कालीदास सर्वथा निरक्षर थे। पंडितों की चालाकी से उनका विवाह एक विदुषी से उसको शास्त्रार्थ में हराकर करा दिया। विवाह होने के बाद भेद खुला, तो विद्योत्तमा ने कालिदास से कहा- आप मेरे पति बने रहना चाहते हैं, तो मुझसे अधिक विद्या प्राप्त करें।
कालीदास को बात चुभ गई। उन्होंने पूरी लगन और मेहनत से पढ़ना आरंभ कर दिया। लगने जीती और मूर्खता हारी। कालीदास उच्चकोटि के विद्वान बने। घर लौटे तो पत्नी ने संस्कृत में तीन प्रश्न पूछे। इनके उत्तर में उन्होंने तीन ग्रंथ लिखकर दिए, रघुवंश, मेघदूत और कुमार संभव। पत्नी के उलाहने से लगनशील बनकर उच्चकोटि की विद्वत्ता प्राप्त करने का संसार में यह अनोखा उदाहरण है।