विश्व संकट के समाधान हेतु विशेष साधना क्रम

December 2001

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अपने देव परिवार की यह विशेषता रही है कि उसने कार्य सिद्धि के लिए लौकिक पुरुषार्थ के साथ उसी के अनुरूप आध्यात्मिक पुरुषार्थ भी किया है है। जब-जब राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आपात स्थिति अनुभव की गई है, तब-तब ऋषि-निर्देशन के अनुसार परिस्थितियों के अनुरूप सामूहिक साधनात्मक पुरुषार्थ किए जाते रहे हैं। इन दिनों जो भीषण संघर्ष की स्थिति उभरी है, उसके पीछे अविवेकी, संवेदनहीनों, महत्वाकांक्षियों का बढ़ता दुस्साहस तथा विवेकवानों, सद्भावना संपन्नों में उनके प्रतिरोध के लिए संकल्प और सत्साहस का अभाव ही मूल कारण रहे हैं। इसलिए वर्तमान विभीषिकाओं के समाधान के लिए निम्नानुसार साधनात्मक निर्धारण किए गए हैं।

प्रतिदिन कम-से-कम एक माला शिव गायत्री का जप। जप के साथ भावना रहे, ‘हे त्रिपुरारी! भटके हुओं के मनों से वासना, तृष्णा एवं अहंतारूपी असुरों का सफाया करके उनमें शिव, लोकहितकारी कामनाओं, विचारणाओं और प्रवृत्तियों का संचार करें।’

ॐ पञ्चवक्त्राय विद्महे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।

एक माला गायत्री महामंत्र का जप ‘क्लीं’ बीज मंत्र का संपुट लगाते हुए। भावना रहे, ‘हे महाशक्ति! सत्पुरुषों सद्भावना संपन्नों में अनीति-अवाँछनीयता के प्रतिरोध एवं दमन के उपयुक्त संकल्प, सत्साहस एवं संघबद्धता जाग्रत करें।’

ॐ भूर्भुवः स्वः क्लीं क्लीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् क्लीं क्लीं ऊँ।

जप के समय ध्यान करें, ‘हमारी कल्याणकारी भावना से उभरी जप की तरंगें ऋषि तंत्र के किए गए दिव्य संचार के साथ संयुक्त होकर सविता देव तक पहुँच रही हैं, वहाँ से समाधानपरक स्पंदन एवं ऊर्जा परावर्तित होकर फैल रही है। उस दिव्य प्रवाह ने सारे भू-मंडल को अपनी लपेट में ले लिया है। अभीष्ट की सिद्धि के लिए उसका प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है।’ जहाँ कहीं किसी भी प्रसंग में हवन-यज्ञ हों, उनमें निम्न आहुतियाँ उक्त भावना के साथ डाली जाएं-

अनिष्ट निवारणार्थ विशेष आहुति-

ॐ पञ्चवक्त्राय विद्महे, महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् स्वाहा॥ इदं रुद्राय, इदं न मम॥

दिवंगतों की आत्मा की शाँति के लिए आहुति-ऊँ शन्नो मित्रः शं वरुणः शन्नो भवत्वर्य्यमा। शन्नऽइन्द्रो बृहस्पतिः शन्नो विष्णुरुरुक्रमः स्वाहा॥ इदं जन कल्याणार्थाय इदं न मम।

यह विशुद्ध साधनात्मक प्रयोग करते हुए, इसके अनुरूप सामाजिक वातावरण बनाने के लिए भी प्रयास किए जाएं। जगह-जगह अनिष्ट निवारक के लिए सामूहिक प्रार्थना सभाएं भी की जा सकती है। पूर्व निर्धारित तिथि एवं समय पर प्रारंभ में एक घंटे या अधिक समय का सामूहिक जप रखा जाए, जो लोग गायत्री मंत्र का निर्धारित अन्य मंत्र न जानते हों या उन्हें करने में कोई झिझक हो, वे जनकल्याण के भाव से मौन बैठकर अपने विश्वास के अनुसार भावभरी प्रार्थना भर करते रहें। बाद में जन सद्भाव एवं अनीति-अत्याचार के विरुद्ध संकल्प जगाने वाले युगगायन किए जाएं। वर्तमान संकट के निवारण के लिए दुर्बुद्धि त्याग, अनीति के प्रतिरोध सद्बुद्धि के जागरण और सद्भावना के विस्तार की आवश्यकता समझाई जाए। इस दिशा में अपने परिवार द्वारा चलाए जा रहे साधना-पुरुषार्थ की जानकारी देते हुए अधिक-से-अधिक भाई-बहनों को इसमें भागीदार बनने के लिए भावभरा आमंत्रण दिया जाए। अपने परिवार के कुशल वक्ताओं के साथ विभिन्न विचारधाराओं के प्रगतिशील प्रतिपादकों से से संक्षेप में समर्थनपरक अपीलें कराई जाएं। अंत में कुछ मिनट मौन प्रार्थना के साथ शाँतिपाठ और शाँति अभिसिंचन करके समापन किया जाए।

विश्वास है कि जिस प्रकार पहले के प्रकरणों में परिजनों ने तत्परता का परिचय दिया है वैसी ही बल्कि उससे भी अधिक तत्परता इस संदर्भ में बरतेंगे। यह समस्या जल्दी सुलझने वाली नहीं दिखती तथा इसका क्षेत्र भी अपेक्षाकृत अधिक व्यापक है। अस्तु, उसी अनुपात में साधना अभियान की तत्परता और व्यापकता भी होनी चाहिए।


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