आप अवतरित हुई धरा पर, तो करुणा साकार हो गई। स्नेह-सरसती जीवन-धारा, संवेदन की धार हो गई॥
तरस रहा था मनुज, स्नेह बिन, माता के बिन शिशु का जीवन निश्छल-नेह नहीं मिलता था। तो सूना-’सूना होता है।
और किसी के स्नेहाँचल का, सुख के सब साधन रहते भी, निर्मल-गेह नहीं मिलता था।सूनापन, दूना होता है।
मातृ हृदय से छलकी ममता, हे जगदम्बे! गोद आपकी, तो जन-जन का प्यार हो गई॥1॥ जगभर का आधार हो गई॥2॥
कोटि-कोटि शिशुओं ने, निश्छल,साथ-साथ ही मातु! आपने, निर्मल स्नेह सदा पाया है। शिशुओं को संस्कार दिए हैं।
पीड़ा पीकर, प्यार पिलाना, शिल्पक्रिया, अनगढ़ शिशुओं का, यह जगदम्बे की माया है। माँ! कितने उपकार किए हैं।
गूँगे शिशुओं की पीड़ा भी, एक आँख फटकार गई तो मातृ हृदय के पार हो गई॥3॥ तो दूजी जीभर प्यार दे गई॥4॥
पुण्य दिवस पर याद आपकी, फिर भी छाती पर पत्थर धर, रोक नहीं रुका करती है। यह विश्वास दिलाते हैं माँ।
बदली-सघन सजल-श्रद्धा की, स्नेह आपका, उपेक्षितों के, आँखों बीच झुका करती है। घावों पर छलकाते हैं माँ।
श्रद्धा सदा छलकते रहना, दीनों, दुखियों की दुनिया अब, शिशुओं का अधिकार हो गई॥5॥ सेवा का संसार हो गई॥6॥
*समाप्त*