उत्तीर्ण होने के कारण (kahani)

December 2001

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

श्वेतकेतु ब्रह्मविद्या जानने के लिए बहुत दिन से गुरुगृह में निवास कर रहे थे, पर अभीष्ट अनुदान उन्हें मिला नहीं।

गुरु की निष्ठुरता से खिन्न होकर एक दिन आश्रम की याग्नि ने कहा, तुम पर दया आती है। गुरु का पल्ला छोड़ो। वे जब तक लौटकर आएं, तब तक मैं ही तुम्हें ब्रह्मविद्या बता दूँगी।

श्वेतकेतु अग्निदेव के अनुग्रह का बड़ा उपकार माना, साथ ही अत्यंत विनम्रतापूर्वक बोले, सेवा किए बिना आपसे जो अनुदान मिलेगा, वह बिना मूल्य मिलने के कारण फलेगा कहाँ? पात्रता विकसित किए बिना, अपने अंदर सुसंस्कारिता उपजाए बिना जो उपहार हाथ लगेगा, वह टिकेगा कहाँ?

अग्निदेव लज्जित होकर अंतर्धान हो गए। श्वेतकेतु ने गुरु सेवा करके अपनी पात्रता परिपक्व की और नियत समय पर अभीष्ट अनुदान लेकर वापस लौटे।

गोपाल कृष्ण गोखले को सभी प्रश्नों के सही उत्तर देने के उपलक्ष्य में कक्षा का प्रथम पुरस्कार मिला। अध्यापक ने उनकी मेघा तथा लगाम को सराहा भी।

पुरस्कार उस समय तो उन्होंने रख लिया, पर रात बेचैनी को खिलाई और दूसरे दिन उठते ही अध्यापक के घर जा पहुँचे। पुरस्कार वापस लौटाते हुए उन्होंने कहा, ‘यह उत्तर तो मैंने चुपके से अमुक छात्र से पूछकर दिए थे। पुरस्कार का असली अधिकारी वही है।’

अध्यापक इस हिम्मत भरी ईमानदारी पर स्तब्ध रह गए। उन्होंने दुबारा वही इनाम लौटाया और कहा, ‘यह तुम्हारी ईमानदारी और बहादुरी के उपलक्ष्य में है। उत्तीर्ण होने के कारण नहीं।’


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118