही भारत की एकमात्र राजनीति है और सनातन धर्म की उपलब्धि ही उसका एकमात्र स्वराज। जब उदारतावाद, राष्ट्रवाद, आतंकवाद जैसी मूर्खताएं समाप्त हो जाएंगी, तभी सत्य को अवसर मिलेगा भारत में सात्विक मस्तिष्क उभरेगा और भारत के पुनर्जीवन के पूर्वार्द्ध के रूप में एक सच्चा-सशक्त आध्यात्मिक आँदोलन आरंभ होगा। निस्संदेह अभी विपत्तियों का सामना करना पड़ रहा है, परंतु हमें सही बातों में विश्वास है कि ईश्वर हमारा मार्गदर्शन कर रहा है, आवश्यक अनुभव प्रदान कर रहा है और उचित परिस्थितियाँ तैयार कर रहा है।’

श्री अरविंद जुलाई 13, 1911 (एक मित्र को लिखें गए पत्र से)

‘ईसाई धर्म में सेविन टाइम्स, इस्लाम धर्म में चौदहवीं सदी में कयामत तथा भविष्य पुराण में खंडप्रलय की चर्चा है। अन्य पूर्वार्त्त और पाश्चात्य दिव्यदर्शियों ने भी इसी स्तर की भविष्यवाणियाँ की हैं, जिनसे प्रतीत होता है कि कुसमय का अंत आते-आते कहर बरपेगा। किन्तु इसके बाद ऐसा समय आएगा, जिसमें पिछले सभी घाटे की पूर्ति हो जाएगी, ताकि गहरी खाई पाटकर समतल ही नहीं वरन् पुष्पोद्यान के रूप में भी छटा दिखाई देने लगे−−−प्रतिभाएं इन्हीं दिनों उभरेंगी और उनके द्वारा बहुमुखी सृजन की ऐसी योजनाएं बनेगी, जो चरितार्थ होने पर ऐसा वासंती वातावरण बना दें, जिसकी इक्कीसवीं सदी के रूप में आशा-अपेक्षा चिरकाल से की जाती रही है।

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य अखण्ड ज्योति नवंबर 1988, पृ. 31


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