प्रलोभन के बदले (Kahani)

December 2001

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बहुत समय पूर्व जापान में एक जिले के जिलाधीश थे, चाईसेन। उनके हाथ में सरकार ने बहुत सत्ता दे रखी थी।

एक व्यापारी अपना कुछ काम सरकार से निकालना चाहता था। इसके लिए जिलाधीश का सहयोग अपेक्षित था। व्यापारी अशर्फियों की थैली लेकर पहुँचा और बोला, ‘यह भेंट स्वीकार करें, मेरा काम कर दें। इस भेंट की बात कोई भी नहीं जान पाएगा।’

चाईसेन ने कहा, ‘यह कैसे हो सकता है कि कोई न जाने। आसमान, पृथ्वी मेरी आत्मा, तुम्हारी आत्मा और परमात्मा पाँच की जानकारी में जो बात आ गई, उस पाप का भेद तो खुल ही गया। कृपाकर अपनी अशर्फियाँ वापस ले जाइए, अपने कर्त्तव्य और उत्तरदायित्व को झुठलाना मेरे लिए किसी भी प्रलोभन के बदले संभव न हो सकेगा।


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